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(त्वचा विकार,चमड़ी के रोग,खुजली,दाद,कृष्ठ रोग,)

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(त्वचा विकार,चमड़ी के रोग,खुजली,दाद,कृष्ठ रोग,) रोग परिचय-परिचय की विशेष आवश्यकता नहीं, क्योंकि इन विकारों से प्रायः सभी परिचित हैं। खुजली दो प्रकार की होती है- सूखी खुजली तथा तर खुजली । सूखी खुजली-खुजली के रोगी का कपड़ा पहनने या उसके साथ रहने से 'सार कौटिप्स स्केबी' नामक कीटाणु स्वस्थ मनुष्य के बाहरी चर्म में छेद कर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इन कीटाणुओं के विष से रक्त के श्वेत एवं लाल रक्त-कणों के नष्ट हो जाने से न पकने वाली छोटी-छोटी फुन्सियाँ निकलती हैं तथा चर्म में प्रदाह होकर उस स्थान का रंग खराब हो जाता है। सूखी खुजली प्रारम्भ में विशेषतः हाथ-पैर, मलद्वार, अन्डकोषों तथा योनि पर होती है जो बार बार खुजलाने से शरीर के अन्य स्थानों पर भी हो जाती है। उस रोग के होने का एक कारण रोगी का गन्दा रहना भी है। तर खुजली-खुजली को उत्पन्न करने वाले कीटाणु प्रायः कोमल त्वचा में रहते हैं। अँगुलियों के बीच वाले भाग, कलाई, जाँघ और बगल में फुन्सियाँ निकल आती हैं, जिनमें से तरल निकलता है। यही आर्द्र या तर खुजली कहलाती है। खुजलाने से यह तरल शरीर में जहाँ कहीं भी लग जाता है, उस स्था...