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जनवरी 9, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna

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(स्तनों में दूध की अधिकता ,(Galactorrhea),satno mein doodh ka badhna) रोग परिचय- इस रोग में स्त्री के स्तनों में दूध इतनी अधिकता से आने लगता है कि शिशु के दुग्धपानीपरान्त स्वयं बहने लगता है जिसके कारण स्वी के स्तनों में बहुत अधिक तनाव उत्पन्न होकर पीड़ा और कष्ट होने लगता है। प्रायः ऐसा भी देखने में आया है कि बिना गर्भ हुए स्तनों में दूध उत्पन्न होने लग जाता है। किन्तु ऐसा उसी समय हो सकता है जबकि मासिक धर्म काफी समय से बन्द हो। इस रोग का कारण रक्त और दूध उत्पन्न करने वाले भोजनों का अत्यधिक सेवन, शिशु का दुग्धपान छुड़वा देना और रक्त का पतला हो जाना, स्तनों को रोकने वाली शक्ति का कमजोर हो जाना इत्यादि है। प्रायः नर्वस स्वभाव की स्त्रियाँ जो अपने बच्चों को अत्यधिक प्रेम करती हैं उनको भी उनके स्तनों में भी बहुत अधिक मात्रा में दूध आने लगता है। उपचार- रोगिणी कब्ज न रहने दें और यदि आवश्यक हो तो हल्का-जुलाब लेकर पेट साफ करें । • चम्पा के फूल स्तनों पर बाँधते रहने से अधिक दूध उत्पन्न होना, कम हो जाता है। • तुलसी के बीज, सम्भालू के बीज 1-1 तोला, भांग के बीज 6 माशा तथा इतनी ही मात्रा ...

स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav

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(स्तन की चूचियों का घाव ,(Nipple Sore),satan ke ghav) रोग परिचय-यह रोग चूंचियों को साफ न करने, दुग्धपान में असावधानी, शिशु द्वारा दुग्धपान करते समय दाँत से काट लेना, रक्तदोष तथा दुग्धपान करने वाले शिशु के मुख पाक हो जाने के कारण स्त्री की चूंची में घाव हो जाते हैं। जिनमें प्रायः जलन होती है, शिशु को दुग्धपान कराने में कष्ट होता है, घाव में अधिक दर्द और कष्ट होने पर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है।उपचार- घाव को नीम के पत्तों के क्वाथ से धोकर साफ करें और सेलखड़ी, मेंहदी के सूखे पत्ते समभाग पीसकर नारियल के तैल में मिलाकर लगायें। रोग अधिक होने पर रक्तशोधक योगों का सेवन करें। जिंक आक्साइड को नारियल के तैल में मिलाकर लगायें या बोरो गिलेसरीन लगायें। शीघ्रपाची व सात्विक भोजन खायें ।

स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona

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(स्तनों का ढीला हो जाना,brest saging,satan dheele hona) रोग परिचय-यह रोग शरीर में कफ की अधिकता, स्तनों का बहुत अधिक हिलना-डुलना, स्तनों को बार-बार और अधिक खींचना, अत्यधिक सन्तान होना, स्वी का बॉडी न पीहनना, शिशु को अधिक समय तक दूध पिलाना इत्यादि कारणों से स्वी के स्तन युवावस्था में ही ढीले होकर लटक जाते हैं। उपचार सफेद रत्तियां, कसीस, चुनिया गोंद 1-1 तोला मिलाकर स्तनों पर लेप करके उपलों की आग से सेंक करें। मात्र 8-10 दिन के इस प्रयोग से स्तन कठोर हो जाते हैं। फिटकरी, काफूर 1-1 तोला अनार का छिलका 3 तोला को पीस-छानकर आवश्यकतानुसार स्तनों पर पतला-पतला लेप करना भी लाभप्रद है। • कच्चे आम (जो चने के आकार के हों) बबूल की बिल्कुल कच्ची फलियाँ, इमली के बीजों की गिरी, अनार का छिलका लें। सभी को छाया में सुखाकर बारीक पीसलें। फिर इसमें डेढ़ तोला घी तथा 5 तोला खांड मिलाकर हलवा बना लें और 40 दिनों तक प्रतिदिन सुबह-शाम खायें। इसके सेवन से ढीले स्तन कठोर हो जाते हैं तथा गर्भाशय से पानी आना भी बन्द हो जाता है। गर्भाशय और स्तन जवान स्त्रियों की भांति हो जाते हैं। रोगिणी हर समय बाड़ी पहने तथा ...

स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna)

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(स्तनों का बहुत छोटा हो जाना,santosh ka chota hona,satan sikudna) रोग परिचय- इस रोग में स्वी के स्तन साधारणावस्था से भी छोटे हो जाते हैं उनका उभार ही नहीं रहता है। दूध भी बहुत ही कम मात्रा में उत्पन्न होता है। स्वी का सौन्दर्य तो नष्ट होता ही है साथ ही ऐसी स्त्री से उसक्ना पति तथा अन्य स्वियों भी घृणा सी करती रहती है। इस रोग का कारण- शारीरिक कमजोरी, दुबलापन, रक्त विकार, स्तनों के पालन-पोषण हेतु रक्त पूर्ण मात्रा में न पहुँचना, रक्तवाहिका रगों (नसों) में सुट्टे पड़ जाना, हारमोन्स के विकार तथा स्वी की भीतरी जननेन्द्रिय में जन्म से खराबी होना इत्यादि है उपचार- जैतून का तैल विशुद्ध तैल हल्के हाथों से धीरे-धीरे मालिश करने से स्तन की मांसपेशियां पुष्ट हो जाती है तथा वहाँ का रक्त संचार सुचारू रूप से होकर स्नायु बल होकर स्तन बढ़ जाते हैं तथा सुदृढ़ होते हैं। हमदर्द कम्पनी की यूनानी दवा "जमादे शबाब" की मालिश भी अत्यन्त लाभप्रद है। • केंचुए साफ किए हुए 1 तोला, सूखी जोंक 6 माशा दोनों को पीसकरसरसों के तैल में मिलाकर मालिश कर सेंक करना भी लाभकारी है। असगन्ध नागैरी, काली मिर्च,...

स्त्री में कामवासना की अधिकता,औरत की सेक्स संतुस्टी ना होना,aurat mein kamvasna kaathik hona

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(स्त्री में कामवासना की अधिकता,औरत की सेक्स संतुस्टी ना होना) रोग परिचय- इस रोग से ग्रसित स्वियों को संभोग (प्रसंग) करने की इच्छाबहुत अधिक हुआ करती है। यदि वे बार बार सम्भोग सम्पन्न नहीं कर पाती है तो इतनी अधिक कामातुर हो जाती हैं कि सामाजिक मान मर्यादा का विचार त्याग करके अपने समीप के पुरुषों को ही यहाँ तक कि किसी सगे सम्बन्धियों को सम्भोग करने हेतु उकसाती रहती है। ऐसी कामातुर स्वी पागलों की तरह गप्पें मारती है। अपने यौवन को एवं शरीर को विचित्र तरीकों से प्रदर्शित करती हुई ऐंठन और अंगड़ाई के साथ अकड़ती हुई मुद्राएं करती रहती हैं। वह हर किसी के सामने अपना प्रयण-निवेदन प्रस्तुत कर देती है। उसे बार- बार सम्भोग करने के बाद भी कभी सन्तुष्टि नही होती है। इस रोग का प्रधान कारण बचपन की कुसंगतियां, वासनामयी गुन्दी गन्दी बातें सुनना, यौवन के प्रारम्भ में ही हस्तमैथुन, पशुमैथुन इत्यादि लतों का शिकार हो जाना, गन्दे उपन्यास, नंगे अथवा अश्लील चित्र देखना इत्यादि होते हैं। ऐसी रोगिणी जब किसी से सम्भोग हेतु प्रयण निवेदन करती है और उसकी पुरुष द्वारा स्वीकृति नहीं मिलती है तब वह झुंझला कर, ...