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जनवरी 12, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna

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(गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna) रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर पतला स्राव एकत्रित हो जाता है। आरम्भ में पेडू के ऊपर उभार प्रतीत होता है और अन्त में जब तरल काफी अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है तब रोगिणी का पेट जलोदर रोग की भाँति हो जाता है। पेट के अन्दर पानी की लहरें प्रतीत होती है। पीड़ित स्वी कमजोर हो जाती है, उसकी सांस रुकने लगती है तथा हाजमा खराब हो जाता है। पेट में वायु (गैस) चलने लगती है। मासिक बन्द हो जाता है और गर्भ ठहर जाने जैसा सन्देह होने लगता है। जलोदर रोग में पेट, यकृत् और नाभि के आस-पास का भाग बढ़ता है जबकि इस रोग में पेट पेडू के स्थान से बढ़ना प्रारम्भ होता है। जलोदर रोग के विपरीत इस रोग में मूत्र भी अधिक मात्रा में आता है। यह रोग मासिक बन्द हो जाने, शरीर में कफ की अधिकता, यकृत् विकार तथा गर्भाशय और वृक्कों की कमजोरी इत्यादि के कारण हुआ करता है। उपचार डाक्टर 'ट्रोकार यन्त्र' द्वारा गर्भाशय का पानी निकाल लेते हैं। पुनर्नवारिष्ट का सेवन लाभप्रद है। इस बूटी का रस प्रयोग करना भी लाभप्रद है। • अजमोद, सोये के बीज, बायविडंग, ख...

गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli

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(गर्भाशय की रसूली,fibrosis,rasoli) रोग परिचय-वैसे शरीर के प्रत्येक भाग में रसूली हो सकती है अ रसूलियाँ भी विभिन्न प्रकार की होती हैं। गर्भाशय की रसूलियां तन्तुओं (रेशों) युक्त हुआ करती हैं। कई में चर्बी जैसा पदार्थ और कई में अण्डे की सफेदी जैसा लेसदार स्राव होता है। कई रसूलियों में पीले रंग का गाढ़ा स्त्राव होता है। कई रसूलियाँ लाल रंग की होती है जिसमें पेशाब जैसा खट्टा पदार्थ होता है। जिनकी संरचना स्पंज जैसी होती है और बहुत छोटी होती है, उनको डाक्टरी में पोलीवी (Polypi) कहा जाता है। इनसे रक्त भी आ सकता है। यह रोग रक्त के गाढ़ा हो जाने, उपदंश-दोष, कफ-विकार आदि कारणों से हो जाया करता है। इसके कारण बांझपन और गर्भपात का रोग भी हो जाता है। इस रोग का साधारण लक्षण मासिक बन्द हो जांना या अनियमित रूप से आना है। इस रोग के कारण स्वी को रक्त अल्पता और श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) का रोग हो जाता है। ल्यूकोरिया स्वयं में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है बल्कि विभिन्न रोगों के फलस्वरूप हो जाया करता है। अतः ल्यूकोरिया की उचित चिकित्सा भी यही है कि रोग के मूल कारण को ही दूर किया जाये। जो. वैद्य ल्यूको...

गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh

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(गर्भाशय की बवासीर, गर्भाशय-अर्श,garbhasya ki bavaseer,arsh) रोग परिचय इस रोग में गर्भाशय के मुख पर छोटे-छोटे गोल मस्से हो जाते हैं। ये मस्से बढ़कर शहतूत की भाँति लटक जाते हैं। यह दशा 'पोलीपस ऑफ यूट्स' कहलाती है। इसमें गर्भाशय के मुख में जलन, खुजली, दबाव और दर्द होता है तथा रक्त आने लगता है। रक्त आने के पश्चात सफेद, लाल या काला सा पानी आने लगता है। उसके बाद कष्ट कम हो जाते हैं किन्तु मासिक धर्म के समय से कष्ट बढ़ जाते है। यह रोग गर्भाशय के मुँह की भीतरी झिल्ली में खराश रहने से वहाँ के रक्त वाहिनियों में रक्त एकत्रित हो जाने से होता है जिसके फलस्वरूप वह फूल जाता है। इस खराश का कारण मासिक बन्द हो जाना अथवा रुक आना होता है। गर्भाशय की शोथ और डिम्बाशय की शोथ तथा कफ के दोषों के कारण भी यह रोग हो जाया करता है। ऐलोपैथी के चिकित्सक आप्रेशन करके इन मस्सों को काट देते हैं। उपचार- शुद्ध गूगल, नीम के बीज की गिरी, बकायन (महानिम्ब) के बीजोंकी गिरी, रसौत, चाकसू (बिना छिलका) काली मिर्च और शुद्ध गन्धक सभी औषधियों को सममात्रा में लें। उन्हें कूट-पीसकर कुकरोंदा के रस में जंगली बेर के ...