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दिसंबर 16, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गृध्रसी,साइटिका का दर्द

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        .                    (गृध्रसी,साइटिका का दर्द ) रोग परिचय-कमर से लेकर पैर तक बाहर और पीछे की ओर चलने फिरने या झुकने में दर्द होता है। यह दर्द प्रायः एक ही ओर होता है किन्तु कभी- कभी दोनों ओर भी हो सकता है। दर्द के कारण रोगी गधे की भांति पैर घसीटकर (बेचैन होकर) चलता है, इसी कारण इस रोग का नाम गृधसी पड़ा है। अंग्रेजी में इसे (Sciatica) कहते हैं। रोग के अधिक बढ़ जाने पर बैठने और आराम करने की स्थिति में भी दर्द होता है। उपचार • अकरकरा के महीन चूर्ण को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृधसी के दर्द में लाभ होता है। • अडूसा, जमालगोटे की जड़, अमलताश का गूदा, (प्रत्येक 10-10 ग्राम) को आधा किलो जल में औटावें। जब पानी 125 ग्राम शेष बचे, तब इसे उतार छानकर 10 ग्राम अण्डी का तेल (कैस्टर आयल) मिलाकर 15 दिनों तक निरन्तर सेवन करने से गृध्रसी में अवश्य लाभ हो जाता है। • लहसुन 10 ग्राम, शुद्ध गूगल 50 ग्राम दोनों को खूब पीस लें। फिर जंगली बेर के आकार की गोलियाँ बना लें। इन गोलियों को प्रतिदिन सुबह शाम 1-1 गोली स...

गर्भस्राव एवं गर्भपात,बच्चा गिरना

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                    (गर्भस्राव एवं गर्भपात,बच्चा गिरना) रोग परिचय-नियत समय से पहले यदि गर्भाशय से बच्चा निकल जाये तो इसे गर्भपात कहते हैं। इसको साधारण बोलचाल में हमल गिरजाना, गर्भ गिरना, कच्चा पड़ना कहा जाता है। इसी को गर्भस्राव भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे (Abortion) एर्बोशन कहते हैं। उपचार- महर्षि चरक जिन्हें आयुर्वेद का संस्थापक कहा जाता है। एक योग 'कल्याण घृत' की चरक संहिता में बहुत ही प्रशंसा की है। सर्व प्रथम हम अपने प्रिय पाठकों के लिए वही योग यहाँ लिख रहे हैं। यह योग विशेषकर उन गर्भवती स्त्रियों के लिए रामबाण साबित हुआ है, जिनको बार-बार गर्भपात हो जाता है। इसके अतिरिक्त यह औषधि रुग्णा के शरीर में नवीन शक्ति उत्पन्न करती है। मष्तिष्क की कमजोरी में भी विशेष लाभकर है। मिर्गी, पागलपन, हिस्टीरिया के कारण आवाज बैठ जाना (Aphonia) शरीर व मष्तिष्क का पोषण कर वृद्धा को जवान बनाती है। • हरड़, बहेडा, आँवला, इन्द्रवारूणी, रेनुका, शालपर्णी, सारिबा, दारबी, तगर, उत्पला, इलायची, मजीठ, दन्ती, नागकेशर, अनार, तालीसपत्र, बायविडंग, कूठ, ...

कृमि,पेट में कीड़े (उदर कृमि

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.                              (कृमि,पेट में कीड़े (उदर कृमि) रोग परिचय कृमि रोग सभी वर्ग व अवस्था (स्वी पुरुष, वृद्ध व युवा और बच्चों को) में होता है। यह कीड़े (कुमि) आमतौर पर आँतों में निवास करते है। इसलिए इन्हें अन्व-कृमि भी कहा जाता है।                         (उपचार) • अजवायन चूर्ण 4 रत्ती में समभाग काला नमक मिलाकर रात्रि के समय प्रतिदिन गरम जल से देने से बालकों के कृमि नष्ट हो जाते हैं। • प्रात:काल 5 या 10 ग्राम गुड़ खाकर थोड़े समय बाद खुरासानी अजवायन का चूर्ण 1 से 4 रत्ती की मात्रा में बासी पानी से सेवन करने से आन्वगत विभिन प्रकार के कृमि शीघ्र बाहर निकल जाते हैं। • अजवायन किरमानी के बीजों का चूर्ण लगभग 10 ग्राम तथा सौठ का चूर्ण 3 ग्राम दोनों को एकत्र कर चाय के साथ खाने और ऊपर से एरन्ड का तेल पिलाने से उदर के कृमि मरकर बाहर निकल जाते हैं। • उदर-कृमियों के कारण ज्वर, पाण्डु, खाँसी तथा वमन हो तो अतीस और वायविडंग का समान भाग चूर्ण 1-2 रत्त...