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लाहौरी फोड़ा,lahori foda,ka ilaj

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लाहौरी फोड़ा,lahori foda,ka ilaj रोग परिचय-इस विशेष फोड़े को लाहौरी फोड़ा, लाहौर सौर, औरंगजेबी फोड़ा, मुगलानी फोड़ा, ट्रोपीकल बोइल या ईस्टर्न बोइल आदि नामों से भी जाना जाता है। यह अधिकतर उन अंगों पर होता है जो प्रायः खुले रहते हैं। इसका घाव हठीला होता है। यह प्रायः विश्व के समस्त गरम देशों के नागरिकों को ही निकलता है। इसका प्रकोप विशेषकर वर्षा ऋतु के अन्त में होता है। इसके कीटाणु अधिकांशतः मच्छरों और मक्खियों के काटने से स्वस्थ मनुष्य के शरीर में पहुँचते हैं। प्रायः ये कीटाणु प्रत्यक्ष रूप से भी प्रभाव डालते हैं। ये कीटाणु घाव की पीप में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त शरीर की सफाई न रखने आदि से भी रोग पैदा होता है। गरम और उत्तेजक पदार्थों का अधिक सेवन रोग का मुख्य कारण है। इस रोग का संक्रमण लगने के लगभग 2 सप्ताह से 6 मास की अवधि में एक विशेष प्रकार का दाना निकलता है, जिस पर खुजली होती है। उसके बाद वह उभरने लगता है और बन्द मुँह के फोड़े का रूप में धारण कर लेता है। इसमें बादामी रंग के परत बार-बार उतरते हैं। दो-तीन सप्ताह के बाद इसी प्रकारपरत उतरने रहने के बाद घाव हो जाया करते है...

गाँठें, गिल्टियाँ, रसूलियाँ,rasoli,saree mein ganthein,galtiyan,ka ilaj

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गाँठें, गिल्टियाँ, रसूलियाँ,rasoli,saree mein ganthein,galtiyan,ka ilaj रोग परिचय-गिल्टियाँ या गाँठे उभार के रूप में चर्म और मांस के बीच पाई जाती हैं। यदि शरीर की प्राकृतिक ग्रन्थियां बढ़ जायें तो उनको अंग्रेजी में एनलार्जड ग्लैन्ड और यदि किसी रोग के कारण अप्राकृतिक रूप से गिल्टियाँ उत्पन्न हो जाए तो उन्हें ग्लेन्डयूलर ट्यूमर कहते हैं। इन्हें आयुर्वेद में ग्रन्थिल अर्बुद के नाम से जाना जाता है। इन गिल्टियों में बहुत सी गिल्टियाँ तो स्वयं एक रोग का स्थान रखती हैं। जैसे- कन्ठमाला (स्क्रोफ्यूला) (यह प्रायः नरम मांस जैसे गर्दन और बगल में निकलती हैं। ये प्रायः एक ही झिल्ली में कई-कई होती है, किन्तु कभी-कभी रसूली की भाँति प्रत्येक की झिल्ली अलग हुआ करती है। इसका कारण गाढ़ा बलगम या कफ पदार्थ होता है। इसमें बहुत जल्द पीप पड़ जाती है परिणामस्वरूप ये फूट जाती हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्री इस रोग (कन्ठमाला) को क्षय के संक्रमण (ट्यूबर क्युलोसिस) से उत्पन्न होना मानते हैं। त्वद या ककरौली- यह एक दूषित प्रकार की रसूली या शोथ होती है, जो शरीर के किसी भी भाग पर उत्पन्न हो सकती है। यह गोलाका...

प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj

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(प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj) रोग परिचय- प्रसवोपरान्त होने वाले ज्वर को प्रसूत ज्वर कहा जाता है। प्रसव की असावधानियों, से जब योनि, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा आदि में संक्रमण लग जाता है अथवा बच्चा पैदा होने के बाद प्रसूता स्वी को जब आँवल (पिलसेन्टा) का विषैला पदार्थ रक्त में पहुँच जाता है तभी यह ज्वर हो जाता है। बच्चा पैदा होने के 3 दिन बाद प्रसूता स्त्री को सर्दी लगकर कम्पन के साथ यह ज्वर चढ़ जाता है जिसका तापमान 102 से 105 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। नाड़ी अत्यधिक तेज (तीव्र), गर्भाशय के स्थान पर दर्द, जी मिचलाना, दस्त लगना, कै (उल्टी वमन) होना, पेट फूल जाना, स्तनों में दूध न उतरना, गर्भाशय से दूषित तरल निकलना बन्द हो जाना इत्यादि लक्षण प्रकट हो जाते हैं। रोग की अधिकता में रोगिणी बेहोशी में बड़बड़ाती रहती है। पेट अधिक फूल जाने,समय पर उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव से रोगिणी की मृत्यु हो सकती है। इस रोग का मुख्य कारण कीटाणुओं का संक्रमण है। अक्सर देखने में आया है कि दाई (नर्स) के गन्दे हाथों अथवा प्रसूता की गुदा से कीटाणु गर्भाशय में चले जाते हैं अथ...