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दिसंबर 10, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वृक्कशूल, गुर्दा का दर्द (रेनल कालिक)

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            (वृक्कशूल, गुर्दा का दर्द (रेनल कालिक) रोग परिचय- इसे अंग्रेजी में 'रीनल कॉलिक' (Renal Calic) के नाम से जाना जाता है ! इस रोग में जब पथरी वृक्क में होती है तो रोगी की कमर में धीमा-धीमा दर्द प्रतीत होता है किन्तु जब यह पथरी गुर्दे से निकल कर मूत्र प्रणाली (गवीनी) (Ureter) में पहुँचकर फँस जाती है तो रोगी को तड़पा देने वाला दर्द होने लग जाता है। यह दर्द वृक्कों के स्थान से प्रारम्भ होकर पुरुषों में खसियों (वृषणों या अन्डकोषों) तक और स्वियों में गुप्तांगों और जाँघों तक पहुँचता है। इस रोग में मूत्र बार-बार आता है तथा मूत्र में रक्त भी आ सकता है तथा यह दर्द तब तक होता रहता है जब तक कि पथरी गवीनी से चलकर मूत्राशय में नहीं पहुँच जाती है। रोगी को मितली और के भी आती है। यह दर्द कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक रह सकता है। एक्स-रे लेने पर पथरी का प्रमाण मिल जाता है तथा पथरी खश-खश के दाने से लेकर नारंगी जितने आकार तक की हो सकती है। बड़ी पथरी में शल्य क्रिया आवश्यक है। छोटी पथरी को खाने की औषधियों से निकाला तथा पुनः पुनः (बार-बार) बनने से रोका जा स...

पैत्तिक शूल, पीते की पथरी (पित्ताशय की शोथ)

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        (पैत्तिक शूल पीते की पथरी (पित्ताशय की शोथ) रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में ऐक्यूट कोलो सिस्टाइटिस (Acute Cholecystitis) तथा बिलियरी कालिक (Biliary colic) आदि के नामों से जाना जाता है। पित्ताशय का तीव्र प्रदाह (इन्फ्लेमेशन) पित्ताशय (Gall Bladder) या पित्त वाहिनी (Bileduct) में रुकावट आ जाने से हो जाता है। जब पथरी पित्ताशय से निकल कर पित्त वाहिनी में पहुँचती है, तब रोगी को दर्द होने लगता है तथा शोथ और पान्डु रोग भी हो जाता है। यह दर्द कई घन्टे से कई दिनों तक रह सकता है। पित्ताशय में पथरी रहने पर रोगी को दर्द नहीं होता है। समीप में अर्बुद या गिल्टी पैदा हो जाने से और उस पर दबाब पड़ने से पित्त वाहिनी में रुकावट उत्पन्न हो जाती है। दाँयी छाती की पसलियों के नीचे यकृत स्थान या इसके ऊपर आमाशय के दांई ओर इस रोग में यकायक तड़पा देने वाला तीव्र दर्द प्रारम्भ हो जाता है जिसकी टीसें पीठ और दांये कन्धे तक जाती है। मितली और के भी आती है। कई बार कम्पन्न और ज्वर भी हो जाता है। पित्ताशय का स्थान दबाकर देखने पर वह उभरा हुआ होता है और वहाँ दर्द होता है। रक्त के श्वेत कण...

आमाशय के घाव का दर्द (गैस्ट्रिक अल्सर, पैप्टिक अल्सर का ईलाज)

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(आमाशय के घाव का दर्द (गैस्ट्रिक अल्सर, पैप्टिक अल्सर का ईलाज) रोग परिचय-आमाशय की पिछली दीवार पर ढ़ाई सेमी० से 5 सेमी० या अधिक लम्बे घाव हो जाते है। नया घाव छोटा होता है। आमाशय की पुरानी सूजन, पुराना अजीर्ण इस रोग की उत्पत्ति का मुख्य कारण होता है। खियो को यह रोग पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है। जिन स्वियों को प्रदर रोग हो, उनकोविशेष रूप से यह अधिक होता है। चालीस वर्ष से कम आयु के रोगी (जिनको 2 वर्ष से कम के लक्षण हों) को आराम हो जाने की आशा अधिक होती है। यदि 5 वर्ष के घाव हों तो शल्य चिकित्सा के उपरान्त भी आराम की कोई गारन्टी नहीं होती है। आमाशय के ऊपरी मुख या कमर में दर्द, बोझ और अकड़न का रोगी अनुभव करता है। आमाशय को दबाने पर रोगी सख्त दर्द अनुभव करता है। अक्सर खाना खाने के एक घन्टे बाद दर्द होने लग जाता है तथा भोजनोपरान्त कै (वमन) आ जाती है। कै में भोजन व रक्त मिला होता है। कई बार रक्त की ही के आती है। भोजन न पचने के कारण रोगी दुबला-पतला और कमजोर होता चला जाता है। उपचार • बेलपत्र और नीम पत्र का समभाग मिलाकर 15 से 30 मिली० तक 'रस' प्रातः व सायं खाली पेट पिलायें । ...