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दिसंबर 11, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आध्मान, अफारा, पेट फूल जाना,गैस बनना,तेजाब बनना

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(आध्मान, अफारा, पेट फूल जाना,गैस बनना,तेजाब  बनना)                  रोग परिचय -आध्मान अथवा अफारा का अर्थ है पेट में गैस रुक जाना। ऐसा प्रायः अजीर्ण, मन्दाग्नि, अतिसार, अग्निमांद्य आदि पाचन विकारों के कारण होता है। अफारा कोई साधारण रोग नहीं है इसके कारण रोगी के समक्ष जीवन और मृत्यु का प्रश्न आ खड़ा होता है। उपचार • अदरक का रस, नीबू का रस और शहद 6-6 ग्राम लेकर (तीनों को मिलाकर) दिन में 3 बार चटायें । • प्रतिदिन 3 छोटी हरड़ मुख में डालकर चूसें । • आक के पीले पत्ते 100 ग्राम, नमक 10 ग्राम दोनों को कूटपीस कर व घोटकर चने के आकार की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें। प्रतिदिन 2- 3 गोलियाँ चूसें । • दूषित अन्न की डकारें आती हों तथा उदर में वायु (गैस) भरी हो तो - 1 रत्ती हींग घी मिलाकर निगलवायें और चमत्कार देखें । .• छोटी इलायची का चूर्ण 4-6 रत्ती तथा भुनी हींग 1 रत्ती थोड़े नीबू रस के साथ मिलाकर पीने से वायु का अनुलोमन होता है। • हीरा हींग 2 रत्ती को थोड़े जल में घिसकर कुछ गरम करके फिर रुई का फोहा भिगोकर बच्चे की नाभि पर रखने से अफारा ...

प्लीहा,तिल्ली एवं यकृत, लिवर,जिगर का बढ़ जाना

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  (प्लीहा,तिल्ली एवं यकृत, लिवर,जिगर का बढ़ जाना) रोग परिचय- मलेरिया ज्वर इत्यादि के कारण, प्लीहा तथा यकृत वृद्धि हो जाती है। उपचार • कच्चे पपीते का ताजा दूध 5 बूँद तथा एक पका केला लेकर दोनों को फेंटकर भोजनोपरान्त दोनों समय सेवन कराने से प्लीहा व यकृत वृद्धि में लाभ होता है। • अनार के छाया शुष्क पत्ते 5 भाग तथा नवसादर 1 भाग दोनों को महीन पीसकर सुरक्षित रख लें। इसे प्रातः सायं 3-3 ग्राम की मात्रा में सेवन कराने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है। • अपराजिता के बीजों को भूनकर बारीक चूर्ण करलें। उसे 4 रत्ती से 3 ग्राम तक की मात्रा में गरम पानी के साथ सेवन कराने से प्लीहा व यकृत वृद्धि में लाभ होता है। • करेला के रस में थोड़ी राई व नमक का चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है। • पलाश के पत्तों पर तैल चुपड़कर अथवा तम्बाकू के पत्तों को नीबू के रस में पीसकर लेप करने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है। • नीम की गिरी, अजवायन तथा नौसादर सम मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम जल के साथ सेवन करना प्लीहा-वृद्धि में लाभप्रद है। पिप्पली चूर्ण व लौह भस्म समभा...

मूत्राशय की पथरी का दर्द,शुक्राशय की पथरी का दर्द)

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(मूत्राशय की पथरी का दर्द,शुक्राशय की पथरी का दर्द) रोग परिचय-पथरी मूत्राशय में होने पर रोगी को वृक्कशूल की ही भाँति तड़पा देने पाला दर्द होता है। यह दर्द मूत्राशय, गुर्दा और वृषणों मध्य के स्थान (सीवन) और पुरुषों में (लिंग) के अग्रभाग (सुपारी या सुपाड़ा) तक में होता है। यह दर्द मूत्र त्याग के समय अथवा मूत्र त्यागने के पश्चात् अधिक बढ़ जाताहै। रोगी को बार-बार गाढ़े रंग का मूत्र आता है। पथरी मूतशय के मुख में फँस जाने पर मूत्र रुक-रुक कर आने लगता है या बिल्कुल ही बन्द हो जाता है। यदि पथरी काफी समय तक मूत्राशय में पड़ी रहे तो मूत्राशय का आकार तथा रचना बिगड़ जाती है। बच्चों को यह रोग होने पर मूत्र त्यागने के बाद कष्ट के कारण रोना-चीखना पड़ जाता है तथा कष्ट के लक्षण चेहरे पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। बच्चा अपने लिंग (सुपारी) को हाथ से मलता है तथा कभी-कभी नीद में बिस्तर पर ही मूत्र कर देता है। मूत्राशय की पथरी अक्सर बच्चों तथा वयस्कों को तथा दुबले-पतले मनुष्यों को बनतीं है। यह पथरी प्रायः भूरी या सफेद होती है तथा ज्वार के दाने से लेकर मुर्गी के अंडे के आकार तक की हो सकती है। उप...