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जनवरी 31, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

विषैले कीड़ों का काटना (Stings, Insect Bites)zehreele keedon ka katna,tatya,bichhu ke katne ka ilaaj

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(विषैले कीड़ों का काटना (Stings, Insect Bites)zehreele keedon ka katna,tatya,bichhu ke katne ka ilaaj) रोग परिचय बिच्छु, बर्र, ततैया आदि कीड़े-मकोड़े के काट लेने से बहिर्वचा प्रदाहयुक्त हो जाती है। जिसमें अत्यधिक खुजली, जलन और तीव्र पीड़ा होती है, जिसके कारण रोगी बेचैन हो जाता है। बिच्छू के दंश (काट लेना अथवा छेद होना) से तो अत्यधिक जलन और पीड़ा होती है और रोगी का कंठ सूख जाता है। ऐलोपेथी दृष्टिकोण से इनकी चिकित्सा (एन्टी हिस्टामीन) औषधियों से की जाती है। क्षारीय (Alkaline) द्रव्यों का बाहरी (स्थानीय) प्रयोग इनके विष को निष्क्रिय कर देता है। उपचार • लाइकर अमोनिया फोर्ट (चूना व नौसादर का समभाग मिश्रण) दंशित स्थान पर भिगोकर बाँध देने तथा थोड़ी-थोड़ी देर बाद नई फुरैरी रखते रहना अत्यधिक लाभप्रद है। • पोटाशियम परमैगनेट और यदि प्राप्य हो तो साइट्रिक एसिड के कुछ कण डंक वाले स्थान पर रखकर उस पर 2-4 बूँद नीबू का रस या जल डालने से पीड़ा तथा जलन को आराम आ जाता है। • ऐलोपेथी के चिकित्सक सुन्न करने वाले सूचीवेध (इन्जेक्शन) का स्थानीय प्रयोग कर रोगी को आराम प्रदान करते हैं। • खटमल, जूं, ...

दाद, दद्रु,daad,khaaj khujli,ringworm

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(दाद, दद्रु,daad,khaaj khujli,ringworm ) रोग परिचय-इस रोग की उत्पत्ति का कारण (फुन्नी) नामक कीटाणु है जो मनुष्य की त्वचा में स्वेद ग्रन्थियों वाले स्थानों में पैदा होते हैं। अजीर्ण, स्नायु विकार, मलेरिया ज्वर, यकृत विकार और गन्दा रहने से यह रोग हो जाया करता है तथा दाद के रोगी के साथ उठने-बैठने या उसके कपड़े आदि प्रयोग करने से भी यह स्वस्थ व्यक्ति को भी हो जाया करता है। उपचार-पहले हल्का (मृदु) विरेचन लेकर पेट साफ करें। • तूतिया चूर्ण 120 मि. ग्रा., माजूफल 360 मि.ग्रा. मोम 18 मााम, मधु 18 मि.ली. । मरहम बनाकर आक्रान्त अंग पर प्रयोग करें। पुराने से पुराना दाद नष्ट हो जाता है। • राल, भुना सुहागा, भुनी फिटकरी, गन्धक (प्रत्येक 12-12 ग्राम) सभी को एक साथ चूर्ण करके कपड़े से छानकर 100 बार पानी से धोये हुए घी में मिलाकर प्रयोग करें। दिन भर में 2-3 बार दाद पर लगायें ।• दाद वाले आक्रान्त अंग को खुरदरे कपड़े से खुजलाकर जमालगोटे का तैल लगाना अत्यन्त उपयोगी है। • उकौता दाद जो प्रायः पीठ या हाथ के ऊपर होता है (इसमें चर्म भैंसे के कन्धे की भाँति काली, शुष्क और खुरदरी हो जाती है और चर्म फटकर...