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फ़रवरी 18, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सिध्म, सेंहुआ (Pitriasis)

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सिध्म, सेंहुआ (Pitriasis) रोग परिचय-यह रोग छीप रोग का ही एक अन्य प्रकार है। यह रोग फफूंद के संक्रमण से एक से दूसरे व्यक्ति में प्रसारित होता है। उपचार • महामन्जिष्ठादि काढ़ा 15 से 30 मि.ली. समान जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार सेवन करें। • पंचतिक्त घृत गुग्गुल (आवश्यकता तथा रोगी की आयु के अनुसार) 6 से 12 ग्राम तक दूध या ताजे जल से दिन में 2-3 बार खिलायें । • हल्दी, छोटी पीपर, दारु हल्दी और केशर प्रत्येक 50 ग्राम लें। इन्हें जल के साथ पीसकर लुगदी बना लें। फिर घी 1 किलो, चीतामूल का काढ़ा 4 कि. और उपर्युक्त लुगदी मिलाकर 1 कड़ाही में डालकर घी मात्र शेष बच जाने पर विधिपूर्वक पाक करें। तदुपरान्त छानकर व शीतल कर सुरक्षित रख लें। यह सिद्ध घी 13 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मि.ली. दूध में डालकर पिलायें, इसी का नस्य करें एवं आकान्त त्वचा पर दिन में 2 बार मालिश करें। सिहम (सेंहुआ) नाशक उत्तम प्रयोग है।

वाहिका तन्त्रिका शोथ, कोठ दर्द /Angioneurotic Oedema

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वाहिका तन्त्रिका शोथ, कोठ दर्द /Angioneurotic Oedema त्वचा में तन्त्रिका विकृति के कारण स्थान स्थान पर लाल रंग के चकत्ते एवंत्वचा में शोध उत्पन्न हो जाती है। यही 'वाहिका तन्त्रिका शोथ' कहलाती है। उपचार • नीम के पत्तों का रस 15 मि.ली., पुनर्नवा क्षार 60 मि.ग्रा. के साथ सुबह-शाम प्रयोग करें । • मधु मन्ड्रर भस्म (योग रत्नाकर) आवश्यकता तथा आयु के अनुसार 250 से 500 मि.ग्रा. तक दिन में 1-2 बार प्रयोग करें। • शीत-पित्त भंजन रस (रस योग सागर) आवश्यकतानुसार 125 से 250 मि.ग्रा. तक मधु से दिन में 2-3 बार तक चटायें। • पुनर्नवादि मन्डूर (भै. र.) आयु के अनुसार 1 से 2 गोलियां तक दिन में 2 बार त्रिफला के क्वाथ (काढ़ा) से सेवन करें।