संदेश

दिसंबर 26, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

स्त्रियों का उपदंश (सिफलिस)

चित्र
(स्त्रियों का उपदंश (सिफलिस) रोग परिचय-स्खियों को इस रोग में भग के ओष्ठों पर घाव बन जाता है, जो 3-4 सप्ताह तक रहता है। यह भी सुजाक की ही भाँति एक संक्रामक रोग है। इस रोग के दो प्रकार होते हैं- 1. हार्डशेन्कर 2. साफ्टसेंकर । इसका कारण भी एक विशेष प्रकार का कीटाणु है। यदि यह रोग माता-पिता के कारण वंशानुगत क्रम से संतान को हो जाये तो इसको 'प्राइमरी सिफलिस' कहते हैं तथा यह रोग स्वी से पुरुष को या पुरुष से स्वी को सम्भोग द्वारा हो जाय तो उसको 'सेकेन्ड्री सिफलिस' कहते हैं। यदि माता पिता दोनों या किसी एक को यह रोग हो तो अनेक वीर्य द्वारा गर्भस्थ बच्चे को यह रोग हो जाता है। माता पिता के रक्त से इस रोग के' कीटाणु आँवल द्वारा भ्रूण (बच्चे) में चले जाते हैं। यदि यह रोग पति या पत्नी को हो तो सम्भोग द्वारा एक से दूसरे को लग जाता है। ऐसी परिस्थिति में घाव सबसे पहले स्त्री या पुरुष जननेन्द्रिय पर होता है। यदि बच्चे को पैत्रिक उपदंश हो तो दूध पिलाने स्त्री को भी यह रोग अपनी चपेट में ले लेता है। उपदंश के रोगी से बहुत अधिक मिलने-जुलने, उसको चूमने-चाटने, उसके कपड़े पहनने, ...

उष्णवात, सूजाक (Gonorrhoea)

चित्र
       (उष्णवात, सूजाक (Gonorrhoea) रोग परिचय-यह एक औपसर्गिक (Venereal) रोग है, जो गोनोकोक्स (Gonococus) नामक बैक्टीरिया (कीटाणु) द्वारा उत्पन्न होता है। यह कीटाणु काफी के बीज के सदृश अथवा मनुष्य के वृक्क के आकार के अत्यन्त ही छोटे- छोटे होते है जो नंगी आँखों से दिखलाई नहीं पड़ते है। इन्हें अनुवीक्ष्ण यन्त्र से सरलता से देखा जा सकता है। यह रोग सूजाक से ग्रसित स्वी (विशेष कर वेश्या) के साथ संभोग करने से हो जाता है। सम्भोग के तीसरे-पांचवे दिन (किसी-किसी रोगी को 2-3 सप्ताह के बाद) इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं। मूत्र का छेद लाल होकर सूज जाता है। मूत्र जलन और दर्द के साथ आता है। उसके 3-4 दिनों के बाद रोगी के कष्ट बढ़ जाते हैं। मूत्र रुक जाता है अथवा जलन व दर्द के साथ मूत्र रक्त-मिश्रित आता है रोगी के लिंग में असहनीय दर्द होता है यहाँ तक कि लिंग में जरा-सा कपड़ा छू जाने पर भी रोगी तड़प उठता है। जाँघों के जोड़ की ग्रन्थियाँ सूज जाती है तथा ज्वर भी हो जाता है। रोग के प्रारम्भ में मामूली सी खराश और खुजली मूत्र के छेद में होती है और पूय (पीप) सी निकलती है फिर धीर...

उपदंश आतशाक (Syphilis)

चित्र
           (उपदंश आतशाक (Syphilis) रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में 'सिफलिस' के नाम से जाना जाता है। यह दुष्टा (दुश्चरित्रा) स्त्री से सम्भोग करने से एक-दूसरे को होता है। पहले लिंग पर एक हल्के रंग का पीड़ा रहित घाव होता है। वह 3 सप्ताह में ठीक हो जाता है। फिर डेढ़-दो महीनों के बाद त्वचा पर बड़े-बड़े भूरे रंग के उद्‌भेद निकल आते हैं। यह रोग वंशानुगत (माता-पिता से) भी उनकी सन्तानों में पहुँच जाता है। यह एक महा भयंकर संक्रामक रोग है, जो एक रोगी से दूसरे को हो जाता है। जब किसी स्त्री या पुरुष को इसका संक्रमण लग जाता है तब उसके द्वारा किसी स्वस्थ स्वी या पुरुष के साथ यौन सम्बन्ध (संभोग, मैथुन) करने से उसे भी हो जाता है। उचित चिकित्सा व्यवस्था से यह रोग पूर्णरूपेण निर्मूल (नष्ट) हो जाता है। अतः यह रोग पूर्णतः साध्य है, असाध्य नहीं है।তু उपचार • नीम की पत्तियों का 10 ग्राम रस प्रतिदिन पिलायें तथा नीम के बीजों का तैल यौनांगों पर मालिश करें। नीम का तैल कृमि और दूषित गर्मी का संहार करता है। नीम का तैल 5 ग्राम की मात्रा में पीना भी अतीव गुणकारी है। अथवा नीम को कोमल शाखाओं क...

अनिद्रा (नींद न आना),बेचैनी)

चित्र
(अनिद्रा (नींद न आना),बेचैनी) रोग परिचय-यह स्वयं में कोई रोग नहीं है, बल्कि शरीर में उत्पन्न हो रहे अथवा उत्पन्न हो चुके अन्य दूसरे रोगों का एक विकार (लक्षण) मोत्र है। उपचार • भांग को बकरी के दूध में पीसकर पैर के तलुओं पर मालिश करने से अथवा पलकों पर लेप करने से उत्तम निद्रा आती है। • स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी) के तैल की 1 बूंद बताशे में डालकर खिलाने तथा ऊपर से दूध पिलाने से अनिद्रा दूर हो जाती है। • बैंगन के पत्तों का रस 20 ग्राम, इतना ही सफेद प्याज का रस और शहद 15 ग्राम एकत्र मिलाकर रात्रि के समय सोने से 1 घंटा पूर्व देकर ऊपर से थोड़ा दूध पिला देने से गहरी नींद आती है तथा स्नायु मण्डल का तनाव कम हो जाता है। • सर्पगन्धा का चूर्ण अथवा खुरासानी अजवायन 1-1 ग्राम रात्रि-शयन के पहले दूध से ले लेने से निद्रा भली प्रकार आती है। • सौंफ 6 ग्राम, पानी 40 ग्राम लेकर क्वाथ करें। जब पानी 10 ग्राम शेष रह जाये तो उसमें 1 पाव गाय का दूध और 10 ग्राम गाय का घी मिलाकर पिलाने से अनिद्रा में लाभ होता है। • सर्पगन्धा तथा काली मिर्च दोनों सम मात्रा में लेकर अलग-अलग कूटपीसकर सुरक्षित रखें। इसे 250 म...

बाबलापन ,madness, उन्माद, पागलपन (Insanity)

चित्र
 ( बाबलापन ,madness, उन्माद, पागलपन (Insanity) रोग परिचय-इस रोग से रोगी अस्वाभाविक हरकतें करने लगता है। इसका कारण होता है मस्तिष्क की स्वाभाविक स्थिति में गड़बड़ी अथवा विकृति उत्पन्न हो जाना। इसमें रोगी की स्मरण शक्ति-लोप हो जाता है। रोगी अजीबो गरीब हरकतें करने लगता है। कभी रोता है, कभी गाता है, कभी हँसता है। रोगी का अपने मास्तष्क पर सही नियन्त्रण नहीं रह पाता है। इसी को उन्माद रोग अथवा पागलपन कहा जाता है। उपचार • बच और कुलिंजन का चूर्ण सम भाग एकत्र कर 4 से 12 रत्ती की मात्रा में दिन में 2 बार शहद से चटाने से उन्माद में लाभ होता है। • शंखपुष्पी-स्वरस को मृधु के साथ 20 दिन तक नित्य देने से सभी प्रकार के उन्माद में लाभ होता है। • सर्पगन्धा और जटामांसी का चूर्ण 4-4 ग्राम तथा शक्कर 2 ग्राम मिलाकर जल के साथ दिन में 3 बार कुछ दिन सेवन करने से उन्माद में लाभ होता है। • इमली 20 ग्राम को पानी के साथ सिल पर पीसकर रोगी को पिला देने से उन्माद में लाभ होता है। • नीबू के छाया-शुष्क छिलकों का चूर्ण 6 ग्राम रात्रि भर 400 ग्राम पानी में भिगोकर प्रातःकाल इसमें मिश्री मिलाकर पिलाने से उन्...