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दिसंबर 12, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सर्दी, जुकाम, नजला,नाक बहना

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                (सर्दी, जुकाम, नजला,नाक बहना) रोग परिचय - यह रोग हो जाने से नाक से तरल बहता रहता है। नाक की श्लैष्मिक कला में शोथ हो जाता है। यही तरल धीरे-धीरे गाढ़ा बलगम सा बन जाता है। नाक कभी खुल जाती है, कभी बन्द हो जाती है। इसके कारण सिर-दर्द, बदन दर्द एवं ज्वर भी हो जाता है। भोजन का स्वाद बिगड़ा हुआ रहता है। प्रायः यह ठन्डी हवा (ठंड लगना), मौसम बदलना अथवा यात्रा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर आवो-हवा व पानी बदलना तथा बरसात में भीग जाने इत्यादि से होता है। उपचार • अदरक 3 ग्राम, काली मिर्च 5 नग, मिश्री 6 ग्राम सभी को 150 ग्राम जल में औटाकर चतुर्थांश रहने पर छानकर पिलाने से प्रतिश्याय (जुकाम) में विशेष लाभ होता है। • गुड़ 10 ग्राम को 40 ग्राम दही और 3 ग्राम काली मिर्च के चूर्ण के साथ मिलाकर 3 दिन प्रातःकाल सेवन करने से खुश्क जुकाम या उपद्रव युक्त (दुर्गन्धित) जुकाम में लाभ हो जाता है। • जुकाम की प्रारम्भिक अवस्था में एक स्वच्छ महीन वस्व में 10-15 ग्राम की मात्रा में स्वच्छ की हुई अजवायन को बाँधकर (पोटली थोड़ी सी ढीली रखें) हथेली पर ...

छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत का दर्द

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(छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत का दर्द ) रोग परिचय-छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत के साथ मिली होती है। इसमें संक्रमण के फलस्वरूप तीव्र रूप में परिवर्तन होकर छेद हो सकता है तथा इसका विषैला तरल पेट की झिल्ली (पेरीटोनियम) में पहुँचकर वहाँ सूजन उत्पन्न कर सकता है। पहले नाभि के नीचे और आसपास बहुत सख्त दर्द होता है। यह दर्द अपना स्थान बदलता रहता है। कष्ट के कारण रोगी हिलता- डुलतां तक नहीं है। उठने-बैठने तथा टाँग फैलाने और सिकोड़ने में दर्द होता है। दाँयी ओर के पेट और पेट की पेशी ऐंठकर सख्त हो जाती हैं। रोगी को कब्ज और दस्त भी आने लगते हैं। यह रोग युवावस्था तथा मध्य आयु में अधिक होता है। रक्त में (W. B. S) श्वेतकण (हाइट ब्लड सैल्स) बढ़ जाते हैं यह दर्द कई घन्टे तक रह सकता है। इसका भोजन करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, दर्द हर समय होता रहता है, अलबत्ता परिश्रम करने पर बढ़ जाता है। उपचार • रोगी को जुलाब न दें। बल्कि साबुन का एनिमा देकर पेट साफ करें तथा गरम पानी को तल में भरकर दर्द स्थल को सेकें। इस दर्द में अफीम का प्रयोग हानिकारक है। रोगी क...

जलोदर, जल (पेट में पानी पड़ जाना

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              (जलोदर, जल (पेट में पानी पड़ जाना) रोग परिचय-यकृत सम्बन्धी रोग की अन्तिमावस्था ही जलोदर अथवा जलन्धर या पेट में पानी भर जाने के रूप में परिलक्षित होती है। इसमें पेट कोछूने से पानी की लहरें स्पष्ट दिखाई देती हैं। पेट सूजा हुआ दृष्टिगोचर होता है। पेट सूजकर (पानी भरकर) मटके के समान हो जाता है। उपचार • करेले के पत्तों का स्वरस जलोदर के रोगी को उचित मात्रा में कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर में लाभ होता है। इससे पेशाब बढ़ जाता है तथा 1- 2 बार शौच भी हो जाता है तथा जलीयांश कम होने लगता है। • अजवायन को बछड़े के मूत्र में भिगोकर शुष्क कर लें। इसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में सेवन कराने से जलोदर में लाभ हो जाता है। • दूब (घास) के पंचांग का फान्ट या रस पिलाने से पेशाब अधिक होकर पेट हल्का हो जाता है। फान्ट या रस के साथ काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पिलाने से जलोदर के साथ-साथ सर्वांग-शौथ में भी लाभ होता है। • पुनर्नवा की जड़ 10 ग्राम को गोमूत्र 20 ग्राम में पीसकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्र खूब खुलकर आने लगता है जिससे जलोदर में लाभ होता है। पथ्य में केव...

आँव, पेचिश,दस्त, टॉयलेट में खून आना

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               (आँव, पेचिश,दस्त, टॉयलेट में खून आना) रोग परिचय आँतों और मलाशय में ऐंठन उत्पन्न होती रहती है तथा पीड़ा भी होती है। मल उतरने में कष्ट होता है जोर लगाने पर सफेद आँव निकलती है, रोगी को रक्त भी आता है। आँव में रक्त मिला हुआ भी निकलता है। रोगी बेचैन रहता है। उपचार • जरा सी हींग को दही में लपेटकर प्रयोग करें। • प्याज 60 ग्राम को छीलकर महीन कूट लें और उसे 5-6 बार जल से धोकर 240 ग्राम गाय के ताजा दही के साथ खायें, यह 1 खुराक है। दोपहर और शाम को ऐसी खुराकें लें। 2-3 दिन में रोग जड़मूल से नष्ट हो जाता है। • राल 20 ग्राम लेकर बारीक कूट-पीसकर कपड़छन कर लें। इसकी 3 पुड़ियां बना लें। प्रतिदिन 1 पुड़िया 100 ग्राम दही में चीनी मिलाकर रोगी को सेवन करायें । केवल तीन दिन में पूर्ण आराम हो जायेगा ।• काकड़ा सिंगी 10 ग्राम को कूट-पीसकर शीशी में भरकर सुरक्षित रख लें। इसे 1 से 2 ग्राम की मात्रा में 4-4 घंटे के अन्तराल से दही में मिलाकर सेवन करने से एक ही दिन में लाभ हो जाता है। • राल 25 ग्राम और मिश्री 50 ग्राम दोनों को कूट-पीसकर कपड़छन कर सुरक...