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शिरा-कुटिलताजन्य विचर्चिका (Vicersandeins)

शिरा-कुटिलताजन्य विचर्चिका (Vicersandeins) रोग परिचय-शिरा के कुटिल, टेड़ी-मेढ़ी हो जाने पर उस स्थान की त्वचा पर एक्जिमा उत्पत्र हो जाता है। आक्रान्त स्थान पर जलन उत्पन्न करने वाली लाल-लाल फुन्सियाँ निकल आती हैं। वे खुजलाने पर व्रणों (Ulcers) में परिवर्तित हो जाती हैं। इन व्रणों से स्वच्छ जल के सदृश रस स्खवित होता रहता है जिसके कारण अत्यधिक खाज और दाह होता है। यह रोग शिरा के ऊपर त्वचा पर शिरा को टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए निकलता है। उपचार) • 'पंचतिक्त घृत गुग्गुल' 6 से 12 ग्राम तक गाय के दूध अथवा ताजा जल से दिन में 2-3 बार सेवन करें । • 'सारिवाद्यारिष्ट' एवं 'महामन्जिठारिष्ट' क्रमशः 15 मि.ली. और 10 मि.ली. में जल 25 मि.ली. मिलाकर दिन में 2 बार भोजनोपरान्त सेवन करें । • आक्रान्त त्वचा को धो-पौछ व सुखाकर दिन में 2-3 बार 'महामरिच्यादि तैल' लगायें । तदुपरान्त हाथों को साबुन से धोकर स्वच्छ कर लें। • 'गन्धक रसायन' रोगी की आयु व दशा को दृष्टिगत रखते हुए 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक मधु से सुबह-शाम दिन में 2 बार सेवन करें। • प्रथम कोष्ठ शुद्धि हेतु इच्छाभेदी रस की...