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जनवरी 7, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

योनिशोथ (Vaginitis)yoni shodh,yoni ki khuski

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(योनिशोथ (Vaginitis)yoni shodh,yoni ki khuski) रोग परिचय-आजकल 90 प्रतिशत स्वियों को यह रोग होता है। इस रोग के प्रारम्भ में (नये रोग में) योनि की झिल्ली लाल और खुश्क हो जाती है उसमें जलन रहती है और दर्द होता है, जो उठने-बैठने और चलने-फिरने से बढ़ जाता है। यह दर्द योनि और गुदा के मध्य भाग में अधिक होता है। इस रोगके उपद्रव स्वरूप रोगिणी का शरीर टूटता है, ज्वर हो जाता है, कमर सिर और पिन्डलियों में दर्द होता है। मूत्र थोड़ी मात्रा में तथा कई बार जलन के साथ 2- 3 दिन के बाद लेसयुक्त पतला पानी आने लग जाता है। यह रोग जब 2 सप्ताह तक दूर नहीं होता है तो रोग पुराना (क्रोनिक) हो जाता है। ऐसी अवस्था में योनि से गाढ़ी छाछ की भाँति पानी आने लगता है। कमर में दर्द रहता है, भूख कम लगती है, कब्ज रहने लगती है, किसी काम करने की इच्छा नहीं होती है। रोगिणी कमजोर हो जाती है। यह रोग प्रायः शारीरिक कमजोरी, सूत में अधिक गर्मी, अत्यधिक मैथुन अथवा संभोग का बिल्कुल ही छोड़ देना, मासिक बन्द हो जाना, रुक जाना, सुजाक, बच्चा का अधिक कष्ट से उत्पन्न होना, गन्दा रहना, खट्टे और गर्म भोजनों का अधिक खान-पान, चोट ...

योनिद्वार के घाव (Ulcers of Vulva)yoni ke ghav

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(योनिद्वार के घाव (Ulcers of Vulva)yoni ke ghav) रोग परिचय-फोड़े-फुन्सियों के कारण अथवा उपदंश रोग के कारण योनि के चारों ओर घाव हो जाते हैं और उनमें पीप पड़ जाती है जिसके कारण रोगिणी को प्रायः ज्वर भी हो जाया करता है। यदि ये घाव पुराने हों जाये तो रोगिणी को अत्यधिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। उपचार नीम के पत्तों के क्वाथ से घावों को धोकर निम्न मरहम लगायें। • गन्धक आमला सार 6 माशा, मुर्दासंग, राल, कमीला, प्रत्येक 6 माशा तथा पारा 2 माशा, नीला थोथा डेढ़ माशा, मेंहदी के पत्ते 6 माशा, मुल्तानी मिट्टी 1 तोला लें। पहले गन्धक और पारा को खूब खरल करके कज्जली बना लें । फिर सरसों के तैल में सभी औषधियाँ डालकर इतना खरल करें कि मरहम बन जाये (सरसों का तैल यदि 1 वर्ष पुराना हो तो अति उत्तम है, शुद्ध व असली भी होना चाहिए ।)

योनि-कपाट की फुन्सियाँ,yoni ki foonceyan

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(योनि-कपाट की फुन्सियाँ,yoni ki foonceyan) रोग परिचय-इस रोग में योनि के बाहर छोटी-छोटी फुन्सियाँ निकल आती हैं, ये फुन्सियाँ लाल, सफेद और छोटी-छोटी होती हैं। कई बार इनमें पीप पड़जाती है। जिनमें प्रायः खुजली नहीं होती, परन्तु तीव्र जलन होती है। यह रोग सफाई न रखने, गन्दा रहने तथा योनिद्वार की खुजली के कारण होता है। उपचार- नीम या कार्बोलिक साबुन से पीड़ित स्थान को धोकर स्वच्छ रखें। • मुर्दासंग, कमीला, सफेदा काश्मरी प्रत्येक 6 माशा, कपूर 3 माशा को खूब खरल कर के गाय के 2 तोला घी में 21 बार नीम के क्वाथ से धोकर औषधियों को मिलाकर सुरक्षित रख लें। इस औषधि (मलहम) को पीड़ित स्थान पर लगायें। यदि उपदंश रोग के कारण छोटे-छोटे सख्त मस्से योनि के बाहर निकल आये हों तो उसकी चिकित्सा करें। मंजिष्ठादि क्वाथ व खदिरारिष्ट का सेवन करें तथा मस्सों को क्रोमिक एसिड से जला दें। रोगिणी प्रत्येक प्रकार के गरिष्ट खट्टे और वातवर्धक भोजनों से परहेज रखें। मीठी वस्तुओं को भी न खाये तथा सफाई का विशेष ध्यान रखें ।