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चम्बल,अपरस(Proriasis)psoriasis,chambal,apras,chamdi rog,pitt se hone wale chamdi rog

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(चम्बल,अपरस(Proriasis)psoriasis,chambal,apras,chamdi rog,pitt se hone wale chamdi rog) रोग परिचय-यह रोग प्रायः कुहनी, घुटनों, पीठ, छाती, जाँघों इत्यादि चर्म पर गुलाबी रंग के पित्त के सिरे जैसे छोटे-छोटे दानों के रूप में उत्पन्न होता है। इन दानों में पीप नहीं होती है। यह एक अत्यन्त हठीला रोग है जो वर्षों तक बना रहता है। कभी-कभी यह स्वतः दब जाता है किन्तु कुछ समय बाद अथवा विशेष मौसम में पुनः उभर आता है। यह रोग प्रायः गठिया, आमवात, दस्तों का पीप युक्त होना, टान्सिल और गर्भाशय ग्रीवा में जीवाणुओं के संक्रमण होने तथा घी, मक्खन आदि के अधिक सेवन करने तथा दांतों के विकार-पायोरिया आदि के कारण एवं अजीर्ण और उपदंश आदि रोगों के कारण यह रोग हो जाता है।प्रारम्भ में त्वचा पर गुलाबी या लाल अथवा बैंगनी रंग के बहुत ही छोटे- छोटे पीप रहित दाने निकलते है, जो बाद में आपस में मिलकर एक बड़ा ताम्रवर्ण का चकत्ता बन जाता है। इसके समीप की त्वचा पर लाल रंग का प्रदाहयुक्त एवं रोगाक्रान्त स्थान ऊँचा और सूखा सा हो जाता है। उस चाँदी के सदृश छिलके उतरते रहते हैं। इनमें पीप नहीं होती है किन्तु खुजली होती है...

एक्जिमा, छाजन, पामा,eczema,chhoti chhoti foonsiyan,chamdi rog,khujli,khujli se hone wale ghhav

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(एक्जिमा, छाजन, पामा,eczema,chhoti chhoti foonsiyan,chamdi rog,khujli,khujli se hone wale ghhav) रोग परिचय-इसे अकौता, चम्बल, छाजन, पामा, पानीवात आदि अनेक नामों से जाना जाता है। इसका प्रकोप चर्म पर खाज-खुजली, जलन तथा दर्द युक्त छोटी-छोटी बारीक फुन्सियों से प्रारम्भ होता है। यही छोटी-छोटी फुन्सियाँ या दानें खुजलाते-खुजलाते घाव का रूप धारण कर बड़ा आकार ग्रहण कर लेते हैं। रोग नया हो या पुराना, बड़ी कठिनाई से ठीक होता है। इस रोग का कारण पाचन विकार, शारीरिक कमजोरी, वंशज प्रभाव, वृक्क शोथ, मधुमेह, गाऊट (छोटे जोड़ों का दर्द) अन्य जोड़ों का दर्द, स्थानीय खराश, साबुन का अधिक प्रयोग, बच्चों का दाँत निकलना या पेट में कीड़े होना, पसीने की अधिकता, चर्म से भूसी उतरना इत्यादि हैं। (उपचार • पुनर्नवा (साठी) की जड़ 125 ग्राम को सरसों के तैल में मिलाकर पीसें। फिर 50 ग्राम सिन्दूर मिलाकर मरहम तैयार करलें। इस मरहम को कुछ दिन लगाने से चम्बल जड़मूल से नष्ट हो जाता है। शर्तिया दवा है। • सरसों के तैल 50 ग्राम में थूहर (सेंहुड़) का डन्डा रखकर खूब गरम करें। जब थूहर जेल जाए तब जले हुए डन्डे को बाहर फें...