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गुर्दे की पथरी,पथरी अश्मरी (Stone)

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           (गुर्दे की पथरी,पथरी अश्मरी (Stone) रोग परिचय-इसे वृक्काश्मरी के नाम से भी जाना जाता है। गुर्दे की पथरी अत्यन्त कष्टदायक होती है। इसमें रोगी को भयंकर पीड़ा होती है। कभी- कभी तो रोगी को इतना तीन्न (अधिक) दर्द होता है कि रोगी की स्थिति बदहवास (पागलों की भांति) हो जाती है। यह चपटी, गोल, चिकनी, खुरदरी आदि सभी प्रकार की होती है। मैग्नेशियम फास्फेट से बनी पथरी का रंग सफेद अथवा पीलापन युक्त होता है। यह पथरी मुलायम और अण्डाकार होती है और मूत्राशय में बनाकरती है। इस पथरी में मूत्र का स्वभाव क्षारीय होता है, इसलिए इस पथरी के रोगी क्षारीय औषधि में न देकर अम्लीय (खट्टी) औषधि में देते हैं। पथरी का रोग कोई नया रोग नहीं है। प्राचीन चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थों में इस रोग के लक्षण विस्तारपूर्वक लिखे हुए मिलते है। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में यह रोग अधिक पाया जाता है। शरीर में विकारों के कारण मूत्र में ठोस पदार्थ निकलने लग जाते हैं। यदि यह पदार्थ वृक्कों के गह्वर (मूत्र प्रणाली) अथवा मूत्राशय में रह जायें तो वह एकत्रित होकर एक दूसरे के साथ चिपक कर ...

आँख आना, अभिष्यन्द,गुहोरी,आंख पे फुंसी

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      (आँख आना, अभिष्यन्द,गुहोरी,आंख पे फुंसी) रोग परिचय-इस रोग में आँखें दुखने पर कड़क, जलन, पीड़ा, तथा जल स्राव होता है, नेत्र लाल तथा शोथयुक्त हो जाते हैं, नेत्र खोलने में कष्ट होता है। शीत, चोट, धूल का कण अथवा 1 आंख आने पर उसके व्यवहार में आई हुई वस्तुओं का उपयोग, धूप, ओस तथा विटामिन 'ए' का शरीर में अभाव इत्यादि कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है। उपचार • दो ढाई तोले करेले के रस में 4-6 रत्ती फिटकरी का चूर्ण मिलाकर स्वच्छ कपड़े से छानकर शीशी में रख लें। दिन में 3-4 बार इस लोशन को ड्रापर से नेत्रों में डालने से जलन, कड़क, लाली आदि विकार नष्ट हो जाते हैं। • नौसादर और भुनी फिटकरी 4-4 माशा लें। दोनों को 2 तोला करेला के रस में खरल कर शुष्क करके शीशी में सुरक्षित रख लें। इसे सलाई द्वारा नेत्रों में लगाने से 3-4 दिनों में रतौंधी का रोग दूर हो जाता है। • ककरौंदा स्वरस की 2-2 बूंदें सुबह-शाम आँख में डालने से अभिष्यनन्द में लाभ होता है।• गुलाब जल 2-2 बूंद सुबह-शाम आँख में डालने से नेत्राभिष्यन्द-जन्य उपद्रव शान्त होते हैं तथा लालिमा भी खत्म हो जाती है। • पान के रस में...