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घाव में कृमि पड़ जाना (Worms in Woulds)maggots in the wound,ghav mein keede pad jana

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घाव में कृमि पड़ जाना (Worms in Woulds)maggots in the wound,ghav mein keede pad jana रोग परिचय-कभी-कभी असावधानी के कारण रिसते हुए घाव को खुला छोड़ देने पर उस पर मक्खियों (लार्वा) छोड़ देने से पीप एवं रक्व में सम्पर्क पाकर वे मांस को काट-काट कर खाते रहते हैं जिसके कारण रोगी को भयंकर दर्द और कष्ट होता है। कभी-कभी तो काटते-काटते वह अन्दर से रक्त तक निकाल देते है। धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती रहती है, क्योंकि मक्खियाँ बार-बार उस घाव पर बैठकर अण्डे छोड़ती रहती हैं। उपचार घाव के आस-पास खान्ड के दाने छोड़ देने से खाने के लोभ में की बाहर निकल आते हैं, उन्हें विसंक्रिमत (खौलते पानी में उबालकर) साफ की चिमटी से पकड़-पकड़ कर बाहर निकाल दें।薬局 • उक्त घाव के पार्श्व भाग में या समीप में तारपीन के तेल से तर रुई की फुरैरी रखने से, इसकी गन्ध से व्याकुल होकर पिल्लू बाहर निकलकर घाव पर रखी हुई रुई में चिपक जाते हैं, जिन्हें चिमटी से से पकड़कर बाहर निकाल लेना चाहिए । • घाव में कार्बोलिक एसिड (फेना) का आधा से 1 प्रतिशत तैलीय लोशन डाल रूई की फुरैरी रखने से, पिल्लू (कीड़े) मर-मर कर श्वास लेने के लिए...

औषधि की प्रतिक्रिया से उत्पन्न चर्म रोग,dawaiyon se hone wale chamdi rog,medicine side effect

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औषधि की प्रतिक्रिया से उत्पन्न चर्म रोग,dawaiyon se hone wale chamdi rog,medicine side effect रोग परिचय-बहुत-सी औषधियों के सेवन अथवा प्रयोग करने से चर्मरोग, चकत्ते, ददौड़े, खुजली और चर्म में जलन हो जाती है। त्वचा लाल और शोथ-युक्त हो जाती है। उपचार- सर्वप्रथम उस औषधि का सेवन अथवा प्रयोग तत्काल बन्द कर दें, जिस प्रतिक्रिया स्वरूप चर्म रोग हुआ हो। ऐलोपेथी के चिकित्सक 'एन्टी हिस्टामीन' योगों (एबिल, इन्सीडाल फोरिस्टाल, बेनाड्रिल का प्रयोग करते हैं। • प्रवालपिष्टी (आ. सार संग्रह) 100 से 200 मि.ग्राम तक मधु से सुबह-शाम चाटें । • गन्धक रसायन (सिद्ध योग संग्रह) आयु व सामर्थ्यानुसार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक सुबह-शाम मधु से चाट कर ऊपर से महामंजिष्ठादि काढ़ा 15 मि.ली. समान जल मिलाकर पियें । • महामंजिष्ठारिष्ट (आयुर्वेद सार संग्रह) एवं खदिरारिष्ट (भैषज्य रत्नावली)प्रत्येक 15 मि.ली. लेकर दोनों को बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार सेवन करें । • निर्गुन्डी तैल (भै. रत्नावली) तथा नीम का तैल प्रत्येक समभाग एकत्र मिलाकर आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2 बार लगायें