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दिसंबर 20, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अग्नि-दग्ध (Burns),आग से जलना

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            (अग्नि-दग्ध (Burns),आग से जलना) रोग परिचय- इसमें रोग परिचय की आवश्यकता नहीं है। किसी कारणवश (लापरवाही के फलस्वरूप) आग से अथवा गरम पदार्थों से जल जाने की दुर्घटनाएँ घटित हो जाती हैं जिसके फलस्वरूप रोगी को पीड़ा, जलन की तकलीफ के साथ ही साथ जख्म (घाव) का शिकार बनना पड़ जाता है। उपचार • गाजर को पीसकर जले हुए स्थान पर लगाने से दाह की शान्ति होती है तथा फफोले नहीं पड़ते हैं। • केले के गूदे को फेंटकर एक स्वच्छ कपड़े पर मोटा-मोटा लेप करके अग्नि से जले हुए स्थान पर रखने से जलन शीघ्र ही दूर हो जाती है तथा व्रण नहीं बनता है। • करेले के रस को जले हुए स्थान पर वस्व भिगोकर रखने से दाह की शान्ति होती है। • जले हुए स्थान पर आलू को काटकर उसकी लुगदी बनाकर जले हुएस्थान पर लगाने से जलन शीघ्र शान्त हो जाती है तथा दाग नहीं पड़ता है। • बबूल के गोंद को जल में घोलकर अग्निदग्ध स्थान पर लेप करने से तत्काल जलन दूर होकर घाव दूर हो जाता है। • जले हुए स्थान को तुरन्त ठण्डे जल में भिगोकर रखना चाहिए। ऐसा प्रयोग तब तक करें जब तक कि जले हुए स्थान की जलन पूर्णरूपेण शा...

स्वप्नदोष, प्रमेह,night fall,गुपत रोग,मरदाना कमजोरी,sex problem, वीर्य का पतला होना

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   ( स्वप्नदोष,  प्रमेह,night fall,गुपत रोग,मरदाना कमजोरी,sex problem, वीर्य का पतला होना) नीरोग परिचय यह रोग वात-पित्त और कफ के दूषित हो जाने के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। इसमें मूत्र के साथ एक प्रकार का गाढ़ा-पतला विभिन्न रंगों कास्राव निकलता है। इस रोग की यदि उचित चिकित्सा व्यवस्था न की जाये तो रोगी कुछ ही समय में हड्डियों का ढाँचा बन जाता है। समस्त प्रकार के प्रमेह रोगों में पेशाब अधिक होना तथा पेशाब गन्दला होना रोग का प्रमुख लक्षण होता है। पेशाब के साथ या पेशाब त्याग के पूर्व अथवा बाद में वीर्यस्राव होना ही प्रमेह है। अधिक दही, मिर्च-मसाला, कडुवा तेल, खटाई इत्यादि तीक्ष्ण और अम्ल पदार्थ खाने, घी, मलाई, रबड़ी इत्यादि मिठाइयां तथा बादाम, काजू आदि स्निग्ध और पौष्टिक पदार्थों का प्रयोग करते हुए शारीरिक परिश्रम न करने, दिन-रात सोते रहने, सदैव विषय-वासना (Sexul) कार्यों और विचारों में लिप्त रहने से प्रमेह रोग की उत्पत्ति होती है। प्रमेह हो जाने से वीर्य क्षीण होकर पुंसत्व (मर्दाना) शक्ति का ह्रास हो जाता है फलस्वरूप शरीर दिन प्रतिदिन क्षीण होता जाता है। जब तक श...

महलायों के योंन रोग योनि इन्फेक्शन योनि सफ़ेद पानी, श्वेत प्रदर (Leucorrhoea

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(महलायों के योंन रोग योनि इन्फेक्शन    योनि सफ़ेद पानी, श्वेत प्रदर (Leucorrhoea) रोग परिचय-यह स्त्रियों तथा पुरुषों दोनों को समान रूप से होता है। अन्तर मात्र इतना है कि खियों में होने वाले योनि से स्राव को "प्रदर" कहा जाताहै तथा पुरुषों को होने वाले स्राव को "प्रमेह" कहा जाता है। पुरुष की अपेक्षा स्वी के स्त्राव में अधिक दुर्गन्ध आती है। पुरुषों को यह मल-मूत्र त्याग के समय होता है जबकि स्वी को यूं ही होता रहता है। पुरुषों का स्राव सफेद रंग का तथा स्वियों का स्राव विभिन्न रंगों का हो सकता है। मुख्यतः 2 रंग ही होते हैं श्वेत तथा लाल । इसी कारण यह श्वेत प्रदर तथा रक्त प्रदर के नाम से जाना जाता है। उपचार • 1-1 केला सुबह-शाम 6-6 ग्राम उत्तम घृत के साथ सेवन कराना श्वेत प्रदर में लाभप्रद है। • जवासा का चूर्ण बनाकर 4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम ताजा जल से सेवन कराने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है। • दारु हल्दी के क्वाथ में शिलाजीत 3 ग्राम घोलकर पिलाने से मात्र 6 दिनों में श्वेत प्रदर रोग में लाभ हो जाता है। • नागकेशर चूर्ण 40 ग्राम, सफेद राल व मुलहठी का चूर्ण 3...