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जनवरी 5, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj

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(प्रसूत ज्वर (Puerperal Fever),bukhaar,pilsenta,ka ilaj) रोग परिचय- प्रसवोपरान्त होने वाले ज्वर को प्रसूत ज्वर कहा जाता है। प्रसव की असावधानियों, से जब योनि, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा आदि में संक्रमण लग जाता है अथवा बच्चा पैदा होने के बाद प्रसूता स्वी को जब आँवल (पिलसेन्टा) का विषैला पदार्थ रक्त में पहुँच जाता है तभी यह ज्वर हो जाता है। बच्चा पैदा होने के 3 दिन बाद प्रसूता स्त्री को सर्दी लगकर कम्पन के साथ यह ज्वर चढ़ जाता है जिसका तापमान 102 से 105 डिग्री फारेनहाइट तक होता है। नाड़ी अत्यधिक तेज (तीव्र), गर्भाशय के स्थान पर दर्द, जी मिचलाना, दस्त लगना, कै (उल्टी वमन) होना, पेट फूल जाना, स्तनों में दूध न उतरना, गर्भाशय से दूषित तरल निकलना बन्द हो जाना इत्यादि लक्षण प्रकट हो जाते हैं। रोग की अधिकता में रोगिणी बेहोशी में बड़बड़ाती रहती है। पेट अधिक फूल जाने,समय पर उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव से रोगिणी की मृत्यु हो सकती है। इस रोग का मुख्य कारण कीटाणुओं का संक्रमण है। अक्सर देखने में आया है कि दाई (नर्स) के गन्दे हाथों अथवा प्रसूता की गुदा से कीटाणु गर्भाशय में चले जाते हैं अथ...

(हाईपरएसथेजिया)पेनिस सेंसविटी,लिंग में उत्तेजना की अधिकता,apoorn kaam ichha

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(अपूर्ण कामेच्छा (हाईपरएसथेजिया)पेनिस सेंसविटी,लिंग में उत्तेजना की अधिकता,वीर्य का जल्दी निकलना) रोग परिचय-पुरुष के लिंग के चर्म में संज्ञावाही नाड़ियों (सेन्सरी नर्वज) और स्नायु तन्तुओं में एक असाधारण संज्ञा पैदा हो जाती है। जिसके फलस्वरूप लिंग में बहुत अधिक मात्रा में रक्तसंचार होने लग जाता है। इसी का परिणाम यह होता है कि शिश्न में बार-बार उत्तेजना और हर्षण (एरेक्शन) होने लगता है। फलस्वरूप मैथुन इच्छा बढ़ जाती है। कभी-कभी किसी-किसी रोगी के लिंग में इतनी संज्ञा बढ़ जाती है कि कपड़े की मामूली रगड़ अथवा हाथ से छुअन होने पर भी उत्तेजना पैदा हो जाती है और रोगी मैथुन का आनन्द प्राप्त करने लग जाता है। इस रोग से ग्रसित रोगी अपनी नासमझी के कारण इस रोग को अपनी काम शक्ति (Sex Power) और मर्दाना ताकत समझकर खुश होता रहता है और उसे होश तब आता है, जब चिड़िया पूरा खेत ही चुग जाती हैं। इस रोग का प्रधान कारण हर समय कामवासना सम्बन्धी विचारों में खोये रहना, सुन्दर स्त्रियों को निहारना, उनके नग्न चित्र अथवा ब्लू फिल्म देखना, अश्लील कहानियां, शेरो शायरी, उपन्यास आदि पढ़ना, कुसंगित, हस्तमैथुन क...

नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav)

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(नासूर, फोड़े, फुन्सी, घाव,nasoor,code,funcy,ghaav) रोग परिचय नासूर को नालवण, विवर तथा अंग्रेजी में फिस्यूला (Fistula) और साइनस (Sinus) के नामों से भी जाना जाता है। पुराना और गहरा घाव जिसके फटने के बाद कम से कम 40 दिन बीत चुके हों, नासूर कहलाता है। यह अंदर से गहरा ट्यूब की भांति तंग टेढ़ा और लम्बा होता है। किन्तु इसका मुँह छोटा होता है और उसके अन्दर चारों ओर कठोर और सफेद मांस बढ़ जाता है। इस सफेद मांस को दूषित मांस भी कहा जाता है। नासूर से सदा पीली गाढ़ी या पतली पीव बहती रहती है। कभी पीव बहनी बन्द हो जाती है और घाव का स्थान शोधयुक्त हो जाता है। किन्तु दोबारा बहने पर शोथ दूर हो जाता है। नासूर का गड्‌ढा (नलिका) कभी सीधा कभी टेढ़ा-मेड़ा होता है। तथा यह कभी-कभी पेशी या सिरा अथवा धमनी, (बन्धनी) या किसी अंग तक पहुँच जाता है। कभी-कभी एक नासूर के कई मुँह भी होते हैं। नासूरों के भी विभिन्न नाम होते हैं। जैसे गुदा के पास होने वाले नासूर को भगन्दर (फिस्यूला इन एनो) कहते है। यदि नासूर का मुँह केवल एक ओर होता है। तो उसको अंग्रेजी में साइनस 'कहते हैं, एवं जिस नासूर की नलिका के 2 मुँह...

धनुर्वात, धनुष्टंकार (Tetanus),टेटैनस

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(धनुर्वात, धनुष्टंकार (Tetanus),टेटैनस) रोग परिचय-इस रोग को धनुस्तम्भ, धनुर्वात, धनुष्टंकार, धनुपतानक, हनुस्तम्भ तथा आंग्ल भाषा में टेटैनस के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग का प्रधान कारण शलाकार कीटाणु होते हैं। जिसे आंग्ल भाषा में 'वैसिलस टिटेनैस' कहते हैं। इन कीटाणुओं का निवास स्थान गौ, अश्व इत्यादि पशुओं की अन्तडियां हैं। ये कीटाणु पशुओं की अंन्तडियों में रहते हुए भी उन्हें कुछ हानि नहीं पहुँचाते उनके मल द्वारा बाहर निकलते हैं। इसलिए ये अश्व-शालाओं (जहाँ पर लीद पड़ी रहती है) में विशेष रूप से होते हैं। मार्ग या खेत इत्यादि में भी जहाँ लीद पड़ी हो, वहाँ पर किसी मनुष्य को चोट लग जावे और उसमें किसी प्रकार से लीद में संसर्ग हो जावे तो उस क्षत में कीटाणु प्रविष्ट होकर रोग उत्पन्न कर देते हैं। इन कीटाणुओं की वृद्धि होने में 1 से 20 दिन तक का समय लग जाता है। नवजात शिशु को जंग लगे शस्व से नाल को काटने से भी यह रोग हो जाता है। ग्रामीण अंचलों में इसे 'जमोगा' रोग के नाम से भी पुकारते हैं। यह एक संक्रामक रोग है। जो कीटाणुओं के प्रकोप से शरीर को धनुष की भाँति टेढ़ा कर ...