पीलिया, पाण्डु, कामला, जान्डिस रोग और इसका इलाज)
(पीलिया, पाण्डु, कामला, जान्डिस रोग और इसका इलाज)
लिबोमिन टेबलेट (चरक) 1-2 गोली दिन में 2-3 बार दें। यकृत विकार जन्य पान्डुरोग में उपयोगी है। बच्चों के लिए इसका सीरप तथा ड्राप्स उपलब्ध नहीं है ।
. लिव 52 टेबलेट व सीरप (हिमालय ड्रग) मात्रा गुण उपर्युक्त है।
रोग परिचय- इस रोग में शरीर की चमड़ी चर्मं का रंग पीला नजर आने लगता है । रोगी की आँखों तथा नाखूनों का रंग पीला पड़ जाता है । मूत्र भी पीले रग का आने लगता है। यह रोग जब अत्यधिक बढ़ जाता है, तब रोगी को सब कुछ पीला ही पीला नजर आने लगता है । यहाँ तक कि रोगी को पसीना तक पीला ही निकलता है । यही रोग पीलिया के नाम से जाना जाता है ।
( उपचार )
फिटकरी को भूनकर बारीक पीसकर शीशी में सुरक्षित कर रख लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में 20 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करायें । दिन में कई बार केबल दही खिलाते रहें। यदि दहीं उपलब्ध न हो तो छाछ दैं। एक सप्ताह में रोगी ठीक हो जायेगा ।
सफेद चन्दन 5 ग्राम, ऑबा हल्दी पिसी हुईं 6 ग्राम, दोनों को शहद में मिलाकर सात दिन चटायें, लाभप्रद है ।
कलमी शोरा 10 ग्राम, मिश्री 50 ग्राम, दोनों को खरल करके बारीक कर लें। इसे 3 से6 ग्राम तक की मात्रा में दिन में 3 बार जल से सेवन करायें। इसके प्रयोंग से पाण्डु रोग, मूत्र में जलन तथा पेशाब का रक-रुककर आना ठीक हो जाता है ।
मूली के हरे रंग का रस 450 ग्राम में चीनी इतनी मिला लें कि मीठा हो जाये तदुपरानत मल-मलके कपड़े से छानकर रोगी को पिला दें। पीतेही - लाभ मिलेगा । मात्र सात दिन में रोग जड़ मूल से नष्ट हो जायेगा ।
कड़वी तोरईं का रस 2-3 बूँद नाक में चढ़ा लें । दवा अन्दर जाते ही पीले रंक का पानी निकलना प्रारंभ हो जायेगा। पानी निकलकर कर रोगी एक ही दिन में ठीक हो जाता है ।
नोटः--यह दवा बहृत अधिक तेज (उम्र) है । कोमल प्रकृति बालों को सेबन कदापि न करायें। यदि नाक में अधिक जलन महस्स हो तो बाद में गौधृत की नस्य लें । यदि ताजा कड़बी तोरई उपलब् न हो तो सूखी तोरईं का टुकडा रातभर पानी में भिगोकर उस पानी का प्रयोग कों ।
फिटकरी (एलम) कच्बी 20 ग्राम बारीक पीसकर 21 पुड़िया बनाकर प्रतिदिन एक पुड़िया मक्खन के साथ सेवन करायें । पुराने से पुराना पाण्डु रोग नष्ट हो जायेगा ।
बढ़िया सफेद फिटकरी भूनकर बारीक (सूक्ष्म) पीसकर किसी साफ शीशी में सुरक्षित रख लें । यदि पाण्डु रोग 1 मास से अधिक समय का है तो प्रथम दिन 1 ग्राम, दूसरे दिन 2 ग्राम, तीसरे दिन 3 ग्राम तदुपरान्त 3 ग्राम नित्य दवा फाँककर ऊपर से दही का एक पियाला पिला दिया करें। मात्र 7 दिनों में ही पुराने से पुराना पाण्डु रोग जड़ से नष्ट हो जायेगा ।
अरण्ड के पप्तों का रस 10 से 20 ग्राम तक गाय के दूधमें मिलाकर प्रतिदिन सुबह शाम (दिन में 2 बार) पिलायें । इसके सेवन से 3 से7 दिनों में पीलिया नष्ट हो जाता है ।
नोट:- इस योग के प्रयोग से यदि किसी को दस्त आने लग जायें तब भी चिता न करों। दही और चाबल खाने को दें। जिसे दसत साफ न होता हो उसे दूध अधिक मात्रा में दें। रोटी बिल्कुल ही न दें।
गिलोय की लता गले में लपेटने से पाण्डु ब कामला दूर हो जाता है।
गिलोय के अर्क 50 ग्राम में 20 ग्राम शहद मिलाकर पिलाना पाण्डु रोग में परम लाभकारी है ।
नीबू का रस 10 ग्राम, खॉड़ 20 ग्राम, खाने का सोड़ा 4 रत्ती, नौसादर 2 रत्ती का मिश्रण 10 ग्राम पानी में मिलाकर दिन में 2 बार (प्रात: सायं) पिलाने से पाण्डु रोग में लाम होता है ।
आक के पत्ते 25 नग (वजन में जितने पत्ते हों उतनी ही मिश्री-चूर्ण मिलाकर) खरल में 3 दिनों तक इतना धोटें कि दोनों बिल्कुल सूरमें की भॉति हो जायें। इसे 2 ग्राम की मात्रा में जल से दें।
टमाटर के 100 ग्राम रस में 3 ग्राम काला नमक मिलाकर सुबह शाम खिलाने से पाण्डु रोग में लाभ होता जाता है ।
पाण्डु रोग जो यकृत की पित्त निकालने वाली नली (Bile Duct) के रुकने से होता है। उसके लिए निम्न प्रयोंग जो 'धन्वन्तरि गुप्त सिद्ध प्रयोगांक" से लिया है तथा कभी निष्फल नहीं होता है । इस योग को श्री चन्दगी राम जी वर्मा ने एक मुस्लिम फकीर से-भी प्राप्त किया था ।
नोट- अन्य किसी कारण से उत्पन्न पाण्डुता में इस योग से कोई लाभ नहीं होता है तो यह आजमायें । यह योग अत्यन्त साधारण है किन्तु शीधर लाभ करता है ।
प्रातःकाल एक धरेलू मक्खी पकड़कर उसे गुड़ में लपेटकर उसे रोगी को निगलवा दें। बस यही योग (दवा) है। पाण्डु रोगी जिसका शरीर पीला पड़ गया हो नेत्र व मूत्र आदि पीले हो गये हों, पिण्डलियों में दर्द इत्यादि हो- उसे इस प्रयोग से तत्काल लाभ होता है ।
प्रथयम दिन से ही मूत्र सफेद आने लगता है। नेत्रौ का पीलापन कम हो जाता है । दूसरे ही दिन रोगी अपने अन्दर उत्साह अनुभब करने लगता है तथा तीसरे दिन रोगी रोग मुक्त हो जाता है। यह प्रयोग प्रतिदिन एक बार केवल प्रात:काल ही 3 दिन तक करें। लाभप्रद कभी निष्फल नहीं होने वाला योग है। किन्तु रोगी से इस योग को पूर्णतय: छिपाकर सेबन करायें, ताकि इसे धृणा न हो ।
हल्दी के महीन चूर्ण 6 ग्राम को मट्ठा में मिलाकर सेबन करायें । पय्य में दही भात (चावल) खीलायें । मात्र 4-5 दिनों में ही पीलिया नष्ट हो जायेगी।
गाय की बंछिया का ताजा मूतर ढाई तोला से चार तोला तक नित्य खाली पेट पीने से जलोदर, उदरशूल, कामला, पाण्डु, यकृत-वृद्ध, प्लीहा-वृदध, अण्डवृदध, खाज-खुजली, कब्जियत, मन्दागन, अम्लपित्त इत्यादि रोग नष्ट हो जाते हैं। बच्चों को 1 तोला से 2 तोला तक ही सेवन करायें I
नौसादर, सुहागे का फूला, पंचलबण 2-2 तोला तया चित्रक-मूल, पीपलामूल, तीरकुट जीरा, अजवायन, लोह भस्म प्रत्येक 1-1 तोला गुड़ एबं 15 तोला को परस्पर कूटकर -मिलालें । फिर मिरतमान में भरकर सुरक्षित रख लें । 15 दिनों तक धूप में रखें '। उसके बाद छानकर बोतलों में भर लें iमात्रा 6 माशे से 1 तोला तक दिन में 2 बार भोजन के बाद ढाईं तोला जल के साय दें। यह द्रब (पेय) उदर रोग, प्लीहा, यकृत दोष, पान्डु, दोष, , कब्ज और उदर शूल इत्यांदि रोगो को थोड़ेही दिनों में नष्ट कर देता है।
एरन्ड के पतों का रस 10 ग्राम दूध के साथ मिलाकर नित्य प्रात:काल 5 दिनों तक पिलाने से गर्भबती को होने बाली कामला की प्रारम्भिक अबस्था में लाभ होता है
( पान्डु ,पीलीया नाशक कुछ दबाईया)
टेफेरोली (टी.टी. के.) टेबलेट ब सीरप मात्रा गुण उपर्युक्त है ।
लिबोट्रीट टेबलेट (झन्डू) मात्रा गुण उपर्युक्त ।
5. लिबरबून टेबलेट, सीरप (मार्तन्ड) यकृत विकारजन्य पान्डु में दें।
पान्डुहारी कैपसूल (गर्ग बनौषधि) 1-2 कैपसूल 2-3 बार ।| पान्डु रोग, खक्त्षय तथा यकृत-विकारों में निरापद कैपसूल हैं ।
पान्डुनौल कैपसूल (ज्वाला आयु.) मात्रा-गुण उपयुक्त !
द्रक्षा लौह कुमारी (धन्वन्तरि कार्या .) 2-4 चम्मच समान जल मिलाकर भोजनोपरान्त । पान्डु नाशक अति उत्तम पेय । क्षधा बढ़़ाता है । यकृत, आत्र की क्रिया को सामान्य अवस्था में लाता है
। एनर्जी्लिक्स सीरप (मार्तं्ड) टेबलेट ब सूची बेध । पान्डु रोग नाशक एवं शक्ति प्रदाता है
शंखद्रव सीरप (झन्डू) 2 से 5 बूंद तक 1 औस जल में मिलाकर दैं।
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