योनिशोथ (Vaginitis)yoni shodh,yoni ki khuski

(योनिशोथ (Vaginitis)yoni shodh,yoni ki khuski)

रोग परिचय-आजकल 90 प्रतिशत स्वियों को यह रोग होता है। इस रोग के प्रारम्भ में (नये रोग में) योनि की झिल्ली लाल और खुश्क हो जाती है उसमें जलन रहती है और दर्द होता है, जो उठने-बैठने और चलने-फिरने से बढ़ जाता है। यह दर्द योनि और गुदा के मध्य भाग में अधिक होता है। इस रोगके उपद्रव स्वरूप रोगिणी का शरीर टूटता है, ज्वर हो जाता है, कमर सिर और पिन्डलियों में दर्द होता है। मूत्र थोड़ी मात्रा में तथा कई बार जलन के साथ 2- 3 दिन के बाद लेसयुक्त पतला पानी आने लग जाता है। यह रोग जब 2 सप्ताह तक दूर नहीं होता है तो रोग पुराना (क्रोनिक) हो जाता है। ऐसी अवस्था में योनि से गाढ़ी छाछ की भाँति पानी आने लगता है। कमर में दर्द रहता है, भूख कम लगती है, कब्ज रहने लगती है, किसी काम करने की इच्छा नहीं होती है। रोगिणी कमजोर हो जाती है।

यह रोग प्रायः शारीरिक कमजोरी, सूत में अधिक गर्मी, अत्यधिक मैथुन अथवा संभोग का बिल्कुल ही छोड़ देना, मासिक बन्द हो जाना, रुक जाना, सुजाक, बच्चा का अधिक कष्ट से उत्पन्न होना, गन्दा रहना, खट्टे और गर्म भोजनों का अधिक खान-पान, चोट लग जाना अथवा तेज और खराश उत्पन्न करने वाली बत्तियों का योनि में बार-बार खाना तथा छोटी आयु में शादी हो जाना इत्यादि कारणों से हो जाता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्री इस रोग का कारण एक प्रकार के कीटाणु को बतलाते हैं जो योनि तरल में अम्लता कम हो जाने से उत्पन्न हो जाते हैं।

उपचार-सूखी मकोय, टेसू के फूल, खशखश के डोड़ा-प्रत्येक डेढ़ तोला को 2 सेर पानी में उबालें और सुरक्षित रखकर इससे प्रतिदिन 2-3 बार गरम (गुनगुना) डूश (योनि में सफाई) करें और गरम-गरम टकोर करें ।

• अशोकारिष्ट 2 से 4 छोटे चम्मच तक समान मात्रा में जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पियें।

• पुरानी योनि-शोथ में बंग भस्म 1 रत्ती, अन्डे की छिलके की भस्म 1 रत्ती, सुपारी चूर्ण 6 माशा, 20 तोला दूध के साथ सुबह-शाम खायें। इसके साथ ही योनि और गर्भाशय को शक्ति प्रदान करने वाली औषधियाँ भी खिलायें ।

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