गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna

(गर्भाशय में पानी पड़ जाना,Garbhasya mein paani padna)

रोग परिचय-इस रोग में गर्भाशय के अन्दर पतला स्राव एकत्रित हो जाता है। आरम्भ में पेडू के ऊपर उभार प्रतीत होता है और अन्त में जब तरल काफी अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है तब रोगिणी का पेट जलोदर रोग की भाँति हो जाता है। पेट के अन्दर पानी की लहरें प्रतीत होती है। पीड़ित स्वी कमजोर हो जाती है, उसकी सांस रुकने लगती है तथा हाजमा खराब हो जाता है। पेट में वायु (गैस) चलने लगती है। मासिक बन्द हो जाता है और गर्भ ठहर जाने जैसा सन्देह होने लगता है। जलोदर रोग में पेट, यकृत् और नाभि के आस-पास का भाग बढ़ता है जबकि इस रोग में पेट पेडू के स्थान से बढ़ना प्रारम्भ होता है। जलोदर रोग के विपरीत इस रोग में मूत्र भी अधिक मात्रा में आता है। यह रोग मासिक बन्द हो जाने, शरीर में कफ की अधिकता, यकृत् विकार तथा गर्भाशय और वृक्कों की कमजोरी इत्यादि के कारण हुआ करता है।

उपचार डाक्टर 'ट्रोकार यन्त्र' द्वारा गर्भाशय का पानी निकाल लेते हैं। पुनर्नवारिष्ट का सेवन लाभप्रद है। इस बूटी का रस प्रयोग करना भी लाभप्रद है।

• अजमोद, सोये के बीज, बायविडंग, खुश्क बेरोजा, लाहौरी नमक और नर- कचूर प्रत्येक औषधि का चूर्ण समान मात्रा में लेकर पतले साफ कपड़े में ढीली पोटली बनाकर रात को गर्भाशय के पास प्रतिदिन रखवायें। इससे गर्भाशय का पानी खुश्क हो जाता है।

• बकरी की मंगनियों की राख, अंगूर की लकड़ी की राख 1-1 तोला, गन्धक आमलासार 6 माशा, उपलों की राख 1 तोला पानी में पीसलें। फिर विशुद्ध 2 तोला सिरका मिलाकर मामूली गरम करके पेडू पर लेप करना अत्यधिक लाभप्रद है।

• रोगिणी वायुकारक भारी भोजन न खाये। मकोय (काकमाची) का साग, भुना हुआ मांस, भुनी हुई मूंग की दाल, मूली, शलजम आदि की सब्जियाँ खायें।प्यास में मकोय का अर्क पिलायें तथा प्यास को रोकने की कोशिश करें। शक्ति के अनुसार व्यायाम करें। पेय पदार्थ कम से कम मात्रा में सेवन करें। लोहे में बुझाया हुआ पानी बहुत कम मात्रा में पीना लाभप्रद है।

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