क्षय, राजयक्ष्मा (टी० बी०
(क्षय, राजयक्ष्मा (टी० बी०)
रोग परिचय-यह एक छूत का (संक्रामक) रोग है। जो एक से दूसरे में बहुत तेजी से हो जाता है। उचित चिकित्सा के अभाव में यह रोग मारक सिद्ध होता है। यह रोग एक कीटाणु 'वैसीलस ट्यूवर क्यूलेसिस' के द्वारा होता है।• प्रथम दिन 10 ग्राम की मात्रा में गौमूत्र पिलायें, 3 दिन पश्चात् 15 ग्राम कर दें। इसी क्रम से प्रत्येक 3 दिन बाद गौमूत्र की मात्रा 5-5 ग्राम बढ़ाते जायें। इस प्रकार मात्रा बढ़ाते हुए 50 ग्राम तक प्रतिदिन पिलायें। निरन्तर गौमूत्र के सेवन से क्षय (तपैदिक) नष्ट हो जाता है।
(उपचार)
• काली मिर्च, गिलोय सत्व, छोटी इलायची के दाने, असली वंशलोचन, शुद्ध भिलावा सभी को बराबर लेकर कूटपीसकर कपड़छन चूर्ण कर लें। दिन में 3 बार 2 ग्रेन (1रत्ती) की मात्रा में यह औषधि मक्खन या मलाई में रखकर रोगी को सेवन करायें। टी० बी० का अमृत तुल्य योग है।
• सुबह-शाम गधी का दूध 100-100 ग्राम की मात्रा में क्षय के रोगी को पिलाना अत्यन्त ही लाभकर है। यह क्षय नाशक तथा पौष्टिक होता है।
नोट-तपैदिक (क्षय) सर्वप्रथम चन्द्रमा नक्षत्रों के राजा को हुआ था। किंवदन्ती है कि 27 नक्षत्र इनकी पलियों के रूप में थीं। किन्तु यह मात्र एक पत्नी पर विशेष लगाव रखकर रति क्रिया में लीन रहते थे। जिसके कारण 26 पलियों ने अपने पिता से इस हेतु शिकायत की। जिसके फल स्वरूप चन्द्रमा के ससुर (श्वसुर) ने अपने दामाद को शरीर पर फफोले (क्षय) पड़ जाने का आप दे दिया था। यह रोग आयुर्वेद के मतानुसार बात, पित्त, एवं कफ तीनों दोषों के कारण हो सकता है। यदि क्षय किसी रोगी को वात प्रधान होगा तो उसकी पसलियों और कन्थों में दर्द होगा और यदि क्षय पित्त प्रधान होगा तो ज्वर रहेगा, खून की उल्टियां और खूनी दस्त होंगे तथा यदि क्षय कफ प्रधान होगा तो खाँसी और बुखार का जोर रहेगा और रोग की अन्तिमावस्था में सब कुछ कफ प्रधान ही हो जाता है। क्षय रोग में बुखार तोड़ने की औषधि सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि रोग का लक्षण छिपा लेने से रोग नष्ट नहीं होता है, बल्कि कालान्तर में और भी अधिक उम्र रूप धारण कर लेता है।
• सौ ग्राम हल्दी लेकर कूट पीस छानकर रख लें। इसे आक के दस ग्राम दूध में रचा लें। यदि खून की उल्टियाँ (पित्त प्रधान) आ रहीं हों तो बड़ या पीपल का दूध डालें। इसे 2-2 रत्ती की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करायें ।
• छिलके रहित लहसुन 250 ग्राम, बकरी का दूध 1 कि.ग्रा. गाय का घी ढाई किलोग्राम तथा जल 10 किलोग्राम, लें। लहसुन को यवकुट करके जल में चतुर्थांश शेष रहने तक पकायें। फिर उसमें घी तथा दूध डालकर घृत सिद्ध होने तक पकायें। इस घृत को धान्य राशि (अनाज के ढेर) में 1 माह तक रखने के बाद 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम सेवन करायें। इस योग के सेवन करने से राजयक्ष्मा शर्तिया ही नष्ट हो जाती है।
यही नहीं, बल्कि इस घृत के प्रभाव से बन्ध्या (बाँझ औरत) नपुंसक एवं वृद्ध पुरुषों तक में अपार ताकत का संचार होकर काम-शक्ति बढ़ जाती है।• लहसुन छिला हुआ 1 किलो यवकूट कर 500 ग्राम गाय के घी में डालकर किसी घी के ही चिकने पात्र में रखकर धान्य राशि में 1 वर्ष तक पड़ा रहने दें। तदुपरान्त इसका क्षय रोग के रोगी को सेवन कराने से क्षय रोग अवश्य ही नष्ट हो जाता है।
• लहसुन 5 ग्राम, घृत 10 ग्राम, मधु 5 ग्राम को मिलाकर अवलेह जैसा बनाकर, ऐसी एक-एक मात्रा नित्य सुबह शाम सेवन करने (भोजन में दूध चावल लें) से क्षयरोग नष्ट हो जाता है। रोगी रोग मुक्त होकर दीर्घायु हो जाता है।
• अस्थि क्षय (Bone T. B.) में लहसुन की चर्बी, शहद या घृत अथवा ताजा निकाले मक्खन की लौनी के साथ लेप करने से आराम आ जाता है। रोग की अवस्थानुसार प्रतिदिन 1 या 2 बार महीना डेढ़ महीना प्रयोग जारी रखें ।
• काली मिर्च 9 नग, निम्बपत्र 9 नग, दोनों को 5 लीटर पानी में उबालें। आधा जल शेष रहने पर छान लें। राजयक्ष्मा से पीड़ित रोगी को यह जल पीना परम गुणकारी है। सुबह का बनाया जल शाम तक तथा शाम का बनाया जल सुबह तक 12 घन्टे में पी लेना चाहिए।
चूने का निघरा हुआ पानी और बकरी का दूध मिलाकर पीने से क्षय रोग नष्ट हो जाता है।
• क्षय रोगी के लिये बकरी का दूध, बकरी का घी, बकरी का गाँस तथा बकरा व बकरियों के बीच रहना अर्थात हर प्रकार से छाग (बकरी) का सेवन यक्ष्मा नाशक है।
यक्ष्मा नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग
नोट:- बल्य व रसायन औषधियों का सेवन परम आवश्यक तथा लाभप्रद है।
डिस्कोनिल लिक्विड (चरक) 1-2 चम्मच दिन में 3-6 बार प्रतिदिन दुगने
जल से वयस्कों को दें तथा बच्चों को आधे से डेढ़ चम्मच प्रतिदिन 3 से 6 बार दो गुने जल से सेवन करायें ।
सर्टिना टेबलेट (चरक) - वयस्कों को 2-2 गोली दिन में 2-3 बार, बच्चों को 1-1 गोली दिन में 3-4 बार प्रतिदिन दूध के साथ प्रयोग करायें ।
द्राक्षोविन स्पेशल लिक्विड (धूत पापेश्वर) - 1-2 चम्मच दिन 2-3 बार दें।
अंगूरासव लिक्विड (झन्डू)-10 से 30 मि० ली० दिन में 2 बार पानी के साथ भोजनोपरान्त सेवन करायें ।
बकेरी टेबलेट (झन्डू) क्षय रोग में इसकी 4 गोली जीरा और चीनी के साथ सेवन करायें ।
राजयक्ष्मान्तक नं० 1 सेवन विधि पत्रक के अनुसार (अतुलफार्मेसी) ।
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