कब्ज और ईसाका ईलाज

                (  कब्ज  रोग और ईसका  ईलाज)

रोग परिचय- -कब्ज का सीधा-सादा सा अर्थ है- मल रुक जाना, । मल  उतरने की क्रिया विकृत हो जाना, यह रोंग प्राय: ऑतों की गड़बड़ी के कारण हुआ  करता है । कोष्ठबद्धता मलावरोध, मलबन्ध, मल न उतरना, आदि सभी कब्ज  के ही पर्यायवाची शब्द हैं ।  

                                     (उपचार )    

छोटी (काली अथवा जंगी) हरड़ 2-3 प्रतिदिन चूसा करें ।  नोट ;- इस काली हरड़ को न भूनना है और न कूटना है । केबल पानी से थोकर और  कपड़े से पोंछ लें । लगभग 1 घटें में यह धुल जाती है। कबज दूर करे के लिए यह रामबवाण  है । कितु यह खुश्की करती है। अतः धी या दूध का सेबन अति आवश्यक है ।
  सनाय की पत्ती 50 ग्राम, सौंफ 100 ग्राम, मिश्री 200 ग्राम, तीनों  को कूट पीसकर  चूर्ण बनाकर सुरक्षत रख लें । इसको रात में सोते समय 6 ग्राम  की मात्रा में गरम-पानी के साथ सेवन करने से प्रातःकाल खुलकर पेट साफ  होता है।
  . बहुत छोटे बच्चे को यदि कब्ज हो तो पान का डंठल यंदि धीरे से गुदा  में प्रविष्ट कर दिया जाय तो मल आसानी से आ जाता है । ङंठल के सिरे पर  थोड़ा सा नारियल का तेल लगा लें ।  

यदि बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो गरम पानी में शहद मिलाकर पिचकारी  (एनिमा) दिया जा सकता है । ऐसा करने से एक मिनट के अन्दर ही मल आ जाता है।  नोट- यदि डूश देना हो तो गरम पानी इस्तेमाल करना चाहिए । पानी में  नीबू का रस या शहद मिला लेना चाहिए । डूश़ नर्दोंष रहता है । इससे कोई  हानि नहीं होती है ।
 कब्ज के रोगी बच्बे को शक्कर (Sugar) के स्थान पर शहद  देना चाहिए । शहद पेट साफ रखता है तथा हृदय ब यकृत को बल भी प्रदान  करता है । कब्ज के रोगी को अधिक से अधिक पानी पिलाना चाहिए । प्राय: बच्चों  को पानी पर्याप्त मात्रा में न पिलाने के ही कारण कब्ज हो जाया करती है ।
प्रात:काल  नीबू का रस मिला हुआ पानी पिलाने (बच्चों तथा बड़ों सभी को) से कब्ज की  शिकायत धीरे-धीरे दूर हो जाती है । यदि बच्चे की आदत प्रात:काल पानी पीने  की डाल दी जाये और बह सदैव निहार-मुंह शौच जाने से पहले पानी पीता रहे तो  जीवन भर कब्ज की शिकायत ही नहीं होगी । स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा, अन्य  रोगों से भी सुरक्षा रहेगी ।  

( मल उतारने हेतु- ग्लीसरीन स्पोजिटरी भी बाजार में उपलब्ध है)

 जो  बच्चों और बड़ों के लिएं अलग-अलग होती है । इसको गुदा में प्रिष्ट करके  15 मिनट तक दबा कर .रखने से (ताकि बत्ती गुदा से बाहर न निकल जाये) तुरन्त  मल आ जाता है तथा कोई कठिनाई भी नहीं होती है । न्हें शिशुओं को प्रारम्भ  से ही "घुट्टी" पिलाई जाये तो उनको कब्ज की शिकायत नहीं रहती है। भारी  बस्तुऐं कब्जकारक होती हैं, अत: इनसे परहेज आवश्यक है। तेज किस्म के जुलाब  हानिकारक होते हैं। 
अन्डी का तैल (कैस्टर आयल) का प्रयोग अथवा साबुन  की बत्ती का प्रयोग किया जा सकता है । कब्ज सदैव ही पेट की गर्मी से हुआ  करता है अतः गुलकन्द (बढ़िया क्वालिटी में ""चरक"" कम्पनी का लें) का  सेवन बच्चों से बड़े तक निर्भीकता से कर सकते हैं।
चिडिया की थोड़ी सी बीट लेकर न्हें शिशुओं की गुदा में दबा देने से  भी मल आ जाता है । गुदा को किसी तेल से तर कर देने से भी मल आसानी  से आ जाता  
 अमलताश के गूदे को 3 गुना पानी में भिगोकर रातभर रखने से तथा  प्रातःकाल छानकर मिश्री मिलाकर उबालकर बच्चों को 1-1 चम्मच अथवा  अधिक आयु के अनुसार सेवन कराने से कब्ज दूर हो जाती है । 
 बच्चे के पेट में यदि सुद्दे बन गये हों तो गरम जल में जैतून का तैल  1 से2 चम्मन और शहद 20 से 30 य्राम मिलाकर एनिमा देने से सुद्दे निकल  जाते हैं ।
 दूध् पीने से भी कब्ज हो जाया करती है । सब्जी और फलों का रस  कब्ज को तोड़ देता है ।  
छोटे बच्चे को यदि आदतन कब्ज हो तो चोकर सहित आटे की रोटी  बनाकर शहद में भिगोकर एक कपड़े में बाँधकर चूसनी की भांति बना लें। उसे  बच्चे को चूसने के लिए दे  । ऐसा करने से कब्ज से छुटकारा मिल जायेगा।
  पके आलूबुखारा को शहद में मिलाकर सेवन कराने से भी कब्ज दूर हो  जाती है ।  
. आधा चम्मच जैतून का तैल और उसमें दुगुना शहद मिलाकर बच्चों को  प्रतिदिन सेवन कराने से बच्चों की आदतन होने बाली कब्ज से छुटकारा मिल जाता  है।
 खड्ट, मीठे, चटपटे, गरिष्ठ, तीखे मिर्च-मसाले युक्त पदाथों के खान-पान से  कब्ज के रोगी को दूर रहना चाहिए क्योंकि यह सब रोग का कारण होते हैं ।
   दालचीनी आधा ग्रामं तथा सौंठ और इलायची भी आधा-आधा ग्राम लें।  तीनों को पीसकर भोजन से पहले लें भूख बढ़ती है कब्ज दूर होती है । 
 भोजन से पहले और बाद में तथा प्रतःकाल पाखाना के बाद एक नीबू  का रस 200 ग्राम पानी में निचोड़कर कुछ दिनों तक लगातार पीने से पुरानी से  पुरानी कब्ज समूल नष्ट हो जाती है।  

 काले नमक के चूर्ण 50 .ग्राम को शुद्ध घृत 250 ग्राम के साथ खरल  में डालकर खरल कर लें । इसे शीशी में सुरक्षित रख लें ।प्रतिदिन रात को सोते समय  10 की मात्रा में लेकर 50 ग्राम गरम जल से सेवन करायें । कब्ज दूर होगी ।
  सौंफ की गिरी निकालकर (एक हथेली भर) पानी के साथ लगातार लेने  से आमाशय सबल बनता है तथा मस्तिष्क बलवान होता है । कब्ज की शिकायत  भी दूर हो जाती है ।  

 नौसादर, सुहागे का फूला, पंचलबण 2-2 तोला, चित्कमूल, पीपलामूल,  तीरकुट, भुना जीरा, अजबायन, लौह भस्म प्रत्येक 1-1 तोला और गुड़ 15 तोला  को अमृतवान में भर दें। 15 दिनं तक धूप में रखें, बाद में छानकर बोतलों में  भर दें। मात्रा 6 माशे से सवा तोले तक दिन में 2 बार भोजन के बाद ढाई तोला  जल के साथ दें। यह द्रब (औषधि) उदर रोग, प्लीहा, यकृत दोष, पाण्डु, स्त्रियं  के गर्भाशय के दोष, मन्दाग्नि, कब्ज और उदरशूल इत्यांदि रोगों को थोड़े से ही  दिनों में दूर करता है 
 धनिया और शक्कर को समभाग मिलाकर गरम जल या गरम दूध् से  रात को सोते समय सेवन करने से पेट की कब्ज दूर होती है ।
 मात्रा 6 माशे  से 1 तोला तक दें ।

                    (कब्ज के लिए  कुछ दबाईया)

 हर्बोलेकस (हिमालय), 
रेगुलैक्स (चरक), हथिलीवर फोर्ट (मेडिकल  इथिक्स), अभयासन (झन्डू)
, इच्छामेदी रस (डाबर आदि अनेक कम्पनियाँ)  हेप्पीलेक्स (मेहता रसायनशाला) जुलाबिन (डाबर) विब्यहारी कैपशूल श्री  ज्वाला), अगिनि संदीपन कैपशल (जी. ए. मिश्रा), लिवोमिन सीराप ब ड्राप्स  (चरक), पेडीलेक्स (चरक), गैसनोल (गर्ग), विरेचनी (बैद्यनाथ), लिवरोल  (वैद्यनाथ) इत्यादिं में से कोई सी एक औषधि चुनलें। बच्चों व बड़ों की आयु,  बलाबल तथा रोगावस्था को देखकर मात्रा निश्चित कर पूर्णतः बिवेक के साथ व्यवहार  (सेवन) करायें । 

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