( अर्श, बबासीर रोग परिचय और ईलाज)
( अर्श, बबासीर रोग परिचय और ईलाज)
- इसमें गुदाद्वार पर मस्से फूल जाते मलद्वार की नसें फूल जाने से वहाँ की त्वचा कठोर (सखन) सी हो जाती है और अंगूर की भांतिएक दूसरे से जुड़े हुए मसों के गुच्छे से उभर आते हैं। इनमे रक्त बहता है तब खूनी बवासीर कहलाती है । इसमें अत्यन्त तीव्र जलन व पीड़ा होती है रोगी का उठना- बैठना मुश्किल हो जाता है ।
उपचार
उपचार :- एक गिलास गर्म पानी में आधा नीबू निचोड़कर उसमें शीरा 2 छोटे चम्मच डालकर खूब घोटकर सेवन करना लाभप्रद है ।
नागकेशर तथा खृन खराबा दोनों को सम मात्रा में पीसकर तथा कपड़े से छानकर 1-2 माशा की मात्रा में ताजा पानी से दिन में 3-4 बार प्रयोग करायें। बबासीर का रक्त शर्तिया रुक जाता है । यही औषधि यदि हरे धनिये के रस या अनार के मीठे रस से सेवन कराई जाये तो अत्यन्त ही प्रभाबशाली हो जाती है।
. रीठे का छिलका जलाया हुआ तथा सफेद कत्था 1-1 तोला को मिलाकर पीसकर चूर्ण बनाकर सुरद्षित रख लें । इस योग को 3-3 माशा की मात्रा में सुबह शाम मक्खन या मलाई के साथ सेबन कराना खूनी बबासीर में लाभप्रद है ।
भाँंग के पत्ते, बिनौले के बीजों की गिरी, रसौत (प्र्येक 3 माश्) लेकर गुलाब के अर्क में पीसकर मस्सों पर लगाना अतीव गुंणकारी है ।
रीठे का छिलका जलाया हुआ, बकायन के बीजो की गिरी, सफेद कत्था प्रत्येक 1 तोला, लौह भस्म 6 माशा, सभी को मैदा की भांति सूक्ष्म पीसकर 1 माशा की मात्रा में 1 छटांक मक्खन में मिलाकर सुबह शाम सेवन करायें। बबासीर का अत्यन्त सफल योग है । बबासीर का रक्त शीघ्रता से बन्द हो जाता है ।
हरड़ पीसकर और कपड़े से छानकर पानी में लेप बनाकर (एक ग्राम लेप में) 2रती तथा चौथाई गुनी वैसलीन मिलाकर मरहम् बना लें। इसको मस्सों व गुदा के अन्दर लगाने से दर्द, जलन, खुजली ब रक्त आने को आराम आ जाता है । हरड़ का चूर्ण फॉकना भी लाभप्रद है ।
पाइलैक्स (हिमालय) 2-3 गोली दिन में 3 बार 1 सप्ताह तक तत्पश्चात 2-2 गोली दिन में 2 बार लगातार 4-6 सप्ताह तक बबासीर में शर्तिया लाभकारी है । इसका मलहम भी आता है- जो अत्यन्त लाभप्रद. है ।
अशेनिट सायारण तथा फोर्ट टिकिया (चरक) दो गोली दिन में 3 बार जल के जल खक्तस्राव को बन्द करती है तथा जलन शान्त करती है । इसका भी मरहम आता है -
नीबू का रस निकालकर साफ कपड़े से छानकर बराबर मात्रा में मूंगफली का तेल भली प्रकार फेंट कर ड्रापर या ग्लीसरीन सिरिन्ज से 2-8 छोटे चम्मच भर रात को सोते समय एक सप्ताह निरन्तर गुदा में डालना (प्रवेश कराना) बबासीर में अत्यन्त ही गुणकारी है।
। इसी प्रकार आलिब आयल (जैतून का तैल) 1 औस की मात्रा में एनीमा की भाॉति गुदा में प्रवेश कराना लाभप्रद है । जैतू् का तैल ' उपलब न होने पर मूंगफली का तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं ।
इसी प्रकार शार्क लीवर आयल या काडलीवर आयल (मछली का तैल) प्रयोग करना भी गुणकारी है ।
इसी प्रकार ग्लीसरीन में ठण्डा पानी भरंकर (4-5 औस की मात्रा में) दिन में 2-4 बार प्रयोग कराना लाभकारी है ।
विटामिन "ईं" ऐलोपैथयी दवा ईबवियोग या विटियोलीन कैपसूल को ब्लेड से काटकर इसका तेल मस्सों पर मलने से सूजन, जलन कब्ज दूर हो जाते हैं तथा निरन्तर प्रयोग से मस्से सूख जाते हैं।
बबासीर के मस्से सूज जाने, उनमें दर्द होने तया खुजली होने पर उबलते पानी में साफ कपड़ा डुबोकर ब निचोड़कर मोटी गद्दी लेंटने (लेट जाने) से तुरन्त कष्ट कम हो जाते हैं।
इसी. प्रकार उबलते पानी के बरतन में थोड़ा सा सतासीन का तेल डालकर बेंत वाली कुर्सी पर बैठकर (कपड़ निकालकर नंगा होकर बैठे) तथा कुर्सी के चारों ओर मोटा कपड़ा या कम्बल लपेट कर 'भाप"' से मस्सों पर सिंकाई करना अत्यन्त ही लाभप्रद है ।
किसी बरतन में पानी भरकर उसमें चुम्बक डालकर रात भर पड़ा रहने दें, दिन को चुम्बक निकाल लें। इसे 1-2 औंस यह ताजे पानी में मिलाकर दिन में 3-4 बार पिलाना भी बबासीर में लाभप्रद है।
इसी प्रकार तिलों के तेल में 2-3 दिन तक चुम्बक (मेग्नेट) डुबोकर रख देने से उसमें भी चुम्बक की शक्ति आ जाती है। यह तैल बबासीर के मस्सों, जोड़ों के दर्द सूजन तथा हर प्रकार के दर्द में (मालिश करना उपयोगी) है ।
जब भी पेशाब ( मूत्र ) करने जायें अपना मूतर अंजली में भरकर बबासीर के मस्सों को धो लिया करें। दो माह के निरन्तर इस प्रयोग से बबासीर की हमेशा के लिए विदाई हो जायेगी ।
कुचला (गंङोये) को मिट्टी के तेल में धिसकर मस्सों पर लगाने से"मस्से सूख जाते हैं
- . पीली राल 50 ग्राम लेकर बारीक पीस लें। इसे प्रतिदिन 6 ग्राम की मात्रा में 125 ग्राम दही में मिलाकर सेवन करना खूनी बबासीर का अचूक इलाज " है । एक सप्ताह सेवन करें । मात्र 2-3 दिन में र्त आना बंद होता है । . नाग केशर और मिश्री दोनों सममात्र में लेकर सूक्षम पीसकर चूर्ण बनाकर रखें । इसकी 6 य्राम की मात्रा को 125 ग्राम दही में मिलाकर सेवन कराने से सभी प्रकार की अर्श (बबासीर) में लाभ होता है । e अमरबेल का स्वरस 50" म्राम में काली मिर्च (5, नग) का चूर्ण मिला कर खूब घोटकर नित्य प्रातःकाल सेबन कराने से खूनी बादी दोनों ही प्रकार की बबासीर में 3 दिन में ही लाभ होता है । e कचूर का महीन चूरण ६, ग्राम की मात्रा में नित्य सुबह शाम जल के साथ - सेवन कराने से मात्र 14 दिन में ही बवासीर में लाभं होता है। नीम के बीज की गिरी का तेल 2 से 5 बूँद शक्कर के साथ खाने या कैपसूल में भरकर निगलने से (थोड़े दिनों में ही) खूनी या बादी दोनों ही प्रकार की बवासीर में लाभ हो जाता है । e चार-पाँच मूली के कन्द में से ऊपर का सफेद रेशा तथा पत्ों को अलग करके शेष कन्द को कूटकर रस निकाल लें । फिर इस रस को 6 य्राम की मात्ा में लेकर घी मिलाकर नित्य प्रात:काल सेबन कराने से रक्तार्श दूर हो जाता है तथा शुष्कार्श में भी ताभ होता है l00 कमल केशर 3 ग्राम, नागकेशर 3 ग्राम, शहद 3 ग्राम तथा मक्खन 6 य्राम सभी को मिलाकर प्रतिदिन सेवन करना रक्तज बवासीर में लाभप्रद है ।
करेलों का अथवा करेले के पत्तो का रस 20 ग्राम में 10 ग मिश्री" मिलाकर प्रतिदिन सबेरे 7 दिन पीने से रक्त अर्श ठीक हो जाता' है।
प्याज के महीन-महीन टुकड़े करके धूप में सुखा लें । "सूखे टुकडों में से 10 ग्राम प्याज लेकर घी में तलकर बाद में एक ग्राम तेल और 20 ग्राम मिश्री मिलाकर नित्य सवेरे सेवन करना अरश में लाभप्रद है ।
ग्वार के पत्तों का अरक प्रात: सायं 25-25 मि-ली- (गर्मी में मिश्री के अनुपान से, बरसात में काली मिर्च से तथा जाड़ों में फीका ) पीने से खूनी बादी दोनों ही प्रकार के बवासीर में लाभ होता है ।
काले तिल लें। उनहें धोकर छाया में आधे रूप से सुखालें (फरहरे करं) तदुपरान्त तबे पर घी डालकर (धीमी अग्न से भूनकर) उतारलें । फिर उन्हें ठण्डे कर समभांग बूरा मिलाकर 3-3 ग्राम की मात्र में सुबह शाम सेबन कराने से रकतार् में विशेष लाभ होता है ।
(बवासीर, अर्श नाशक प्रमुख दबाई )
अ्यासिन टेवलेट (झन्डू) 2-4 गोली गरम जल से दिन में 3 बार दें। अर्शनाशक निश्चित प्रभाकारी औषधि है ।
अर्शोहर टेबलेट (राजवैद्य शीतल प्रसाद) 2-3 गोली दिन में 3 बार दें। खूनी बादी दोनों ही प्रकार. की बवासीर में लाभप्रद है ।
अर्ान्तक कैपसूल (गर्ग बनौषधि) 1-2 कैपसूल दिन में 3 बार अर्श की सभी अवस्थाओं में निश्चत स्थाई लाभ होता है । लगातार लें I
सैनीलाइन सीरप ( डाबर) 2-2 चम्मच दिन में 3 बार यह रक्तार्श की उत्तम औषधि है । पीने के अतिरिकत 60 बँद दवा को 10 ग्राम ठण्डे जल में घोलकर पिचकारी से प्रतिदिन दिन में 2 बार गुदा मार्ग में प्रविष्ट कराना अत्यन्त लाभप्रद है
अर्शान्तक बटी (धन्वन्तरि कार्यालय) 1-2 गोली सुबह-शाम जल से दें। अर्श की सभी अवस्थाओं में लाभप्रद है ।
पाइल्स क्योर कैपसूल. (अतुल फार्मेसी विजयगढ़़, अलीगढ़) 1-1 कैपसूल प्रातःसायं जल सेदं। रतार्श तथा वातार्श दोनों में लाभप्रद है।
इसका मरहम भी आता है।
रक्तार्शारि टेबलेट (प्रताप फार्मा० ) रक्तार्श में लाभप्रद है । 1-1 गोली दिन में 3 बारदें। अर्शानतक कैपसूल (ज्वाला) सभी अबस्थाओं में सेवनीय है । 1-2 कैपसूल 3बारदें।
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