ग्रहणी - संग्रहणी रोग और ईलाज)
( ग्रहणी - संग्रहणी रोग और ईलाज)
रोग परिचय- इस रोग को ग्रहणी, संग्रहणी के अतिरिक्त श्वेतातिसार तथा अंग्रजी( में सपरूSpure) भी कहा जाता है । क्योंकि प्रारम् में प्रात.:काल बिना दर्द के हल्का सफेद और फेनदार खड़्या मिट्टी (रिंग का) पानी के समान दस्त आता है । ज्यों-ज्यों रोग बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों सायंकाल और भोजनोपरान्त तुरन्त भी दस्त आने लगता है किन्तु रोगी को कोई कष्ट महसूस नहीं होता है, इसके पश्चात् पेट अफरता है, दुर्गन्धित अपानबायु, बदहज्मी और मन्दारिन इत्यांदि के लक्षण प्रारम्म होकर दुर्बलता, नाडी क्वीणता, पान्डु, अन्त में मरोड़ से तथा रोगी क्षीण होकर उचित चिकित्सा के अभाव में काल कवलित हो जाता है ।
(उपचार )
सफेद राल 10 ग्राम, देशी खान्ड 20 ग्राम दोनों को मिलाकर खूब घोट लें । इसे सुबह-शाम् 5-5 ग्राम ठण्डे जल से लें। दो दिन में ही आराम मिलेगा।
पठानी लोध 100 ग्राम लेकर क्ट-पीसकर कपड़छन कर लें। इसे 6-6 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार गाय के ताजा मठा (तक्र) के साथ दें। नोट-मठा प्रति बार उसी समय बनाया जाये और उसमें पानी न मिलाया जाये । मठे में भुना जीरा और सेंधा नमक अन्दाजे से मिला लें । अत्यत उत्तम योग है।
ऑवले 10 ग्राम को भिगो दें। जब नरम हो जायं तब पीसकर और थोड़ा काला नमक मिलाकर जंगली बेर के समान गोलियाँ बना लें । सुबह-शाम 1-1 गोली चूसने से अतिसार, पेचिश तथा संगरहणी आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
फिटकरी कच्ची 4 ग्राम, संगे जराहत की भस्म 1 ग्राम । फिटकरी को बारीक पीसकर उसमें संगे जराहत की भस्म मिलाकर एकजान कर लें, यह एक मात्रा है एक पुड़िया मुह में डालकर ऊपर से दू पी लें प्रथम खुराक पेट में पहुचते ही रोगी आराम बतलायेगा । इसकी 5-6 खुराक खाने से रोगी स्वस्थ हो जायेगा। केबल दूध पीने को दें। अन्य सभी बस्तुओं से परहेज रखें ।
आम की सूखी हुईं गिरी का चूर्ण 80 ग्राम, जीरा, काली मिर्च, सौठ का चूर्ण प्रत्येक 30 ग्राम, आम बृक्ष के गोंद का चूर्ण 25 ग्राम, अफीम चूर्ण 3 ग्राम.। सभी को भली प्रकार खरल करके रख लें। इसे5 से 30 रत्ती की मात्रा में रोग की अवस्थानुसार देने से संग्रहणी में लाभ होता है ।
अरारोट का महीन चूर्ण 1 बड़ी चम्मच भर लें। उसमें 2 चम्मच दुध मिलाकर चम्मच से मिलाकर कर लें फिर उसमें आधा किलो गरम जल मिलाकर आग पर रखें । थोड़ा जोश आने पर उसमें 250 ग्राम दूर् तथा थोड़ी शक्कर पकाबे आधा पानी जल जाने पर नीचे उतारकर उसमें 1 रत्ती जायफल चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से संग्रहणी में ला हो जाता है ।
मीठे आमों का रस 50 ग्राम में मीठा दही 10-20 ग्राम तथा अदरक का रस
चम्मच भर रोगी को पिलायें । इस प्रकार प्रतिदिन 2-3 बार लगातार कुछ दिनों के सेबन कराने से पुराने दस्त तथा संग्रहणी में लाभ हो जाता है ।
इमली के पके हुए बीजों के छिलके का तचूर्ण 4 ग्राम, जीरा भुना हुआ तथा मिश्री 6-6 ग्राम सभी 'का महीन दूर्ण वनाले।इसे4 ग्राम की मात्रा में 3-3 घन्टे के अन्तर से ताजे मट्ठा के साथ सेवन कराने से पुराना आमातिसार तथा संग्रहणी में लाभ होता है ।
इमली छाल का चूर्ण 1 से 6 ग्राम तक 20 ग्राम ताजा दही में मिलाकर दोनों समय (सुबह-शाम) बालकों को चटाने से संग्रहणी में लाभ होता है ।
ईसबगोल की भूसी, मस्तंगी एबं छोटी इलायची के दाने सभी समभाग लेकर एकत्र कूट पीसलें । फिर उसमें सबके वजन के बरांबर मिश्री मिलाकर 4 मात्रायें बना लें। चावलों के मांड के साथ 3-3 घन्टे पर सेवन कराने से आम, खक्त तथा पीड़ायुक्त संग्रहणी में लाभ होता है ।
ईसबगोल 4 ग्राम को 40 ग्राम गरम जल में भिगो दें। शीतल हो जाने पर उसमें 10 ग्राम नारंगी या अनार का शर्बत (रस) मिलाकर पिलाने से आंतों की भयंकर दाह (जलन) तथा संग्रहणी में लाभ होता है ।
पिप्पली, भाँंग तथा सोंठ के समभाग चूर्ण को शहद के साथ सेवन करते रहने से भयंकर संग्रहणी नष्ट हो जाती है ।
बेलगिरी का चूर्ण 10 ग्राम, सौंठ का चूर्ण तथा पुराना गुड़़ 6-6 ग्राम एकत्र कर खरल कर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3-4 बार लेने से संग्रहणी में लाभ हो जाता है ।
बेल के कच्बे फल को आग में सेंककर गूदा निकालकर 10 ग्राम गूदे में थोड़ी सी शंकर मिलाकर सेवंन करते रहने से संग्रहणी नष्ट हो जाती है।
मीठी सौफ 60 ग्राम, पिसा हुआ काला नमक 6 ग्राम तबे पर भूनकर सूक्ष्म चूर्ण बनाकर दिन में 3-4 बार 2-2 ग्राम की मात्रा में सेवन कराने से आँब का पाचन होकर ग्रहणी में लाभ हो जाता है यह योग विशेषकर बालकों को - लाभप्रद है ।
बड़ी इलायची के दाने 10 ग्राम, सौंफ 60 ग्राम, नौसादर 20 ग्राम सभी को तबे पर भूनकर चू्ण बनाकर सुरदषित रखें I इसे 1-1 ग्राम की मात्रा में सेबन करना संग्रहणी नाशक है।
भांग 2 ग्राम को भूनकर 3 ग्राम शहद में मिलाकर चटाना संग्रहणी में अत्यन्त लाभप्रद है ।
अफीम तथा केशर शहद में घिसकर 1 चावल भर देने से.बच्चों की संग्रहणी में अत्यन्त लाम होता है ।
. खजूर के फल 6 ग्राम, गाय के 20 ग्राम दही के साथय सेवन कराना बच्चों की संगरहणी में लाभप्रद है।
रेबन्द चीनी, काला जीरा, कलमी शोरा, काला नमक, निशोथ, सनाय जवा हरड़, असली वंशलोचन, शीतल चीनी तथा इलायची प्रत्येक सममात्रा में एबं मित्री सभी औषधियों के बजन का एक चौथाईं भांग लेकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा दूध की लस्सी के साथ सेबन करने से संग्रहणी में आश्चर्यजनक लाभ होता है तथा यह योग बायु अनुलोमक भी है।
(ग्रहणी संरहणी के लिए दबाईया)
ग्रहणी कपाट वटी (वैद्यनाथ) 1-2 गोली दिन में 3-4 बार। ग्रहणी तथा जीर्ण अतिसार में उपयोगी है ।
लिव 52 गोली, सीरप तथा ड्राप्स (हिमालय) 2-2 टिकिया दिन में 3 बार या 2-2 चम्मच दिन में 2-3 बार बच्चों को आधा चम्मच अथवा आवश्यकता व आयुनुसार सेवन करायें। न्हें शिशुओं को (ड्राप्स) 5 से 10 बूंद दिन में 3 बार दें।
लिवरोल सीरप (वैद्यनाथ) बव्यस्कों को आधा से 1 चम्मच तथया बच्चों को 6 से 10-12 बूंद तक प्रयोग करायें ।
डायरौल गोली (गर्ग) 1-2 गोली दिन में 3-4 बार ग्रहणी, अतिसार जन्य समस्त विकारों में लाभप्रद है ।
गैसक्लीन कैपसूल (अतुल फार्मेसी बिजयगढ़, अलीगढ) 1-1 कैपसूल दिन में 3 बार पानी से गैस व दर्द में दें ।
ऐनटीङायरी कैपसूल (निर्माता उपर्युक्त) 1-2 कैपसूल दिन में 3. बार दें । अतिसार, आमातिसार तथा संग्रहणी नाशक उत्तम योग है ।
अतिसारान्तक कैपसूल (ज्वाला आयु) 1-1 कैपसूल दिन में 4 बार लाभ उपयुक्त I e कुटज घनसत्व (गर् बनौषधि) 1-2 गोली दिन में 3-4 बार दें। लाभ उपयुक्त I
डियाडिन लिक्विड (चरक फर्मेस्युटिकल्स) विविध प्रकार के अतिसारों में लाभप्रद है । मात्रा, वयस्कों को 3 से6 चम्मच (15 से 30 मि. ली.) दिन में 3 बार लगातार दें। प्रकोप लुष्त होने के सात दिनों बाद तक सेवन करायें - बच्चों को उपरोक्त की आधी मात्रा दें ।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें