मूत्राशय की पथरी का दर्द,शुक्राशय की पथरी का दर्द)
रोग परिचय-पथरी मूत्राशय में होने पर रोगी को वृक्कशूल की ही भाँति तड़पा देने पाला दर्द होता है। यह दर्द मूत्राशय, गुर्दा और वृषणों मध्य के स्थान (सीवन) और पुरुषों में (लिंग) के अग्रभाग (सुपारी या सुपाड़ा) तक में होता है। यह दर्द मूत्र त्याग के समय अथवा मूत्र त्यागने के पश्चात् अधिक बढ़ जाताहै। रोगी को बार-बार गाढ़े रंग का मूत्र आता है। पथरी मूतशय के मुख में फँस जाने पर मूत्र रुक-रुक कर आने लगता है या बिल्कुल ही बन्द हो जाता है। यदि पथरी काफी समय तक मूत्राशय में पड़ी रहे तो मूत्राशय का आकार तथा रचना बिगड़ जाती है। बच्चों को यह रोग होने पर मूत्र त्यागने के बाद कष्ट के कारण रोना-चीखना पड़ जाता है तथा कष्ट के लक्षण चेहरे पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। बच्चा अपने लिंग (सुपारी) को हाथ से मलता है तथा कभी-कभी नीद में बिस्तर पर ही मूत्र कर देता है।
मूत्राशय की पथरी अक्सर बच्चों तथा वयस्कों को तथा दुबले-पतले मनुष्यों को बनतीं है। यह पथरी प्रायः भूरी या सफेद होती है तथा ज्वार के दाने से लेकर मुर्गी के अंडे के आकार तक की हो सकती है।
उपचार- इसकी चिकित्सा पित्ताशय की शोथ (पित्ताश्मरी) व वृक्क का दर्द (पथरी) की ही भाँति होती है। पथरी तोड़ने तथा अधिक मूंत्र लाने वाले योगों का ही सेवन करायें ।
• दाऊदी के फूल 9 ग्राम पानी में उबालकर पिलाना लाभप्रद है।
• कुल्थी 6 ग्राम, सौंफ 6 ग्राम 1 लीटर जल में इतना उबालें कि आधा भाग पानी उड़ जाये। फिर शीशा नमक ढाई ग्राम तथा गाय का घी 6 ग्राम मिलाकर पिलाना लाभप्रद है।
• कुल्थी 20 ग्राम को 240 ग्राम पानी में औटायें। जब पानी चौथाई रह जाये तब उतार कर छानकर गुनगुना रोगी (सुबह-शाम) पिला दें। पथरी गलकर निकल जायेगी ।
• पपीते की जड़ 6 ग्राम सिल पर बारीक पीसलें। फिर इसे 50 ग्राम पानी में घोलकर छानकर रोगी को सुबह-शाम (21 दिन) सेवन कराने से पथरी गलकर निकल जाती है।
नोट-पथरी के रोगी को रोटी के साथ कुल्थी की दाल खाना लाभप्रद है।
• टिन्डे का रस 50 ग्राम, जवाखार 16 मेन लें। दोनों को मिलाकर पीने से पथरी रेत बनकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
• मूली का रस 25 ग्राम, यवक्षार 1 ग्राम को मिलाकर रोगी को पिलायें। पथरी गलकर निकल जायेगी ।
• कलमी शोरा, यवक्षार और नौशादर (आधा-आधा ग्राम प्रत्येक) गन्ने का रस 20 ग्राम, नीबू रस 6 ग्राम सभी को मिलाकर रोगी को निरन्तर कुछ दिनोंतक सेवन कराने से पथरी गलकर निकल जाती है। यह एक मात्रा लिखी है ।)
• नीम की पत्नी की राख 6 ग्राम फाँककर ऊपर से पानी पियें। कुछ दिनों के प्रयोग से पथरी गल जाती है।
• चीड़ की लकड़ी का चूर्ण आधा से 2 ग्राम तक जल से 1 माह तक सेवन करने से पथरी रोग नष्ट हो जाता है।
• शहद के साथ गोखरू चूर्ण 4 ग्राम चाटकर बकरी का ताजा दूध पीना पथरी रोग को जड़मूल से नष्ट कर देता है।
• अजमोद चूर्ण 6 ग्राम मूली के पत्तों के 100 ग्राम रस में पीसकर पिलाने से पथरी गल जाती है।
• पीपल की कोपलें 7, काली मिर्च 5 दाने लें। दोनों को ठन्डाई की भाँति घोटकर 1 गिलास पानी में मिलाकर पीने से 3 दिन में पथरी गलकर निकल जाती है।
• केले के तने का जल 30 ग्राम, कलमी शॉरा 25 ग्राम, दूध 250 ग्राम तीनों को मिलाकर दिन में 2 बार पिलायें। दो सप्ताह सेवन करायें ।
• लाल रंग का कूष्मान्ड (सीताफल) खूब पका हुआ लेकर उसका 25 ग्राम रस निकाल तथा 3 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर दिन में 2 बार निरन्तर 2 सप्ताह
प्रयोग करायें । पथरी को गलाकर मूत्र मार्ग से बाहर करने का उत्तम योग है।
(शुक्राशय की पथरी का दर्द)
रोग परिचय-यह अंग्रेजी में (Pasidue to Gravel in seminal vericles) कहलाता है। शुक्राशय में पथरी अटक जाने से भयंकर दर्द हुआ करता है। रोगी दर्द से तड़पता है और बेचैन हो जाता है।
इसका उपचार वृक्कशूल (वृक्काशमरी) पित्ताशय शोथ (पित्ताशमरी) एवं मूत्राशय की पथरी का दर्द की ही भांति मूत्रल एवं पथरी तोड़ने वाले योगों से ही करें। 200
नारियल का पानी, वार्ले वाटर तथा कुल्थी का काढ़ा पिलाना लाभप्रद है।
अश्मरी टेबलेट (धन्वन्तरि)- 2-2 टिकिया 3 बार जल से देना पथरी रोग का अचूक इलाज है।
यूरीका कैपसूल (इन्डो जर्मन)- 1-2 कैपसूल दिन में 2-3 बार भोजन से पूर्व पानी से दें।
पथरीना टेबलेट (वैद्यनाथ) - 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार अथवा आवश्यकतानुसार प्रयोग करायेंपथरी नाशक पेटेन्ट आयुर्वेदीय योगों को मूत्र में रक्त आ जाने पर भी बन्द नहीं करना चाहिए। लगातार प्रयोग जारी रखना चाहिए तथा पानी व नारियल का पानी इत्यादि अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए ।
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