प्लीहा,तिल्ली एवं यकृत, लिवर,जिगर का बढ़ जाना


 (प्लीहा,तिल्ली एवं यकृत, लिवर,जिगर का बढ़ जाना)



रोग परिचय- मलेरिया ज्वर इत्यादि के कारण, प्लीहा तथा यकृत वृद्धि हो जाती है।

उपचार

• कच्चे पपीते का ताजा दूध 5 बूँद तथा एक पका केला लेकर दोनों को फेंटकर भोजनोपरान्त दोनों समय सेवन कराने से प्लीहा व यकृत वृद्धि में लाभ होता है।

• अनार के छाया शुष्क पत्ते 5 भाग तथा नवसादर 1 भाग दोनों को महीन पीसकर सुरक्षित रख लें। इसे प्रातः सायं 3-3 ग्राम की मात्रा में सेवन कराने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।

• अपराजिता के बीजों को भूनकर बारीक चूर्ण करलें। उसे 4 रत्ती से 3 ग्राम तक की मात्रा में गरम पानी के साथ सेवन कराने से प्लीहा व यकृत वृद्धि में लाभ होता है।

• करेला के रस में थोड़ी राई व नमक का चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।

• पलाश के पत्तों पर तैल चुपड़कर अथवा तम्बाकू के पत्तों को नीबू के रस में पीसकर लेप करने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।

• नीम की गिरी, अजवायन तथा नौसादर सम मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम जल के साथ सेवन करना प्लीहा-वृद्धि में लाभप्रद है।

पिप्पली चूर्ण व लौह भस्म समभाग खूब खरल कर सुरक्षित रख लें। 1 से 4 रत्ती की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन कराने से प्लीहा-वृद्धि में लाभ होता है।

प्याज को आग में पकाकर उसे रात भर ओस में रखकर प्रातः प्रतिदिन खिलाने से प्लीहा-वृद्धि में शीघ्र लाभ होता है।

• भांगरे के रस में थोड़ा अजवायन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से यकृत वृद्धि में लाभ हो जाता है।• मूली को चीरकर 4 फाँक बनाकर चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर उन पर पिसा हुआ 6 ग्राम नौसादर छिड़क कर रात्रि भर ओस में रखा रहने दें। प्रातः काल जो इसमें से पानी निकले उसे पीकर ऊपर से मूली की फॉके खालें। इस योग के मात्र एक सप्ताह के सेवन से प्लीहा वृद्धि में विशेष लाभ होता है।

• यकृत तथा प्लीहा की सूजन पर मकोय या पुनर्नवा के स्वरस को गरम करके लेप करने से यकृत व प्लीहा शोथ नष्ट हो जाता है।

• बकरी की मैगनी को सिरके में पीसकर लेप बनालें। उसे गरम करके गुनगुना-गुनगुना दिन में प्लीहा यकृत के स्थान पर लेप करें। चाहे कैसी भी प्लीहा- यकृत की वृद्धि हो, थोड़े ही दिन के प्रयोग से ठीक हो जायेगी। इसका प्रयोग कम से कम 15 दिनों तक अवश्य करें ।

• रेह (जिसको धोबी लोग कपड़ा धोने के काम में लेते हैं) 1 किलो लेकर 3 किलो पानी में भिगोकर 3 दिन तक रखें तथा दिन में कई बार लकड़ी से हिला दिया करें। उसके पश्चात् ऊपर का निथरा हुआ जल उतारकर साफ-स्वच्छ बोतलों में भर लें तथा प्रत्येक बोतल में 4 ग्राम की मात्रा में हीरा कसीस पीसकर मिला दें। इस 60 ग्राम औषधि का प्रातः काल सेवन कर 5 मिनट बांयी करवट से लेटे रहें। भोजन में हल्की वस्तुएँ लें। प्लीहा नाशक अतीव गुणकारी योग है।

• सोंठ 20 ग्राम, जवाखार 10 ग्राम, सज्जीखार 1 ग्राम तथा इतना ही कलमी शोरा, नौसादर (उड़ा हुआ), गिलोय सत्व तथा भुना सुहागा। सभी को कूट-पीस छानकर सुरक्षित रख लें। तीन से डेढ़ ग्राम की मात्रा में भोजनोपरान्त दोनों समय गरम. पानी से सेवन करायें। यकृत-प्लीहा नाशक अत्यन्त उत्तम चूर्ण है। उदरशूल में भी लाभप्रद है।

• इन्द्रायण के फल 50 ग्राम, काली जीरी, आमा हल्दी तथा सेंधा नमक 200-200 ग्राम सभी को मिलाकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 2 से 4 रत्ती की मात्रा में दें अथवा छोटी मात्रा में 2-3 बार दें। इसके प्रयोग से यकृत वृद्धि, प्लीहावृद्धि, कोष्ठबद्धता, व उदरशोथ में अत्यन्त लाभ होता है।

कुछ प्रमुख यकृत व प्लीहा वृद्धि नाशक पेटेन्ट आयुर्वेदीय योग

लिव 52 टेबलेट, ड्राप्स सीरप (हिमालय), लिबोमीन टेबलेट, ड्राप्स, सीरप (चरक), विमलिव ड्राप्स (धूत पापेश्वर), इथीलीवर फोर्ट (मैडीकल इथिक्स), यकृतो टेबलेट (मोहता रसा.), लिवरहीन टेबलेट (गैम्बर्स लेबो.),लिवर खून टेबलेट (मार्तन्ड), लीवटोल सीरप (वैद्यनाथ), प्लीही सीरप (देश रक्षक), पिप्पली मूल चूर्ण (इन्डू), लिव 66 टेबलेट (ग्लोव), चामलिव कैपसूल इत्यादि का पत्रक के निर्देशानुसार आयु-बल व आवश्यकतानुसार मात्रा निर्धारण कर सेवन करें।

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