छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत का दर्द

(छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत का दर्द )



रोग परिचय-छोटी अन्तड़ी (Appendix) (आन्त्रपुच्छ) बड़ी आँत के साथ मिली होती है। इसमें संक्रमण के फलस्वरूप तीव्र रूप में परिवर्तन होकर छेद हो सकता है तथा इसका विषैला तरल पेट की झिल्ली (पेरीटोनियम) में पहुँचकर वहाँ सूजन उत्पन्न कर सकता है। पहले नाभि के नीचे और आसपास बहुत सख्त दर्द होता है। यह दर्द अपना स्थान बदलता रहता है। कष्ट के कारण रोगी हिलता- डुलतां तक नहीं है। उठने-बैठने तथा टाँग फैलाने और सिकोड़ने में दर्द होता है। दाँयी ओर के पेट और पेट की पेशी ऐंठकर सख्त हो जाती हैं। रोगी को कब्ज और दस्त भी आने लगते हैं। यह रोग युवावस्था तथा मध्य आयु में अधिक होता है। रक्त में (W. B. S) श्वेतकण (हाइट ब्लड सैल्स) बढ़ जाते हैं यह दर्द कई घन्टे तक रह सकता है। इसका भोजन करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है, दर्द हर समय होता रहता है, अलबत्ता परिश्रम करने पर बढ़ जाता है।

उपचार

• रोगी को जुलाब न दें। बल्कि साबुन का एनिमा देकर पेट साफ करें तथा गरम पानी को तल में भरकर दर्द स्थल को सेकें। इस दर्द में अफीम का प्रयोग हानिकारक है। रोगी को तकिया के सहारे बिठाने से दर्द कम होता है।

• सोये के हरे पत्ते का रस निचोड़कर आग पर पकायें। रस फट जाने पर इसको छानकर 100 मिली० में शरबत दीनार 50 मिली० मिलाकर सुबह शाम सेवन करना अतीव गुणकारी है।

• एक ग्राम काला नमक आग पर गरम करके अर्क गुलाब में बुझालें । इसे 30 मि.ग्रा. हींग के साथ पिलायें ।

• उड़द का आटा 250 ग्राम, बकरी के दूध में गूँथकर उसमें नमक, सौंठ, हींग, सोये के बीज, 5-5 ग्राम मिलाकर तवे पर इसकी मोटी रोटी एक ओर पकाकर और दूसरी ओर कच्ची रखें। तथा उस ओर अरन्ड का तेल (कैस्टर आयल) चुपड़कर गरम-गरम दर्द के स्थान पर बाँधे ।

नोट -रोगी को तीव्र दर्द की अवस्था में उपवास करायें। प्यास लगने पर थोड़ा-थोड़ा पानी पिलायें। दर्द दूर हो जाने पर कुछ दिनों तक सन्तरे का रस, माल्टा का रस, दूब, सोड़ा, ग्लूकोजइत्यादि तरल पदार्थ ही दें। ठोस पदार्थों से परहेज रखें। यदि रोगी को आराम न आये तो तुरन्त किसी बड़े सरकारी अस्पताल में भेजें, क्योंकि इस रोग में शल्यक्रिया आपरेशन की भी आवश्यकता होती है। आपरेशन न कराने पर शोथ (प्रदाह) ह) दूर हो हो जाने पर भी दुबारा पुनः हो सकती है या फोड़ा बनकर फट सकता है। जिसके फलस्वरूप सारे पेट में पीब (Pus) फैलकर संक्रमण (इन्फैक्शन) फैल सकता है। और रोग अत्यन्त उम्र रूप धारण कर सकता है।

(आँत उतर जाने से दर्द (हार्निया का दर्द))

रोग परिचय-आँत के अण्डकोष या वंक्षणनाल में उतर जाने से कभी- कभी भयंकर दर्द हो जाता है। आँत ऊपर अपने स्थान में जाती ही नहीं है तथा असहनीय तीव्र दर्द होता रहता है।

उपचार- सर्वप्रथम आँत को वंक्षण छिद्र या जिस छिद्र से अपने स्थान से नीचे आई हो उसी मार्ग से ऊपर भेजने की यथा सम्भव कोशिश करें। यदि आँत ऊपर नहीं जा रही हो तो रोगी की आँत शुद्धि हेतु उपवास करायें तथा हल्के दस्त की औषधि दें या एनिमा दें।

• कब्ज दूर करने के लिए पंचसकार चूर्ण या त्रिफला चूर्ण 2 से 4 ग्राम गरम जल से सुबह शाम सेवन करायें ।

• आन्त्रवृद्धि हर चूर्ण (ग्रन्थ-रसतन्त्रसार व सि०प्र०स०) 4 से 6 ग्राम चूर्ण मिश्री, छोटी इलायची, दाल चीनी, सौंठ एवं लौंग का चूर्ण मिलाये हुए 400 मिली. गरम दूध के साथ प्रतिदिन 2 बार सेवन करायें। बीड़ी सिगरेट, गरम चाय, मिर्च व खटाई का प्रयोग इस रोग में निषेध कर दें। यदि रोगी को मिचली व बेचैनी हो तो नमक मिला मट्ठा या नीबू का रस शक्कर एवं जल मिलाकर दें।

• रोगी की आँतें अण्डकोष में उतर आने पर अण्डकोष को बरफ से भरी थैली में डाल दें। चन्द मिनटों में आँतें अण्डकोष छोड़कर ऊपर पेट में चली जायेंगी तथा रोगी को दर्द से तत्काल राहत मिलेगी ।

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