गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna

(गर्भाशय का उलट या फिसल जाना,bacha girna,garabh girna)

रोग परिचय-यह रोग स्त्रियों को अति दुःखदायी होता है। यदि एकाएक गर्भाशय पलट या फिसल जाये तो अत्यधिक मात्रा में रक्तस्त्राव हो जाता है, जिसके फलस्वरूप रोगिणी के हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं, शरीर का रंग पीला पड़ जाता है तथा बेहोशी हो जाती है। माथे पर ठण्डा पसीना आता है, पेडू से कोई बीज निकलती हुई महसूस होती है और कई बार तीव्र ऐंठन भी होती है। पेडू, गुदा, कमर, जाँघों और पिन्डलियों में तीव्र दर्द होता है। अक्सर रोगिणी को ज्वर भी हो जाता है। कभी-कभी मल-मूत्र रुक जाता है। यदि अंगुली प्रवेश करने पर गर्भाशय के मुख के खुले भाग से गर्भाशय फँसा हुआ हो तो यह समझ लेना चाहिए कि गर्भाशय पूर्णरूपेण उलट चुका है। यदि गर्भाशय की गर्दन बाहर आ जाए तो उसका छेद भी दिखलाई देता है। गर्भाशय बाहर आ जाने पर आंवल बाहर आ जाने का भी सन्देह हो सकता है। इसलिए यदि निकली हुई वस्तु छोटी प्रतीत हो और रक्त वाहिनियाँ दिखलायी दें तो पक्के तौर पर आंवल (कमल) ही समझें। यदि इसके विपरीत दशा हो तो उसको गर्भाशय समझें। गर्भाशय उलट जाने के मुख्यतः 4 प्रकार होते हैं।

(अ) पलटे हुए गर्भाशय का भाग गर्भाशय की ग्रीवा तक आ जाता है। ऐसी स्थिति में योनि में अंगुली प्रवेश कर निरीक्षण करना असम्भव होता है।

(आ) पलटा हुआ भाग गर्भाशय के मुख तक आ जाता है। उसका योनि में अंगुली डालने से पूर्णरूपेण पता चल जाता है। इसका निरीक्षण आसान है।

(इ) इस स्थिति में पूर्णरूपेण गर्भाशय फिसलकर योनि के बाहरी छेद के समीप आ जाता है और योनि-कपाट के अन्दर गोल सी वस्तु फँसी हुई महसूस होती है।

नोट-यदि इस स्थिति में योनि के अन्दर अंगुली डाली जाए तो गर्भाशय नीचे आ जाने के कारण अंगुली अन्दर नहीं जा सकती है।

(ई) इस स्थिति में गर्भाशय उलटकर बाहर निकल आता है और यदि एकाएक ऐसा हो जाये तो इसके परिणाम अत्यन्त ही गम्भीर हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में रोगिणी को बगैर बिलम्ब किए किसी पास के राजकीय महिला चिकित्सालय में ले जाना चाहिए ।यह रोग प्रसव समय में गर्भाशय में तीव्र ऐंठन हो जाने से ऑवल अथवा मृत शिशु को अनुचित विधि से खींचकर बाहर निकालने से, गर्भाशय से बहुत अधिक रक्तस्त्राव होते रहने से, उनके बन्धन ढीले पड़ जाने के कारण तथा प्रसव के समय या गर्भपात के बाद स्वी का जल्दी घरेलू काम करने लग जाने से, चूतड़ के बल गिर पड़ने से, अकड़कर या बैठकर मैथुन (सम्भोग) क्रिया करने से, रसूलियां हो जाने से, भारी बोझ उठाने से, अत्यधिक उछलने-कूदने से तथा पुरानी कब्ज के कारण हो जाता है।

उपचार- 1 चम्मच ब्रान्डी (शराब) और 5 बूंद टिंचर नक्सवोमिका

(होम्योपैथिक औषधि) दूध में मिलाकर पिलाना लाभप्रद है। ब्रान्डी (शराब) को दो गुने गरम पानी में भली-भाँति मिलाकर और ठण्डा करके गर्भाशय में डूश करें तदुपरान्त ओलिव आयल और ब्रान्डी सममात्रा में मिलाकर साफ रुई का प डुबोकर गर्भाशय के मुख में रखें। रोगिणी को शक्तिवर्धक योग (टॉनिक) अवश्य सेवन कराते रहें । सर्वप्रथम हाथों को किसी एन्टीसैप्टिक लोशन से भली प्रकार स्वच्छ कर अँगुलियाँ योनि में डालकर (किसी प्रशिक्षित नर्स अथवा रजि. महिला चिकित्सक द्वारा ही गर्भाशय को ठीक अवस्था में करके डाक्टरी रुई की गोल ग‌द्दी बनाकर नीचे लिखे योग में गीला करके उसको गुलाब के फूल के तैल से चिकना करके योनि के ऊपरी भाग में रखवायें ।

योग-बबूल के वृक्ष से निकलने वाला (काला सा) गाढ़ा स्त्राव कुन्दर गोंद, बड़ी मांई, हरे माजू, सीता सुपारी, सभी सम मात्रा में लेकर माजू के क्वाथ में मिलाकर, रुई की ग‌द्दी को इस औषधि में भली-भाँति गीला (तर) करके, इसको गुल रोगन में चिकना करके गर्भाशय के मुख के पास रखवायें तथा रुई की दूसरी गद्दी इसी औषधि में डुबोकर योनि के बाहर रखवा कर लंगोट बांधे। रोगिणी चूतड़ों के नीचे तकिया रखकर प्रभावित अंग को ऊँचा रखें और 24 घंटे इसी स्थिति में लेटी रहे, हिले-डुले नहीं। इस अवस्था में मूत्र को डाक्टर द्वारा कैथेटर डलवाकर निकलवायें । दूसरे दिन किसी कीटाणुनाशक (एन्टीसैप्टिक) औषधि डेटाल इत्यादि से सफाई करके फिर इसी क्वाथ में (पूर्व की भांति) नई रुई की नई गद्दियां रखवाकर लंगोट बांधे। रोगिणी को कब्ज नहीं रहना चाहिए-इस हेतु 2 तोला कैस्टर आयल को 2 तोला दूध में मिलाकर पिलायें। जब तक गर्भाशय अपने स्थान पर भली प्रकार न आ जाये तब तक रोगिणी को चलने-फिरने, हिलने- डुलने और काम करने से रोकें ।• शराब और देवदारु का तैल समभाग में मिलाकर, साफ रुई में डुबोकर, गद्दी बनाकर, रखने से भी गर्भाशय को अपने स्थान पर रखने हेतु प्रयोग किया जा सकता है। यह योग भी अत्यन्त लाभप्रद है। यदि रसूली के कारण पीड़ित स्वी को यह रोग हो तो मुनक्का (बीज रहित) 15 दानें, बन्दगोभी के पत्ते, मकोय के पत्ते, कुकरौदा के पत्ते समभाग लें। सभी की लुग्दी बनाकर 1-1 तोला की मात्रा में पीसकर देवदार के 1 तोला तेल में मिलाकर गर्भाशय के मुख के पास रखवायें, अत्यन्त ही लाभप्रद योग है।

रोगिणी को आराम से लिटाये रखें। आरम्भ में भोजन बिल्कुल ही न खिलायें। कुछ आराम आ जाने के बाद दूध या पके मांस का रस (शोरबा) इत्यादि पेय पदार्थ सेवन करायें ।

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