गर्भाशय-आवरण-शोथ,bachedani ki elarji

(गर्भाशय-आवरण-शोथ,गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना,garbhasya ki sodh,bachedani ki soojan)

रोग परिचय- उदरस्थ झिल्ली के उस भाग में सूजन आ जाती है जिसका सम्बन्ध गर्भाशय से होता है। इस रोग का कारण गर्भाशय की रचना का कमजोर हो जाना, गर्भाशय में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाना, सुजाक या उपदंश रोग हो जाना, अस्पताल में आप्रेशन करते समय और यन्त्र प्रवेश कराते समय चिकित्सक द्वारा असावधानी हो जाना, गर्भाशय, डिम्बाशय और फेलोपियन ट्युबों में शोथ आ जाने और उनमें रसूलियाँ हो जाने तथा मासिक धर्म के समय में सर्दी लग जाना इत्यादि हैं।

इस रोग में शोथ - तीव्र, एवं साधारण- दो प्रकार की होती है। तीव्र शोथ में पीड़ित स्त्री को कम्पन के साथ ज्वर हो जाता है। प्यास, मिचली और वमन का कष्ट होता है। मुँह का स्वाद कड़वा रहता है तथा पेडू में तीव्र दर्द होता है जो थोड़ा सा भी हिलने-डुलने अथवा दबाने से बढ़ जाता है। इसी कारण रोगिणी हर समय अपने पैर पेट की ओर सिकोड़े हुए पड़ी रहती है, क्योंकि पैर फैलाने से दर्द बहुत अधिक बढ़ जाया करता है। पीड़ित आवरण का पानी अत्यधिकमात्रा में रिसकर पेडू के खाली गड्‌ढे में इक‌ट्ठा होता रहता है, जिसके फलस्वरूप रोगिणी का पेडू उभर आता है। यही एकत्रित तरल प्रायः पीप बन जाता है। कई बार गर्भाशय का यह भाग अपने समीप के अंग से चिपक जाता है। योनि में अँगुली डालने पर पेडू के गड्ढे में सीरम या पीप की लहरें प्रतीत होती है। यदि गर्भाशय किसी अंग के साथ चिपक गया हो तो वह अपने स्थान से हिल नहीं सकता है, यदि अंगुली से उसको हिलाया जाए तो वह अपने स्थान पर जकड़ा हुआ प्रतीत होता है और स्वी को सख्त दर्द होता है। यदि शोथ कम हो तो लक्षण भी कम होते हैं।

उपचार-सूखी मकोय, जौ का आटा, रसौत, लाल चन्दन, सफेद चन्दन,

निर्वसी प्रत्येक 3-3 माशा लें। हरी मकोय और हरे धनिया के रस में बहुत बारीक रगड़कर एक अण्डे की सफेदी और गुलरोगन 6 माशा में मिलाकर साफ बारीक कपड़े या साफ रुई की बत्ती बनाकर गर्भाशय में रखने से यह रोग दूर हो जाता है। चन्दनादिवटी 1-1 गोली सुबह-शाम शीतल जब से खिलाना लाभकारी है। इसके बनाने की विधि - गंधा बिरोजा का सूखा सत्व, कबाबचीनी, चोबचीनी, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, सुगन्धवाला, खशखश प्रत्येक 1 तोला तथा गुग्गुल 2 तोला शुद्ध हींग 6 माशा, स्वर्णमाक्षिक भस्म, बंग भस्म प्रत्येक 6 माशा, अभ्रक भस्म 3 माशा, ताम भस्म डेढ़ माशा लें। उन्हें जल में खरल करके 50 वटियां (गोलियां) बना लें और सेवन करें अथवा बाजार से बनी हुई लेकर प्रयोग करें ।

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