डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan

(डिम्बाशय-शोथ, डिम्बाशय-प्रदाह,dimbasya ki soojan,bachedani mein soojan)

रोग परिचय- इस रोग में प्रायः स्वी के एक ही डिम्बाशय में शोथ आती है और दूसरा बचा रहता है। दायां डिम्बाशय बांये डिम्बाशय की अपेक्षा अधिक रोग-ग्रस्त हुआ करता है। यह रोग चिकित्सा की दृष्टि से दो प्रकार का होता है-

1. एक्यूट (नया), 2. क्रोनिक (पुराना) ।

नयें डिम्बाशय शोथ में थोड़ी-थोड़ी देर बाद तीव्र दर्द होता है और हल्का दर्द हर समय बना रहता है। कई बार तो दर्द की अधिकता के कारण रुग्णा बेहोश हो जाती है। कभी-कभी हिस्टीरिया के दौरे भी पड़ने लगते हैं। सम्भोग के समय तीव्र दर्द होता है। ज्वर रहता है। पेडू, कमर व जंघा में दर्द रहता है। पीड़ित डिम्बाशय की ओर की जांघ को दबाने से दर्द बढ़ जाता है। खड़ा होने पर पैर काँपने लगते हैं और दर्द बढ़ जाता है। रोगिणी को प्रायः कब्ज रहती है और पाखाना के समय बहुत अधिक जोर लगाना पड़ता है। कई बार पेचिश भी होजाती है। मितली, कै, हाजमा की खराबी तथा भूख की कमी हो जाती है। मूत्र लाल रंग का अल्प मात्रा में कष्ट से आता है। पेडू को टटोलने से डिम्बाशय की शोथ प्रतीत होती है। यदि शोथ में पीप पड़ जाए तो बार-बार कम्पन होता है और ज्वर आता है। नाड़ी कमजोर हो जाती है। मासिक अनियमित होकर गर्भाशय स्वाव का रोग हो जाता है।

पुराने डिम्बाशय शोथ में भी थोड़ा-थोड़ा दर्द हर समय बना रहता है-जो दबाने से बढ़ जाता है। कई बार दर्द बिल्कुल नहीं होता है। पेट फूल जाना, अजीर्ण, कब्ज, गर्भाशय से पानी आने के रोग हो जाते हैं। हिस्टीरिया के दौर पड़ने लगते हैं, मैथुन के समय, मासिक के समय सख्त दर्द होता है। पीड़ित स्वी चिड़चिड़े स्वभाव की और पगली सी हो जाती है।

नोट-यदि दोनों ओर के डिम्बाशय में शोथ हो जाये तो स्त्री बोझ हो जाती है।

डिम्बाशय शोध और गर्भाशय शोथ के लक्षण आपस में बहुत ही जुलते होते हैं। अतः पाठक ध्यान दें कि डिम्बाशय शोथ में में यदि योनि में अंगुल डालकर दबाया जाए तो रुग्णा स्वी को तुरन्त ही मितली आने लगती है। यदि दांये डिम्बाशय में शोथ होती है तो मूत्र बार-बार तथा कठिनाई से आता है। यदि बांये डिम्बाशय में शोध होती है तो पेचिश हो जाती है, इसके अतिरिक्त यह शोथ टटोलने से अण्डाकार प्रतीत होती है।

यह रोग प्रायः चोट लग जाने, डिम्बाशय की रचना की कमजोरी, मासिक बन्द हो जाने, मासिकधर्म के समय सर्दी लग जाने, उपदंश, आसपास के अंगों में शोथ होने के कारण, चिन्ता इत्यादि कारणों से होता है।

पुराना शोथ अत्यधिक मैथुन, मद्यपान, योनि-शोथ, गर्भाशय-शोथ, जोड़ों का दर्द, खराश उत्पन्न करने वाली औषधियों का योनि में अधिक प्रयोग, सुजाक व उपदंश रोग इत्यादि के कारण हो जाता है।

उपचार- इस रोग का उपचार 'गर्भाशय-शोध' और 'योनि शोथ' की भाँति किया जाता है और उन्हीं योगों के व्यवहार से यह रोग भी दूर हो जाता है। इसके अतिरिक्त पीड़ित स्वी को क्वाथ टेसू के फूल 3 तोला, खशखश का डोडा 2 तोला, सूखी मकोय 3 तोला बाबूना 2 तोला आवश्यकतानुसार पानी में उबालें और सहने योग्य गरम में बैठें।

नोट-इस रोग में लोहे के योग से बनी (Iron) औषधियां सख्त हानिकारक सिद्ध होती कमजोर हो जाती हैं अतः उसकी कमजोरी दूर हैं। हांलाकि रोगिणी इस रोग में बहुत अधिक कमजोर करने के लिए शक्तिप्रद योगों व भोज्य पदार्थों का सेवन अति आवश्यक है।

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