चकत्ते, रक्त चर्म,erythema,garmi loo dhool se hone wale chamdi rog

(चकत्ते, रक्त चर्म,erythema,garmi loo dhool se hone wale chamdi rog)

रोग परिचय-इसे अंग्रेजी में एरीथीमा के नाम से जाना जाता है। कई प्रकार के ज्वर, शोथ, जलन उत्पन्न करने वाले कई रोग, कब्ज, वायु के तेज झकि, गर्मी, लू, धूल आदि के कारण त्वचा शुष्क और लाल वर्ण की हो जाती है तथा उस पर बहुत से लाल धब्बे पड़ जाते हैं। यह एक विशेष प्रकार का चर्म रोग है जिससे त्वचा पर शोथयुक्त लाल चकत्ते एवं चटाख निकल आते हैं। इन चकत्तों में खुजली, जलन और पीड़ा नहीं होती है। इस रोग में आमवात रोग की भाँति सन्धि-स्थलों में दर्द, थकावट और ज्वर कुछ दिनों तक रहता है तथा कभी-कभी दर्द भी होने लगता है। कभी-कभी इनसे छिलके या भूसी सी उतरने लगती है और कभी ज्वर और बेचैनी हो जाती है। चकत्ते अधिक उभरकर छाले बन जाते हैं जिनमें (सीरम) दूषित रक्त या पीप भर जाती है। इस रोग के भी कई प्रकार हैं- लाल रंग के गोल उभरे हुए चकत्ते जिसमें चर्म में रक्त की अधिकता हो जाती है, अँगुलियों पर अत्यधिक लाली फैलती चली जाती है, चकत्ते टांगों और बाजू पर होते हैं, चर्म में शोथ होकर चकत्तों का उभर आना, पेट में वायु दोष से अथवा विषैले प्रभावों से निकलने वाले चकत्ते इत्यादि ।रक्त में (प्रांटोजुआ) नामक कीटाणु की उपस्थिति, सन्धि शोथ, धनुष्टंकार (टिटनेस), डिफ्थीरिया आदि रोगों में सीरम के इन्जेक्शन लगवाने, खियों को मासिक धर्म होने से पहले और शिशुओं के दांत निकलते समय भी यह रोग हो जाया करता है।

उपचार- रोग उत्पन्न होने के मूल कारण का उपचार कर रोग दूर करें। रोगी को सबसे पहले (इच्छाभेदी रस) खिलाकर (जुलाब देकर) पेट साफ करें। यह तीव्र विरेचन है। अतः बच्चों, स्वियों तथा वृद्धजनों को न दें।

चिरायता, त्रिफला, नीम की छाल और पत्ते (प्रत्येक 3-3 ग्राम) कुटकी, चन्द, अडूसा के पत्ते और परवल के पत्ते प्रत्येक 30 मि.ग्रा. लेकर मोटा-मोटा कूटे। फिर 250 ग्राम जल में मिलाकर क्वाथ बनायें। जब 30 मि.ली. शेष बचे, तब आग से उतार, छानकर ऐसी 1-1 मात्रा सुबह-शाम पिलायें तथा भोजनोपरान्त अनन्तमूल और गोरखमुन्डी का क्वाथ 30 मि.ली. पिलायें। यह रक्तशोधन हेतु अत्यन्त लाभप्रद योग है।

• मंजीठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, वच, दारुहल्दी, नीम और गिलोय की छाल-प्रत्येक सम मात्रा में लेकर क्वाथ बनालें। इसे 100 मि.ली. की मात्रा में प्रातःकाल निहार मुँह (बिना कुछ खाये) पियें ।

• शुद्ध आँवलासार गन्धक 10 ग्राम, रस कपूर 6 ग्राम, फिटकरी 10 ग्राम सभी को बारीक पीसकर गाय के 108 बार धुले घी में मिलाकर लेप बनालें और पीड़ित चर्म पर लगायें ।

• सफेद चन्दन का चूर्ण 10 ग्राम, कपूर 25 ग्राम तथा गाय का घी 25 ग्राम का लेप बनाकर रोगग्रस्त चर्म पर दिन में 2 बार लगायें। अतीव गुणकारी है।

• रसमाणिक्य (शास्वीय आयुर्वेदिक औषधि) 250 मि.ग्रा. की मात्रा में (पीसकर) (समभाग) घी और मधु में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करना लाभप्रद है।

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