नारी नपुंसकता (Inpotency of Females)सेक्स की इच्छा ना होना,सेक्स इच्छा की कमी

(नारी नपुंसकता (Inpotency of Females)सेक्स की इच्छा ना होना,सेक्स इच्छा की कमी)

रोग परिचय-पुरुषों की भाँति नारियाँ भी नपुंसक होती हैं। इस रोग का बन्धत्व (बाँझपन) से कोई भी सम्बन्ध नहीं है, क्योंकि नपुंसकता का अर्थ होता है- 'सम्भोग क्षमता का अभाव' तथा इस रोग का सीधा अर्थ हुआ वी में काम वासना का न होना। जब कि बाँझपन का अर्थ होता है, 'सन्तानोत्पादक क्षमता का अभाव' इस रोग से ग्रसित वी को ठण्डी औरत भी कहा जाता है। क्योंकियह कामेच्छा का अनुभव ही नहीं करती है और नहीं उसे कामोत्तेजना आती है। आलिंगन, चुम्बन आदि कामुक प्रवृत्तियों तथा सम्भोग में उसे कोई आनन्द नहीं आता है। ऐसी वी के अंग सूख जाते हैं तथा मस्ती एवं जोश उत्पन्न ही नहीं होता है।

इस रोग के कारण शारीरिक अथवा मानसिक दोनों ही हो सकते हैं। शारीरिक कारणों में नारी गुप्तांग की बनावट में विविध प्रकार की असंगतियाँ हो सकती हैं। उसके गुप्तांग के कपाटों के दोनों सिरे आपस में अड़े रहें तो योनिपथ के संकीर्ण व अवरुद्ध होने से शिश्न प्रवेश में बाधा होना, जरायु में अर्बुद होना तथा बस्ति की अस्थि विकृत रहने की अवस्था में भी नारियों की नपुंसकता उत्पन्न हो सकती है। शारीरिक विकृतियों के फलस्वरूप उत्पन्न नारी की नपुंसकता की चिकित्सा मात्र शल्य क्रिया द्वारा ही सम्भव होती है। मानसिक कारणों में सैक्स सम्बन्धी कोई दुखद आघात व पचपन की कुछ कटु स्मृतियाँ जैसे बलात्कार अथवा सम्भोग- कष्ट का भय या गर्भ स्थिति का भय अथवा माता पिता द्वारा सैक्स सम्बन्धी घटना से दन्डित होना अथवा अति धार्मिक शिक्षा के कारण पापकर्म का मन में स्थाई भाव उत्पन्न हो जाना, या जन्म से ही रक्ताल्पता एवं दुर्बलता के कारण वयस्क होने पर भी निर्बल होने से कामवासना का नहीं जागना, चिन्ता भय, घृणा इत्यादि से सैक्स की स्वाभाविक भावना से भी ग्रसित स्वी को काम वासना की किंचित् मात्र भी उत्तेजना नहीं आती है।

उपचार

• ऐसी रोगिणी का चतुर पति ही 'मनोवैज्ञानिक ढंग से' संभोग के प्रति रुचि उत्पन्न कर उसके ठन्डेपन को दूर करने की चिकित्सा किन्ही घरेलू योगों अथवा यौन विशेषज्ञ चिकित्सकों की अपेक्षा खुद कर सकता है। बशर्ते कि वह सही कारणों की जानकारी प्राप्त कर पूर्णतः सहानुभूति पूर्वक स्त्री को अनुकूल बनालें। रोगिणी को सुन्दर-सुन्दर स्त्री एवं पुरुषों के नग्न चित्र रात्रि में एकान्त में दिखलाये ।

पति को चाहिए कि एकान्त शान्त एवं निः शब्द वातावरण में प्रकाशयुक्त बन्द कमरे में पत्नी से मीठी-मीठी सुहावनी बातें करते हुए उसके गुप्तांग के भगांकुर या क्क्रामकेन्द्र का स्पर्श करें। यह स्वी की कामवासना प्रधान अंग होता है। मामूली रगड़ या जोश से यह तनकर फूल जाता है और स्वी में कामवासना जागृत हो उठती है। उसमें पुरुष के लिंग की भाँति मूत्र का छेद नहीं होता है तथा यह योनिके बड़े ओष्ठों के संगम से लगभग 125 सेमी. नीचे और अन्दर होता है। मैथुन के समय स्वी को इसी अंग के कारण आनन्द प्रतीत होता हैimette

पत्नी के स्तनों को हल्के हाथों से सहलाये एवं समस्त शरीर का एक साथ आलिंगन करें। यदि उसके मन में किसी प्रकार का भय, चिन्ता या घृणा का भाव हो तो उसे आश्वासन, सान्तवना एवं जोशीले विचारों द्वारा पूर्णतयः सहानुभूतिपूर्वक समझा बुझाकर दूर कर दे। स्वी पर जबरन प्रयास कदापि न करें, क्योंकि इससे वह रूठ जायेगी। यथा सम्भव प्रेमपूर्वक मुस्कुराते हुए प्रफुल्लित मन में उपरोक्त कार्य सम्पन्न करें। अवश्य सफलता मिलेगी और शनैः शनैः रोग दूर हो जायेगा। साथ ही चिकित्सा भी करें।

• ताल मखाना, लता, कस्तूरी बीज, असगन्ध नागौरी, शतावरी ताजा, मखाना, काकहिया के पत्ते, सफेद मूसली, काली मूसली, अशोक की छाल, आम के फूल, सौंठ, खशखश, अनार के फूल, भांग के पत्ते - प्रत्येक 5 तोला। कस्तूरी, केसर, भीमसैनी काफूर, मोचरस, छोटी इलायची के बीज 1-1 मांशा लेकर इनमें से सर्वप्रथम सख्त औषधियों को कूट पीसकर कपड़े से छानकर सूक्ष्म चूर्ण बनायें। फिर कस्तूरी आदि औषधियों को खरल करके मिलालें। भलीभाँति मिल जाने पर 1-1 माशा की मात्रा में सुबह शाम 10 ग्राम मलाई के साथ रोगिणी को खिलाकर ऊपर से 1 पाव गरम दूध पिलायें। इस योग के सेवन से स्वी में अपूर्व बल कामोत्तेजना एवं जोश उत्पन्न हो जाता है।

• दशमूलारिष्ट, बलारिष्ट तथा अश्वगन्धारिष्ट प्रत्येक 1 तोला एक साथ मिलाकर समान मात्रा में जल मिलाकर सेवन कराने से भी अपूर्व बल, जोश तथा उत्तेजना आती है। रोगिणी को पौष्टिक भोजन, मक्खन मलाई, सूखे फल, ताजा शतावर, अन्जीर, आम, सेव, अंकुरित चने, मूंग और अंकुरित गेहूँ, केला, खीर, बबूल के गोंद के लड्डू इत्यादि पर्याप्त मात्रा में खिलायें तथा उसके मन में चिन्ता शोक, शारीरिक परिश्रम से पैदा हुआ क्षोभ, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, तथा अन्य मानसिक विकार न आने दें। उसे हर समय खुश तथा मुस्कराता हुआ रखें। रोगिणी को गरम खट्टे भोजन, लालमिर्च, तेल, अचार, बाजारू चाट-पकौड़े इत्यादि से पूर्णतः परहेज रखवायें तथा दही, घी, और मिश्री मिला हुआ गाय का दूध 1-1 पाव सुबह शाम पिलायें ।

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