छपाकी शीतपित्त (Irticaria)Urticaria,gulam pitt,seetpitt,chhapaki pitt
(छपाकी शीतपित्त (Irticaria)Urticaria,gulam pitt,seetpitt,chhapaki pitt)
रोग परिचय-इस रोग को-जुड़ी पित्ती, जुल्म पित्ती, शीत पित्ती, छपाकी इत्यादि कई नामों से जाना जाता है। रक्त की उष्णता के कारण शरीर पर चकत्ते या ददौरे पड़ जाते हैं, जो तेजी से खुजलाते हैं। रोग पुराना हो जाने पर इससे छुटकारा पाना अत्यधिक मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी इसके साथ ज्वर भी हो जाता है। प्रायः यह रोग पाचक संस्थान की गड़बड़ी (अजीर्ण, अग्निमाद्य, मन्दाग्नि, कब्ज) अथवा स्वियों के गर्भाशयिक विकारों तथा वात रोग किसी प्रकार के जहरीले कीड़े-बर्र, मधुमक्खी, मच्छर, खैटैमल आदि के काटने से अथवा अत्यधिक शीत या धूप लग जाने, अत्यधिक परिश्रम, तनाव, चिन्ता, मानसिक उत्तेजना, किंसी खाद्य या पेय पदार्थ किसी औषधि-विशेष से होने वाली एलर्जी, धूल, धुआँ, गन्ध, सुगन्ध, ऋतु परिवर्तन, भोजन में अत्यधिक तेज मिर्च मसाले, घी-तैल का प्रयोग, खट्टे, चटपटे पदार्थों का सेवन, उपदंश रोग के विषाणुओं और सर्दी-गर्मी का एक साथ प्रकोप यथा- नहाकर जल्दी से ही कोई गरम कम्बल अथवा रजाई ओढ़ लेना अथवा जल्दी से गर्म चाय, कॉफी, दूध अथवा कोई गरम पदार्थ सेवन कर लेना तथा ऐलोपैथिक (सैलिसिलेट, एस्प्रिन, वेदना हर दवाओं तथा पेनिसिलीन इत्यादि के प्रयोग के कारण यह रोग हो जाया करता है। मांस-मछली का अधिक सेवन तथा क्वीनीन (मलेरिया की ऐलोपेथिक दवा) और संखिया मिश्रित योगों के सेवन से भी यह रोग हो जाता है
उपचार
रोगी भयंकर शीत तथा गरमी से बचे। पानी में भीगना, ओस में सोना या चलना-फिरना, सर्द वायु में न रहे, मांस-मछली, अण्डे इत्यादि का सेवन न करें।
नीम के पत्ते डालकर गरम किये पानी से स्नान करना हितकर तथा आवश्यक है। नीबू के टुकड़ों से चकत्तों को मलना भी लाभकर है। भोजन हल्का सुपाच्य खाना चाहिए। इस रोग को दूर करने का सबसे सरल उपाय यह है कि रोग के मूल (वास्तविक) कारण का उपचार किया जाए अन्यथा यह रोग कई वर्षों तक बना रह सकता है।
• घी में थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर शरीर पर मलने से उठी हुई पित्ती शान्त होती है।
• नीम के हरे पत्ते साफ करके तब तक चबाते रहें जब तक कि कड़वे न लगने लग जायें। यदि हरी निबौली मिल जाए ते 6 नग चबायें। अत्यन्त प्रभावशाली औषधि है। S
• यदि पित्ती के ददौड़ों में खुजली अधिक हो तो अर्क गुलाब 30 ग्राम में सिरका 20 ग्राम को मिलाकर लगाने से तुरन्त आराम मिलता है।
• सर्पगन्धा की जड़ 1 ग्राम बारीक पीसकर पानी के साथ लेने से तुरन्त लाभ मिलता है।
• पोदीना 9 ग्राम और शक्कर 20 ग्राम लेकर दोनों को 200 ग्राम पानी में उबालकर, छानकर पिलाने से पित्ती शान्त हो जाती है।
• नागकेसर बारीक पीसकर 3 ग्राम लें। उसे 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 4-5 बार चटाना लाभप्रद है।
• आँवले का चूर्ण गुड़ में मिलाकर सेवन करना लाभप्रद है।
• अदरक के रस में पुराना गुड़ मिलाकर खिलाना भी लाभप्रद है।
• त्रिफला चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से भी शीत पित्ती समूल नष्ट हो जाती है।
अरने उपलों की राख शरीर पर मलना भी अतीव गुणकारी है।
शीतपित्त के चकत्तों पर गेरू मलना और गेरू खाना लाभप्रद है।।
• सरसों के तैल की मालिश करके गरम गुनगुने पानी से स्नान करना भी अत्यन्त ही लाभकारी है।• गाय का घी, गेरू, सेंधानमक, कुसुम के फूल बराबर-बराबर लेकर पीस लें और उबटन बनाकर शीत पित्ती में मालिश करें। शीत पित्त हमेशा के लिए नष्ट हो जाती है।
ऑवले तथा नीम के कोमल पत्तों को घी में तलकर 15 दिन तक 4-4 पत्ते सेवन करने से मात्र शीतपित्त ही नहीं, बल्कि अनेक प्रकार के चर्म रोग नष्ट होकर त्वचा निरोग, साफ व सुथरी हो जाती है।
(पित्तीनाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग
आर्टप्लेक्स टेबलेट (चरक) - वयस्कों को 2-2 टिकिया दिन में 3-4 बार चीनी मिश्रित जल से तथा बच्चों को आधी मात्रा दें।
वेगीकार्ट टेबलेट (हिमालय)-2-2 टिकिया दिन में 3-4 बार लें तथा
इसी कम्पनी का वेगीकार्ट मलहम दिन में 3 बार अथवा आवश्यकतानुसार पित्ती में मालिश करें।
पुरीला लिक्विड (चरक) - वयस्कों को 3-3 चम्मच दिन में 3 बार समान मात्रा में जल मिलाकर तथा बच्चों को 1-2 चम्मच दिन में 3-4 बार।
एलार्जिन टेबलेट (अजमेरा) - 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें।
चर्म रोगहर मलहम (जी. ए. मिश्रा) - आवश्यकतानुसार पीड़ित त्वचा पर दिन में 2-3 बार मलें ।
क्यूरोसिन मलहम (भाः औ. निर्माणशाला) - दिन में 3 बार पीड़ित त्वचा पर मालिश करें।
एल्लेरिन टेबलेट (भा. औ. निर्माणशाला) वयस्कों को 2-2 टिकिया दिन में 3 बार तथा बच्चों को 1-1 टिकिया दिन में 3 बार सेवन करायें ।
रक्तोन सीरप (ग्लोब)-2-2 चम्मच प्रत्येक खाना खाने के बाद दें।
डरमिना मलहम (हरबोमेड)- आवश्यकतानुसार दिन में 2 बार पीड़ित
त्वचा पर मलें ।
शोधक सीरप (देशरक्षक) - वयस्कों को 2-2 छोटे चम्मच, समान जल मिलाकर दिन में 3 बार बच्चों को आधा से 1 चम्मच दिन में 3 बार
प्यूरीफाइर सीरप (मेडिकल इथिक्स) - वयस्कों को 1-2 छोटा चम्मच दिन में 3 बार बराबर पानी मिलाकर तथा बच्चों को आवश्यकतानुसार प्रयोग करायें।
ब्लूडेक्स लिक्विड (बी. ए. फार्मा) वयस्कों को 1-2 चम्मच दिन में 3 बार बच्चों को आधा से 1 चम्मच दिन में 3 बार दें।ालघुसूत शेखर टिकिया (वैद्यनाथ) - 1-2 गोली दिन में 2-3 बार मिश्री मिले दूध से दें।
अलटैक्स टेबलेट (हरबोमेड) 1-2 गोली दिन में 3 बार। इसी नाम से इसी कम्पनी का पेय भी आता है, इसे वयस्कों को 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार तथा बच्चों को आधा से 1 चम्मच दिन में 2-3 बार सेवन करायें।
रक्तशोधन वटी (धन्वन्तरि)- 1-2 गोली दिन में 2-3 बार लें।
सारीन टेबलेट (ग्लोब)- 2-3 टिकिया भोजनोपरान्त दिन में 3 बार ।
अर्टटिव गोली (धन्वन्तरि)- 2-3 टिकिया दिन में 2-3 बार पानी से सेवन करें
रक्ताशू सीरप (अजमेरा)-2-3 चम्मच समान मात्रा में जल मिलाकर दिन में 2-3 बार दें। साथ में इसी कम्पनी द्वारा निर्मित इसी नाम से प्राप्य टिकिया 1-2 दिन में 2-3 बार खायेंॉडलि
सिद्धयोग चक्रिका (मुलतानी) - 1 से 4 4 वर्ष के बच्चों को चौथाई तथा 4 से 12 वर्ष के बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को 1 और 12 वर्ष से ऊपर आयु वाले बच्चों एवं वयस्कों को 1 से 2 चक्रिका दिन में 2 बार दूध, मक्खन, मलाई अथवा मधु से सेवन करायें।
एमीप्योर सीरप (एमिल) - 1-1 चम्मच बराबर पानी मिलाकर दिन में 3 बार । इसकी इसी नाम से टेबलेट भी प्राप्य है।
गन्धक मिश्रण (धन्वन्तरि) - 1-2 गोली दिन में 2-3 बार जल से या आवश्यकतानुसार लें ।
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