गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh
(गर्भाशय शोथ ,Metritis,garbhasya ki sodh)
रोग परिचय-यह रोग मासिकधर्म बन्द हो जाने अथवा कम आने, अत्यधिक सम्भोग करने, चोट लग जाने, प्रदर काल में सर्दी लग जाने या उण्डे पानी से नहाने-धोने अथवा ठण्डी वस्तुओं का सेवन करने, गर्भाशय में तेज औषधियों के स्थानीय प्रयोग, सूजाक, उपदंश तथा प्रसवकाल में असावधानियों के कारण हो जाता है। आधुनिक चिकित्साशास्खी इस रोग का कारण शोथ उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं को मानते हैं।
इस रोग में (नई शोथ में) पेडू में बहुत तेज दर्द और जलन होती है, सर्दी लगकर ज्वर हो जाता है। बार-बार मल-मूत्र का त्याग होता है। प्यास लगती है, जी मिचलाता है, कमर और सीवन में दर्द होता है। यदि गर्भाशय के पिछले भाग में शोथ अधिक हो तो पाखाना करते समय कष्ट होता है। दो-चार दिनों के बाद पीले रंग का लेसयुक्त पानी आना आरम्भ हो जाता है। फिर 8-10 दिन के बाद लक्षणों में कमी आ जाती है और उचित उपचार से रोगिणी ठीक हो जाती है। किन्तु उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में यह रोग पुराना हो जाता है।
गर्भाशय की पुरानी शोथ में ज्वर नहीं होता है, किन्तु पेडू पर बोझ प्रतीत होता है, हल्का-हल्का सिर दर्द रहता है तथा शोथ के स्थान पर ऊपर से उभार दिखलायी पड़ता है। शोथ जितना अधिक पुराना होता जाता है, उतनी ही दर्द में कमी और पेडू में सख्ती होती चली जाती है। शोथ होने पर दशा इसके विपरीत होती है। रोगिणी को अजीर्ण हो जाता है। मासिक अनियमित रूप में आता है तथा पीड़ित स्वी कमजोर हो जाती है।
उपचार अशोकारिष्ट 2 से 4 छोटे चम्मच तक बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दिन में 2 बार पिलायें। इसके निरन्तर सेवन से गर्भाशय-शोथव गर्भाशय की निर्बलता (कमजोरी) और प्रदर सम्बन्धी रोग दूर होकर गर्भाशय शक्तिशाली होकर बांझ स्वियों तक को गर्भ ठहर जाता है।ান্টা
• बान्डी (शराब) और जैतून का तैल सम मात्रा में मिलाकर साफ डाक्टरी वाली रूई डुबोकर गर्भाशय के मुख में रखना लाभप्रद है।বিক
• हरी मकोय के पत्तों का भुर्त्ता 1 तोला, मुनक्का बीज 5 दाना, बादाम की गिरी के छिलका रहित 5 नग पीसकर 1 अण्डे की जर्दी में मिलाकर गर्भाशय के मुख के पास रखना लाभकारी है।
• नीम के पत्ते 1 तोला, मैथी के बीज 6 माशा, अलसी 6 माशा, अन्जीर 2 नग और मधु 2 तोला लें। इन्हें आधा सेर पानी में उबालकर इस क्वाथ डूश या टकोर करने से गर्भाशय शोथ पककर यदि उसमें पीप पड़ जाए तो पीप को निकालने के लिए लाभप्रद है। रोगिणी को अधिक परिश्रम और सम्भोग से बचायें तथा शीघ्रपाची पौष्टिक भोजन दें
नोट-गर्भाशय शोथ को आराम आ जाने पर भी मासिक धर्म आने के समय दोबारा शोथ होने का भय रहता है। अतः मासिक आने से कुछ दिन पूर्व पीड़ित स्वी को गर्भाशय को शवित प्रदान करने वाले खाने और योनि में रखने की औषधियों का प्रयोग प्रारम्भ कर देरा चाहिए । रोगिणी अत्यधिक कमजोर हो तो व्यवनप्राश या मकरध्वज वटी और गर्भाशय को शक्ति प्रदान करने वाली औषधियों का सेवन करते रहना चाहिए ।
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