सूखी खुजली (Pruritis)sukhi khujli,elerji wali khujli
सूखी खुजली (Pruritis)sukhi khujli,elerji wali khujli
रोग परिचय-इस अंग्रेजी शब्द में कई प्रकार की खुजली सम्मिलित है।
जैसे-भिड़, बिच्छू, मधुमक्खी अथवा अन्य दूसरे विषैले कीड़ों के डंक से उत्पन्न होने वाली खुजली और शोथ, एलर्जी से पैदा होने वाली पित्ती आदि का कष्ट, बुढ़ापे में माला की भंति लाल दानें (Herpjr zoster) निकल आना-जिसमें खुजली तथा जलन होती है, पुरानी वृक्कशोथ से पैदा खुजली, यकृत दोष या पान्डु रोग के कारण उत्पन्न होने वाली खुजली, मधुमेह (मूत्र में शक्कर आना) से उत्पन्न फोड़े-फुन्सी, सख्त गर्मी और धूप में चलने से गर्मी के दाने, (पित्त) एवं रक्त विकारों से उत्पन्न खुजली, स्वी की योनि, गुदा और पुरुषों के अन्डकोषों के पास उत्पन्न होने वाली खुजली इत्यादि ।
यह रोग जीर्ण रोग भोगने के बाद जीवनी-शक्ति क्षीण हो जाने पर, मैला-कुवैला, गन्दा रहने पर, गरिष्ठ भोजनों से अथवा अधिक सदीं या गर्मी के कारण हो जाता है। इसमें छोटे-छोटे शुष्क दाने निकलते हैं-जिनमें सख्त खुजली व जलन होती है, चर्म शोधयुक्त तथा लाल वर्ण का हो जाता है, जलन और खुजली के कारण नींद कम आती है।
उपचार-सर्वप्रथम रोगी जुलाब लेकर अपना पेट. साफ करे।
• चालमोगरा और नीम का तैल सम मात्रा में मिलाकर पीड़ित त्वचा पर दिन में 2-3 बार मालिश करना अत्यन्त ही उपयोगी है।
• तुखमलंगा का बारीक चूर्ण करके 24 ग्राम की मात्रा में ताजा जल से सुबह-शाम खाना भी अतीव गुणकारी है।• जंगी हरड़, शाहतारा, कड़वा चिरायता प्रत्येक 4-4 ग्राम लें। चूर्ण करके शाम को जल में भिगोकर प्रातःकाल छानकर पीना लाभप्रद है।
• आँवलासार गन्धक को 100 बार धुले घी में भली-भाँति खरल करके लगाना अतीव गुणकारी है।
• सेंधव लवण, पॉवर के बीज, सरसों और पीपल को कंजी में सूक्ष्म पीसकर रोगाक्रान्त स्थान पर लेप करना अत्यधिक लाभकारी है।
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