तलुवों में जलन होना =Burning hand and feet syndrome=haath pair ke talvo mein jalan


तलुवों में जलन होना =Burning hand and feet syndrome=haath pair ke talvo mein jalan

रोग परिचय-इस रोग के उत्पन होने के विभिन्न कारण है। कभी-कभी किसी-किसी रोगी के हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों में इतनी अधिक दाह या जलन होती है कि रोगी चैन की नींद नहीं सो पाता है।

उपचार

• हरड़, बहेड़ा, आँवला और अमलतास का गूदा प्रत्येक 5-5 ग्राम लेकर जौकूट कर 375 मि.ली. जल में काढ़ा बनायें। 60 मि.ली. जल शेष रहते ही उतार लें और छानकर ठण्डा करके सुबह-शाम पिलायें ।

• मेंहदी के पत्ते, शरपुंखा के पत्ते तथा नीम के पत्ते प्रत्येक 10 ग्राम लेकर जल के साथ सूक्ष्म पीसलें। इसे हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों पर दिन में 3-4 बार लगाकर पट्टियाँ बाँध दें।

नोट-इस औषधि को बहुत देर तक लगाये रहना चाहिए ।

• पित्त पापड़ा, लाल चन्दन, खस, पदमाख, नागरमोथा, प्रत्येक 5-5 ग्राम को जौ-कुट करके आधा लिटर पानी में क्वाथ बनायें। जल 300 मि.ली. शेष बचे, तब ठण्डा करके इसमें 12 मि.ली. शुद्ध शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना इस रोग को नष्ट कर देता है।

• गिलोय सत्व (योग रत्नाकर) 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक मधु से दिन में 2-3 बार चाटें तथा भोजनोपरान्त सारिवरिष्ट 15 से 20 मि.ली. समान जल मिलाकर दिन में 2 बार पियें ।

• महालाक्षादि तैल (भैषज्य रत्नावली) को हाथ पैरों में (हथेलियों व तलवों पर) दिन में 2-3 बार लगाकर मालिश करना भी उपयोगी है।
रोग परिचय-इस रोग के उत्पन होने के विभिन्न कारण है। कभी-कभी किसी-किसी रोगी के हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों में इतनी अधिक दाह या जलन होती है कि रोगी चैन की नींद नहीं सो पाता है।

उपचार

• हरड़, बहेड़ा, आँवला और अमलतास का गूदा प्रत्येक 5-5 ग्राम लेकर जौकूट कर 375 मि.ली. जल में काढ़ा बनायें। 60 मि.ली. जल शेष रहते ही उतार लें और छानकर ठण्डा करके सुबह-शाम पिलायें ।

• मेंहदी के पत्ते, शरपुंखा के पत्ते तथा नीम के पत्ते प्रत्येक 10 ग्राम लेकर जल के साथ सूक्ष्म पीसलें। इसे हाथ की हथेलियों और पैर के तलुवों पर दिन में 3-4 बार लगाकर पट्टियाँ बाँध दें।

नोट-इस औषधि को बहुत देर तक लगाये रहना चाहिए ।

• पित्त पापड़ा, लाल चन्दन, खस, पदमाख, नागरमोथा, प्रत्येक 5-5 ग्राम को जौ-कुट करके आधा लिटर पानी में क्वाथ बनायें। जल 300 मि.ली. शेष बचे, तब ठण्डा करके इसमें 12 मि.ली. शुद्ध शहद मिलाकर सुबह-शाम पीना इस रोग को नष्ट कर देता है।

• गिलोय सत्व (योग रत्नाकर) 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक मधु से दिन में 2-3 बार चाटें तथा भोजनोपरान्त सारिवरिष्ट 15 से 20 मि.ली. समान जल मिलाकर दिन में 2 बार पियें ।

• महालाक्षादि तैल (भैषज्य रत्नावली) को हाथ पैरों में (हथेलियों व तलवों पर) दिन में 2-3 बार लगाकर मालिश करना भी उपयोगी है।

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