विसर्प, सुर्खवाद (Erysipelas)visarjan,shekhawati bukhar
विसर्प, सुर्खवाद (Erysipelas)visarjan,shekhawati bukhar
रोग परिचय- यह एक खतरनाक ज्वर होता है, जिसमें चर्म में फैलने
वाला शोथ उत्पन्न हो जाता है। (इस रोग का कारण स्ट्रप्टो कोक्कस पायोजेन्स नामक 1 कीटाणु होता है। इसकी छूत रोगी के बिस्तर या शरीर से लग जाती है और प्रायः चेहरे पर अथवा जिस बाजू पर टीका लगे या कभी फुन्सी या घाव में संक्रमण होकर यह रोग हो जाया करता है। छूत लगने के 3-4 दिनों के बाद कम्पन लगकर 105 डिग्री फा. हा. तक ज्वर चढ़ जाता है।
जी मिचलाना, सिर में दर्द होना, पीड़ित स्थल पर अत्यधिक लाली, चमक और शोध जिसमें तीव्र दर्द के लक्षण होते हैं। इस रोग में चर्म के नीचे फोड़े हो जाते हैं (सैप्टीसीमिया) रक्त में कीटाणु आ जाने से उनमें विषैले प्रभाव से वृक्कशोथ (नैफाईटिस रोग) आदि रोग हो जाते हैं। कभी-कभी दिमाग और उसके पर्दों में शोध होकर प्रलाप और सरसाम का रोग हो जाता है। जब यह रोग दूर होने लगता है तो लाली, शोथ, जलन व दर्द में कमी आ जाती है और कई दिन तक चर्म से छिलके उतरते रहते हैं। रोग न घटने पर चेहरा और सिर में इन्फ्लेमेशन हो जाना खतरनाक लक्षण होता है। इस रोग में 13 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हो जाती है।
उपचार
• चन्दन पिसा हुआ 12 ग्राम, कपूर और घी 30-30 ग्राम सभी को एक साथ खरल करके विसर्प पर दिन में 3 बार मालिश करना लाभप्रद है।
• खस, मुलहठी, पद्माख समान भाग जल में पीसकर विसर्प पर दिन में 3 बार लेप करें ।
• बट की छाल, पीपल की छाल, गूलर की छाल, शिरीष की छाल, पाकड़ की छाल प्रत्येक 12-12 ग्राम को जल में पीसकर दिन में 2 बार लेप करना गुणकारी है।
• मुलहठी, दारुहल्दी, तगर, कूट, हल्दी, बालछड़, लाल चन्दन, छोटीइलायची, सुगन्धवाला, शिरीष की छाल (प्रत्येक 6-6 ग्राम) सभी को जल में पीसकर घी में मिलावें और थाली पर मैदा की भाँति पीसकर विसर्प पर लगाते ही जलन, सूजन और ज्वर आदि कष्ट दूर हो जाते हैं।
• अरन्ड के बीज, नीम, बाबची, कड़वी राम तरोई, कड़वी तुम्बी, अंकोल, अरन्ड की जड़ और चकबड़ सभी सममात्रा में लेकर बारीक पीसकर कपड़े से छान कर क्रमशः गौमूत्र, दही, दूध, तिलों के तैल, बकरी के मूत्र में बारी-बारी से जोर से खरल करके पाताल-यन्व से तैल निकालकर इसको विसर्प पर दिन में 2-3 बार मलें । शर्तिया लाभप्रद योग है।
चिरायता, त्रिफला, नीम, बाँस के पत्ते, कुटकी, परबल पत्र, श्वेत चन्दन प्रत्येक 3-3 ग्राम को 250 मि.ली. जल में काढ़ा बनायें। जब 30 मि.ली. शेष बचे तब उसे छानकर ऐसी एक मात्रा सुबह-शाम विसर्प के रोगी को पिलायें। विसर्प रोगी के समस्त कष्ट दूर कर निरोगी करने वाला योग हैं।
विसर्प नाशक कुछ प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग
दुग्ध प्रोटीन सूचीवेध (बुन्देलखण्ड) नीलिका सूचीवेध (बुन्देलखण्ड), उशीर सूचीवेध (सिद्धि फार्मेसी, मिश्रा और बुन्देलखण्ड) का चिकित्सक के परामर्शानुसार 1-2 मि.ली. का प्रतिदिन अथवा सप्ताह में 2-3 बार मांसपेशी में सूचीकरण करायें । इस रोग में समस्त सूचीवेध लाभप्रद हैं।
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