त्वग्ग्राह /Pellagra/vitmin b1 ki kami ke upchar
रोग परिचय-यह रोग विटामिन निकोटेनिक एसिड (विटामिन बी काम्पलेक्स का 1 सदस्य अथवा विटामिन बी का 1 अन्य प्रकार) की कमी सेहो जाता है। यह रोग ज्वार (अनाज) तथा हरी शाक-सब्जियों को खाने वालों शाकाहारियों को विशेषकर होता है। अत्यधिक मद्यपान करने वालों, अतिसार, संग्रहणी और यकृत विकार से पीड़ित व्यक्तियों को भी यह रोग हो जाया करता है। अधिक मद्यपान के कारण उत्पन्न हुए रोग को (एल्कोहाली पेलामा) कहा जाता है। इस रोग में चर्म पर चकत्ते प्रकट होते है तथा स्थानीय चर्म स्थूल हो जाता है। कभी-कभी सिर में दर्द, माथे में चक्कर, चाल की अनिमियतता, हाथ और पैरों में दर्द, पाचन क्रिया की गड़बड़ी, मुखपाक, जीभ एवं मसूढ़ों में सूजन तथा पतले दस्त आदि लक्षण प्रकट होते हैं। रोग के शुरू में चकनों में सूजन, लालिमा होती है, छूने से कष्ट होता है, किन्तु आगे चलकर ये चकत्ते भद्दे होकर उनमें खुरन्ड पड़ जाते हैं। निकोटोनिक एसिड (मेडीकल स्टोरों पर प्राप्य) खिलाने से इस रोग के लक्षणों में कमी हो जाती है। यह इसकी पहचान है।
उपचार
अश्वगन्धारिष्ट तथा अभयारिष्ट दोनों (भै. र.) प्रत्येक 15 मि.ली. तथा जल 30 मि.ली. मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार दें। लाभप्रद है।
• कैशोर गुग्गुल (शा. सं.) रोगी की आयु एवं दशानुसार 1 से 2 गोलियाँ (250 से 500 मि. ग्रा.) गाय के गरम दूध से दिन में 2 बार सेवन करायें । • बलाका तैल (भै. र.) 6 से 10 ग्राम सुबह-शाम उष्ण दूध से दें।
• सैन्धवादि तैल (भै. र.) आक्रान्त त्वचा पर दिन में 2-3 बार मालिश करें तथा साथ ही अश्वगन्धादि घृत 10 से 25 ग्राम तक दोपहर व रात को गरम दूध से खायें। 000k
• योगराज गुग्गुल (शा. सं.) 1 से 2 गोली 250 मि.ली. दूध के साथ सुबह-शाम खिलायें तथा भोजनोपरान्त महा रास्नादि काढ़ा (शा. सं.) 15 से 30 मि.ली. दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन करें।
• गेहूं के जवारे (15 से 18 लम्बे सेमी. गेहूँ के पौधे) को भली भांति धोकर उनका रस निचोड़, वस्त्र में छानकर 15 से 20 मि.ली. तथा बथुआ का साग धोकर उसके पत्तों का रस 15 से 30 मि.ली. लें। दोनों को इकट्ठा करे मिलाकर उसकी आधी-आधी मात्रा सुबह-शाम मधु में मिलाकर सेवन करें ।
• सुबह, दोपहर, शाम कुछ खाने के उपरान्त वात विध्वंसन रस 1 भाग, हिंग्वादि चूर्ण 4 ग्राम और पारसीक यवानी 4 भाग इकट्ठा कूट पीसकर कपड़छनकरके 1 से 2 ग्राम तक यह चूर्ण गाय के घी और गरम जल से खिलायें। यह योग प्रायः सर्वांग वात में भी परम लाभकारी है।
• सौंठ, छिलका छिला हुआ लहसुन, शरफोका के पत्ते, निर्गुन्डी के पत्ते प्रत्येक 10-10 ग्राम तथा त्रिवंग भस्म 2 ग्राम लें 1 सर्वप्रथम काष्ठौधियों का चूर्ण (कूटकर) कपड़छन कर लें। तदुपरान्त इसमें त्रिवंग भस्म मिलालें, फिर इन्हें खरल में डालकर 6 घंटे तक घोटें और सुरक्षित रखलें। इसमें से 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम पूरा लाभ न होने तक मधु से सेवन करें।
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