नाड़ी शूल, स्नायुशूल /न्यूरेल्जिया/Trigeminal Neuralgia

 
नाड़ी शूल, स्नायुशूल /न्यूरेल्जिया/Trigeminal Neuralgia

रोग परिचय-स्नायुशूल उस दर्द को कहा जाता है जो विशेष दोष से पैदा होता है। जैसे माथे की भवों में मलेरिया के कारण दर्द हो जाना दाँतदर्द के प्रभाव से चेहरे में दर्द या मासिकधर्म के दोष के कारण स्वी, के स्तन' या आधे सिर का दर्द होना। वैसे प्रायः दर्द चाहें किसी भी कारण से किसी भी रोगी को हो किन्तु उस दर्द का ज्ञान तन्त्रिका द्वारा प्रतीत होता है। स्नायुशूल दौरों के रूप में हुआ करता है। रोगी को ज्वर या शोध नहीं होता है केवल दर्द होता है।

स्नायुशूल (न्यूरेल्जिया) में तन्त्रिका या स्नायु में दर्द प्रतीत होता है किन्तु वात नाड़ी शोथ 'न्यूराइटिस' में तन्त्रिका में शोथ और दर्द भी होता है। एकाएक दर्द शुरू होकर बढ़ता जाता है और फिर तुरन्त ही दूर हो जाता है अर्थात् यह दर्द दौरों के रूप में हुआ करता है जबकि 'वात नाड़ी शूल' हर समय होता रहता है और रोगग्रस्त भाग को हिलाने या दबाने से दर्द बढ़ जाया करता है। नाड़ी में संज्ञाहीनता और पक्षाघात होने जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं किन्तु सदैव यादरखें कि नाड़ी शूल में नाड़ी में शोथ होता है तो उसको स्थानीय नाड़ी शोथ (Localised Neuritis) और जब कई नाड़ियों में शोथ हो जाती है तो बहुत तन्त्रिका शोथ (Polynaritis) के नाम से जाना जाता है। एक नाड़ी का शोथ चोट लगने, हड्डी उखड़ जाने आदि कारणों से होता है और दिमाग की उस नाड़ी में दर्द रहता है।

उपचार

• छिला हुआ लहसुन, पोस्त दाना, सौंठ चूर्ण, असगन्ध चूर्ण और रास्ना चूर्ण प्रत्येक 50 ग्राम लें। सभी को एकत्र कर खरल में डालकर बारीक पीसें व कपड़छन कर चूर्ण तैयार कर सुरक्षित रखलें। इसे 2 से 3 ग्राम तक गाय के 200 ग्राम गरम दूध से सुबह-शाम तथा रात्रि को सोते समय खिलाने से नाड़ीशूल (तन्त्रिका पीड़ा) तथा तन्त्रिकाशोथ को आराम मिलता है।

योगराज गुग्गुल 2 गोली, महारास्नादि क्वाथ 15 से 30 मि.ली. में बराबर जल मिलाकर ऐसी एक मात्रा प्रातःकाल नाश्ते के बाद तथा रात्रि को भोजनोपरान्त सेवन करने से तन्त्रिका-शूल एवं तन्त्रिका-शोथ में लाभ होता है।

• विषगर्भ तैल 1 भाग, सैन्धवादि तैल आधा भाग तथा महा नारायण तैला आधा भाग सभी को एकत्र मिलाकर तन्त्रिकाशूल एवं शोथ वाले स्थान पर दिन में 3-4 बार मालिश करना अत्यन्त लाभकारी है।

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