घाव का संक्रमण /Wound Infection


घाव का संक्रमण /Wound Infection



रोग परिचय-शरीर पर अनेक कारणोंवश घाव हो जाया करते हैं। घाव में स्टैफिलोकोक्कस नामक कीटाणु का संक्रमण होता है। वर्तमान युग में लाठी, डन्डा, तलवार, भाला, छुरी, चाकू, बरछा, तीर, बांस अथवा अन्य कोई धारदार हथियार के प्रहार से घाव बन जाने की तो बात कौन कहे ? रायफल, बन्दूक, पिस्तौल, मशीनगन, इत्यादि आग्नेय अस्खों से भी घाव हो जाते हैं। चिकित्सीय दृष्टिकोण से यह घाव अनेकों प्रकार के होते हैं। जैसे- मृत्युकारक क्षत या घाव (Martal Wound) या बन्दूक की गोली का घाव या क्षत (Gunshot Wound) या आग्नेयास्व का क्षत या घाव इत्यादि ।

उपचार

• सर्वप्रथम घावों को नीम के ताजे पत्तों के काढ़ा से भली भांति धो-पोंछकरसुखाकर घावों पर 'जात्यादि तैल' दिन में 2-3 बार लगायें अथवा 1 बार लगाकर पट्टी बाँधे। to g

• 'रसमाणिक्य' (भै. र.) 125 से 250 मि.ग्रा. तथा 'गन्धक रसायन' (भै. र.) 500 मि.ग्रा. से 1 ग्राम तक एकत्र मिलाकर मधु से सुबह-शाम चटायें।

• 'महातिक्तधृत' (सि. यो. संग्रह) भेद होते हैं। 1 से 4 ग्राम तक गौदुग्ध या जल से खायें।

• 'महामन्जिष्ठादृरिष्ट' (आयुर्वेदसार संग्रह) 15 मि.ली. तथा 'सारिवाद्यसव' 15 मि.ली. एकत्र मिलालें। उसमें 30 मि.ली. जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार पिलायें।

• व्याधिहरण रसायन, नाड़ी व्रण, हड्‌डी व्रण अथवा उपदंश के संक्रमण से उत्पन्न घावों में इसकी 125 से 250 मि.ग्रा (आयु और आवश्यकतानुसार) मधु से सुबह-शाम दिन में 2 बार चाटकर ऊपर से गौ-दुग्ध पान करें। पुराने घाव के संक्रमण में 'चोपचिन्यादि चूर्ण' (ग्रन्थ आर्यभिषक) भी आयु और आवश्यकतानुगार 3 से 6 ग्राम तक ताजे जल से दिन में 2-3 बार तक खिलायें।

• नीम के ताजे पत्ते, निर्गुन्डी के ताजे पत्ते, शरपुंखा के पत्ते, पत्थरचूर के पत्ते, प्रत्येक 25 ग्राम लेकर इक‌ट्ठा रस निचोड़ कर व छानलें। इसमें स्वच्छ वस्त्र डुबोकर घावों पर पट्टी बाँध दें। अथवा उक्त चारों प्रकार के पत्तों को पीसकर लुगदी बनाकर इसे 1 कड़ाही में रखकर इससे 4 गुना नारियल का तैल डालंकर (तेल मात्र शेष रहने तक) गरम करें। फिर भली भांति छानकर इसमें कार्बोलिक एसिड 100 भाग मिलाकर कांच की स्वच्छ ढक्कन युक्त बोतल में सुरक्षित रखें या इसमें पिघला हुआ मोम डालकर और मिलाकर मरहम बनाकर सुरक्षित रखें। तदुपरान्त इस तैल या मरहम को घावों पर दिन में 2-3 बार लगाया करें। अथवा प्रतिदिन 1 बार लगाकर पट्टी बाँधा करें ठीक न होने तक प्रतिदिन पट्टी बदलकर नई पट्टी बाँधते रहें ।

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