यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan

यकृत का दर्द, यकृत शूल,liver swelling, liver ki soojan

रोग परिचय- इस रोग में यकृत बढ़ जाता है और उसमें दर्द होने लगता है। इस रोग के उत्पन्न होने के निम्न कारण होते हैं- यकृत में फोड़ा होना, एमीबिक पेचिश के कीटाणु द्वारा यकृत में पहुँचकर शोथ उत्पन्न कर दें, जिसके फलस्वरूप यकृत के दाँए लोथड़े में फोड़ा बनकर यकृत बढ़ जाना। इसमें रोगी को धीमा ज्वर, कभी-कभी पेचिश रोग पुराना हो जाने पर दिन में 2-3 बार पेट में मरोड़ उठना इत्यादि कष्ट हो जाते हैं। आधुनिक चिकित्सक फोड़े में अधिक पीप पड़ने पर एसपाइरेटर नामक यन्त्र से पीप निकाल लेते हैं। इस फोड़े को किसी यन्त्रको प्रविष्टि करके अथवा औषधि सेवन द्वारा चीरना या फोड़ना अथवा घाव को धोना बेहद हानिकारक सिद्ध होता है। यकृत में रक्त की अधिकता (Congesttion of the liver) के कारण से भी यह रोग हो जाया करता है। इसमें दाई पसलियों के नीचे बोझ और मामूली दर्द होता है। अजीर्ण, पेट फूल जाना, भूख न लगना, पेट में गैस, भोजनोपरान्त पेट में भारीपन, सिरदर्द, अत्यधिक मांस व मदिरा का सेवन, गर्मी की अधिकता, पुरानी कब्ज, फेफड़ों या दिल के रोगों इत्यादि के कारण भी यह रोग हो जाया करता है।

यकृत शोथ (Hepatities) - यकृत के पर्दे में शोथ हो जाने पर यकृत

के स्थान पर दर्द होता है। और रोगी को सांस कठिनाई से आता है किन्तु यकृत के अन्दर शोथ हो जाने पर ज्वर भी हो जाता है और दांयी ओर निचली पसलियों पर यकृत स्थान को दबाने पर दर्द होता है।কালীন

প্রিজাইবানকে

उपचार- रोगी को बिस्तर पर लिटाये रखें। वास्तविक (मूल) कारण का निरीक्षणोपरान्त उपचार करें। कब्ज को दूर करने के लिए रात्रि को सोते समय पंचसकार चूर्ण 2 ग्राम अथवा त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम गरम जल से खायें।

• कुमार्यासव (योग रत्नाकर) भोजनोपरान्त 15 से 30 मि.ली. समान जल मिलाकर दिन में 2 बार लें।

• शूलवजिणी (रस चन्डांश) 1 से 4 गोलियां (250 मि.ग्रा. से 1 माम तक) बकरी के दूध से दिन में 3 बार सेवन करना लाभप्रद है।

• मकोय के पत्तों का रस 15 मि.ली. संमभाग नीम के पत्तों के रस के साथ मिलाकर सुबह-शाम दिन में 2 बार सेवन करना लाभकारी है।

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