पौरुष ग्रन्थि-वृद्धि शूल (Prostate Enlargement)

पौरुष ग्रन्थि-वृद्धि शूल (Prostate Enlargement)


रोग परिचय वृद्ध पुरुषों की प्रोस्टेट ग्रन्थि के बढ़ जाने के कारण मूत्र आना रुक जाता है। मूत्राशय मूत्र से भर जाता है जिसके फलस्वरूप मूत्र वेग के समय अत्यधिक दर्द होता है। रोगी व्याकुल होकर तिलमिला उठता है।

उपचार

• सर्वप्रथम उपयुक्त साइज के रबड़ कैथेटर को किसी योग्य चिकित्सक से लिंग में प्रविष्ट करवाकर मूत्राशय में समस्त एकत्रित मूत्र को बाहर निकलवा दें। इसके उपरान्त पेय पदार्थ कम से कम सेवन करें, ताकि मूत्र कम बने ।

• पुरस्थ वृद्धि हर वटी, शोभांजन की जड़ की छाल, शोभान्जन की गोंद, नीम पत्र, सिन्दुआर पत्र, श्वेत पुनर्नवा मूल, प्रत्येक 100 ग्राम तथा श्वेत फिटकरी भस्म 25 ग्राम एवं कन्टकारी भस्म 10 ग्राम लें। सभी को कूट पीस व कपड़छन कर त्रिफला के काढ़े से संयुक्त करके 250 मि.ग्रा. की गोलियाँ बनाकर सुरक्षित रखलें। यह 1-2 गोली दिन में 3 बार त्रिफला के काढ़ा से सेवन करें।

• सहजन की जड़ की ताजी अन्तर छाल, श्वेत पुनर्नवा मूल, नीम की अन्तर छाल और रोहितक छाल प्रत्येक समभाग लेकर त्रिफला क्वाथ के साथ सूक्ष्म पीसकर लेप बनालें । इस लेप को शिश्नमूल और समस्त शिश्न पर मोटा लेप दिन में 2-3 बार लगाया करें। लेप काफी देर तक लगाये रखें ।

श्वेत पुनर्नवा सर्वांग तथा नीम के ताजे पत्ते (बिना कीड़े खाये) समभाग लेकर एक बड़ी कड़ाही में डालकर उसमें इतना पानी डाल लें कि पुनर्नवा, नीम आदि डूब जाए। फिर खूब उबलने पर इसकी भाप से शिश्न पुरस्थ प्रदेश को दिन में 3-4 बार 2-3 दिन तक सेकें। अति लाभप्रद योग है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आँख आना, अभिष्यन्द,गुहोरी,आंख पे फुंसी

चर्म की खुश्की, चर्म का खुरदरा हो जाना,dry skin,chamdi ki khuski

सफेद दाग,शरीर पर सफ़ेद घबे(Leucoderma)