कट जाने पर होने वाले दर्द व घाव,wound pain
नीम के पत्ते, सिन्दुआर के पत्ते, पत्थर चूर (पाषाणभेद) के पत्ते प्रत्येक 100 ग्राम लेकर जल से धोकर सिल पर पीसकर रस निचोड़ कर कपड़े से छान लें। फिर कड़ाही में डालकर 250 मि.ली. नारियल के तैल में पकाकर (मन्दाग्नि पर पकायें) तेल सिद्ध होने पर इसमें विशुद्ध कार्बोलिक एसिड 125 मि.ली. मिलाकर सुरक्षित रखलें। यदि मरहम बनाना चाहते हों तो सफेद मोम को पिघलाकरइसमें मिलालें । मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें। कटे घाव, जख्म पर इस मरहम को दिन में 2-3 बार लगायें। अत्यन्त लाभप्रद है।
व्रणरोपण रस (रस योग सागर) 1 गोली को मधु, शुद्ध गूगल या ताजे जल के साथ दिन में 2 बार सेवन करें। यह कटे या आछातीय व्रण, जख्म, समस्त नाड़ी व्रण और मकड़ी के विष से उत्पन्न व्रण में लाभप्रद है।
• व्रणान्तक रस (रसयोग सागर) आवश्यकतानुसार 1 से 3 गोलियाँ तक घी के साथ दिन में 2 बार प्रयोग करें। यह प्रत्येक प्रकार के कटे, जले एवं घावों के लिए लाभप्रद है। उपदंश से उत्पन्न व्रणों में भी लाभकारी है। भोजन में गाय, भैस का घी अधिक प्रयोग करें। घर पर बनाना चाहें तो निर्माण विधि यह है-शुद्ध सफेद सोमल 1 भाग, शुद्ध सिंगरफ 2 भाग, श्वेत कत्था 2 भाग सभी को काले पत्थर वाले उत्तम खरल में मिलाकर अदरक के स्वरस में 3 दिन तक खरल करके सरसों के आकार की गोलियों बनालें। इन्हें सुखाकर काँच की कार्क युक्त शीशी में सुरक्षित रखलें । St
• वणापहारी रस (रसयोग सागर) 1 से 2 गोली (120 से 240 मि.ग्रा.) त्रिफला क्वाथ या मंजिष्ठादि अर्क 15 से 30 मि.ली. के साथ 2 बार प्रतिदिन सेवन करें। यह हर प्रकार के व्रण, दुष्ट व्रण आदि में गुणकारी है।
• यदि शोथ या फोड़ा काफी सूजकर अधिक दर्द कर रहा हो तो शरपुंखा की जड़ की छाल व पत्ते, नीम के पत्ते और तुख्मलंगा प्रत्येक बराबर-बराबर लेकर जल में पीसकर लुगदी बनालें। इसे कपड़े की गोल पट्टी और मध्य में एक छोटा छिद्र करके पीड़ित स्थान पर गरम-गरम चिपका दें। इसे 12-12 घंटे बाद बदलते रहे। इस योग से दर्द तुरन्त ही दूर हो जाएगा तथा साथ ही फोड़ा पककर बह जाएगा ।
• महामन्जिष्ठारिष्ट (शारंगधर संहिता) तथा सारिवाद्यासव (भै. र.) प्रत्येक 15 मि.ली. समभाग जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार सेवन करें। फोड़ों और घावों के दर्द में पूर्ण लाभ हेतु अत्यन्त उत्तम औषधि है।
• जात्यादिघृत (शारंगधर संहिता) बाजार में उपलब्ध है अथवा स्वयं बनालें नीम के ताजे पत्ते, पटोल के पत्ते, मैनफल, हल्दी, दारु हल्दी, कुटकी, मजीठ, मुलहठी, करन्ज के पत्ते, नेत्रवाला और अनन्त मूल प्रत्येक 12 ग्राम लें। सभी को एकत्रकर जल में पीसकर लुगदी बनालें। इस लुगदी से चार गुणा गौघृत और 16 गुणा अधिक जल मिलाकर मन्द आग पर पाक करते हुए घृत सिद्धकरलें । फिर इसे सुरक्षित रखलें। यदि इसे और लाभकारी बनाना चाहते हों तो इसे छानकर आवश्यक मात्रा में मोम एवं नीला तृतिया का फूला 12-12 ग्राम मिलाकर लेप जैसा मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें। इसे घाव, फोड़े-फुन्सी पर दिन में 2-3 बार लगाकर पट्टी बाँधा करें। यह दुष्ट व्रण, फोड़े, फुन्सी, नासूर, गम्भीर व्रण तथा अन्य व्रणों में अतिशीघ्र लाभ प्रदान करने वाला योग है।
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