नपुन्सकता, नामर्दी,impotence,namardi
रोग परिचय-इस रोग से ग्रसित रोगी पूर्णरूपेण मैथुन करने के अयोग्य हो जाता है। यदि उसके लिंग में होता भी है तो बहुत कम और थोड़ी देर के लिए। अंग्रेजी में इसे सैक्सुअल डेविलिटी भी कहते हैं। इस रोग के मुख्यतः 2 कारण हुआ करता है- 1. शिश्न का टेढ़ापन, ढीलापन और पतलापन आदि रोगों के कारण नामर्दी उत्पन हो जाना, 2. किसी अन्य शारीरिक दोषों के कारण जैसे- अत्यधिक मैथुन, गुदा सम्भोग करना, मैथुन, मस्तिष्क एवं स्नायु दुर्बलता, अस्थिर मानसिक विचारों का होना, अधिक समय मैथुन का त्याग कर देना ।हृदय की कमजोरी, वृक्कों के दोष, अन्डकोषों के दोष, वीर्य और वीर्य अंगों के दोष, हारमोन्स सम्बन्धी दोष, रक्त संचार में दोष, अधिक उपवास रहना, अधिक मद्यपान करना, वीर्य प्रमेह और स्वप्नदोष, सुजाक, उपदंश, मूत्राशय शोध, मूत्राशय की पथरी, अन्तड़ियों के कीड़े, मलाशय के रोग, लिंग के सीवन पर फोड़ा होना अथवा चोट लग जाना, नशीली और सुन्न करने वाली भांग, गांजा, अफीम इत्यादि का अधिक सेवन करना इत्यादि ।
इस रोग में लिंग शक्तिहीन हो जाता है तथा उत्थान होना बन्द हो जाता है। इसे एक प्रकार से पुरुष गुप्तांग का लकवा कह सकते हैं। यह शोक, भय, चिन्ता, रमणी के प्रति अनुराग की कमी, वृद्धावस्था, स्नायविक दुर्बलता, अत्यधिक मानसिक परिश्रम, स्त्री के शरीर अथवा वातावरण का दुर्गन्धित होना, शीतल पदार्थों का अत्यधिक सेवन, सम्भोग क्रिया के प्रति भय उत्पन्न हो जाना, पत्नी अथवा प्रेमिका द्वारा झिड़क दिया जाना, अपराधी होने का भय, शर्मीलापन इत्यादि के कारण भी नपुंसकता रोग उत्पन्न हो सकता है। चिकित्सीय दृष्टिकोण से यह 5 प्रकार का होता है- 1. सहज नपुंसकता, 2. रोगजन्य नपुंसकता, 3. जरासम्भव नपुंसकता, 4. मानसिक नपुंसकता, 5. वीर्यक्षय नपुंसकता। हांलाकि नपुंसकता की समस्या अत्यन्त गम्भीर मानी जाती है किन्तु इसकी चिकित्सा साध्य है, असाध्य नहीं। वैसे यह स्वयं में कोई रोग भी नहीं है बल्कि एक लक्षण है जिसका प्रभाव मनोवैज्ञानिक अधिक होता है। जो नपुंसकता असाध्य होती है वह है जन्मजात नपुंसकता । इसमें औषधियों के सेवन के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक उपचार अधिक कारगर साबित होता है। धैर्यपूर्वक उपचार आवश्यक है, जल्द दवाएँ न बदलें।
उपचार
• दालचीनी 2 भाग, लौंग व राई 1-1 भाग लेकर पाउडर बनालें। इसे आधी ग्राम की मात्रा में गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम खाते रहें ।
• मालकंगनी का तैल 40 ग्राम, घी 80 ग्राम, शहद 120 ग्राम को मिलाकर 1 कांच के बरतन में सुरक्षित रखलें। प्रातःकाल 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करें। इसके प्रयोग करने से राजयक्ष्मा और नपुंसकता नष्ट हो जाती. है तथा दृष्टि (नजर) तेज हो जाती है। गोदुग्ध अधिक पियें तथा 40 दिन तक दवा का सेवन करें।
• सफेद प्याज का रस, अदरक का रस, देशी घी 6-6 ग्राम शुद्ध शहद 10 ग्राम को मिलाकर प्रातः काल 40 दिनों तक नियमित रूप से चाटने से नामर्द-मर्द बन जाता है।• 200 ग्राम लहसुन को सिल पर बारीक पीसकर 600 ग्राम शुद्ध शहद में मिलाकर शीशी में डालकर शीशी का मुँह बन्द कर दें। फिर इसे गेहूँ की बोरी या ढेर में दबा दें। उसे 21 या 31 दिन बाद इसे निकालकर सबेरे-शाम 10 ग्राम की मात्रा में खाकर ऊपर से गुनगुना दूध पियें, 21 दिन प्रयोग करें।
60 ग्राम छिला लहसुन घोटलें और इतना ही पानी मिलाकर छान लें। तदुपरान्त इसमें 10 ग्राम शहद मिलालें। फिर इस शरबत को पीलें। इसके पीने के डेढ़ या 2 घंटे बाद कम से कम 250 ग्राम, इच्छा हो तो किलोभर तक दूध पिया करें। मात्र 2 सप्ताह बाद ही चमत्कार स्वयं दृष्टिगोचर होने लगेगा। आँखों की ज्योति भी बढ़ जाएगी तथा बाल भी सफेद होने से बच जाऐंगे ।
• 6 ग्राम केसर को बारीक पीसकर 5 ग्राम सत्यानाशी के बीजों के तैल में खूब अच्छी तरह खरल करके इस लेप को शीशी में सुरक्षित रखलें। इसे शिश्न के ऊपरी भाग (सुपारी) को छोड़कर शेष भाग पर 2 बूंदों को धीरे-धीरे मालिश करें। प्रतिदिन के इस प्रयोग से लिंग की प्रत्येक प्रकार की निर्बलता मात्र थोड़े ही दिनों में दूर हो जाती है और इन्द्री सुदृढ़ हो जाती है।
• देशी घी में लहसुन की कुछ कलियां भूनकर नियमित रूप से खाने से स्तम्भन-शक्ति में वृद्धि होती है और जन्मजात नपुंसकता को छोड़कर हर प्रकार की नपुंसकता नष्ट हो जाती है।
• 1 अदद (नग) मीठा अम्बरी सेब छीलकर उसमें जितनी भी लौंग आ सकें चुभोकर किसी चीनी-मिट्टी के बरतन में 1 सप्ताह तक पड़ा रहने दें। तत्पश्चात् लौंग निकाल कर सुरक्षित रखलें। फिर प्रतिदिन यह 4 लौंग दूध के साथ चबाने से स्तम्भन शक्ति में अत्यन्त वृद्धि हो जाती है और इन्द्रिय की दुर्बलता समाप्त होकर रोगी पुरुष पौरुष से परिपूर्ण हो जाता है।
नोट-स्वप्नदोष व धातु रोगी प्रयोग न करें ।
• दालचीनी का तैल 10 ग्राम, जैतून का तैल 30 ग्राम को आपस में भली भांति मिलाकर सुरक्षित रखलें। इसे लिंग पर रोग-दशानुसार कुछ दिनों तक निरन्तर मालिश करें तथा इन्द्री को ठण्डे जल से भीगने से बचायें। शीघ्रपतन नष्ट होकर पौरुषवृद्धि हेतु अति उपयोगी प्रयोग है।
• सरसों और अरन्ड के बीज 10-10 ग्राम कूट छानकर 50 ग्राम तिलके तैल में मिलाकर सुरक्षित रखलें। रात के समय लिंग पर मालिश करने से शादी से पहले और शादी के बाद की कमजोरी नष्ट हो जाती है।• इमली के बीजों को रात में भिगोकर सबेरे इन्हें छील, पीसकर बराबरं गुड़ मिलाकर 6-6 ग्राम की गोलियों बनाकर रखलें। यह 1-1 गोली प्रातः सायं खाने से वीर्य की कमजोरी मिटकर पुरुषार्थ वृद्धि हो जाती है। गरीबों के लिए अत्यन्त उपयोगी घरेलू उपचार है।
• बादाम को भिगोकर छीली गई गिरियां तथा काली मिर्च (6-6 नग) सौठ 2 ग्राम, मिश्री इच्छानुसार मिलाकर चबाकर ऊपर से दुग्धपान करने से शीघ्रपतन दूर होकर स्तम्भन शक्ति बढ़ती है। नपुंसकता दूर हो जाती है।
• मूसलीपाक, लक्ष्मी विलास रस, महापाक, हिंगुल भस्म, शिंगरफ युक्त लौह भस्म, पारायुक्त चाँदी भस्म आदि में से किसी भी 1 का सेवन करना भी नपुंसकता को दूर कर देता है।
• छोटा गोखरू 125 ग्राम लेकर चूर्ण तैयार कर घी में भूनकर 250 ग्राम मधु में मिलाकर रखें । प्रातः समय 12 ग्राम खाकर ऊपर से दुग्धपान करने से मर्दाना शक्ति उत्पन्न होकर नपुंसकता नष्ट हो जाती है।
• असगन्ध नागौरी, कौंच के बीज की गिरी, सालब निश्री समभाग लेकर मैदा के समान चूर्ण बनालें। इसे 3 ग्राम में 12 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम दुग्ध के साथ सेवन करने से असाधारण मर्दाना शक्ति उत्पन्न होती है।
• पान की जड़, असगन्ध नागौरी, सफेद मूसली, सम मात्रा में लेकर सुरमे की भाँति बारीक पीस लें। फिर समस्त औषधि के वजन के बराबर खान्ड मिलाकर सुरक्षित रखलें । इसे 6-6 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ खाने से नपुंसकता नष्ट हो जाती है। अनुभूत् योग है।
• दालचीनी का तैल, लौंग का तैल, बादाम का तैल, जमालगोटा का तैल, पिस्ता का तैल सभी समभाग लेकर मिलाकर सुरक्षित रखलें। रात्रि को सोते समय सुपारी और सींवन को बचाकर, शेष इन्द्री पर 1 बूंद की मालिश कर ऊपर से पान का पत्ता बाँधने से नपुंसकता दूर होकर इन्द्री का टेढ़ापन, पतलापन एवं असमानता दूर होकर वह दृढ़ और शक्तिशाली हो जाती है।
• अदरक का रस, प्याज का रस, गाजर का रस प्रत्येक 250 मि.ली. लें तथा मुर्गी के 10 अण्डों की जर्दी, बिनौले का तैल 125 मि.ली., मधु 375 मि.ली. सभी को मिलाकर भली प्रकार फेंटकर धीमी आग पर पकालें। जब चटनी की भाँति गाढ़ा हो जाए तो उतारकर शीशे के बरतन में रखलें। इसे 30 मि.ग्रा. की मात्रा में प्रातःकाल सेवन करें। वृद्धों और नपुंसकों के लिए अमृततुल्य है।• सूखे हुए केंचुएँ जो बरसात के मौसम में गीली जमीन में निकलते हैं, इनको काँटे में फंसाकर लोग मछली का शिकार करते हैं। इन केंचुओं को जिन्दा पकड़कर नमकीन छाछ में डाल देने से इनके पेट की मिट्टी निकल जाती है, यह शुद्ध केंचुआ कहलाता है, इसे थोड़े-थोड़े पानी और घी में डालकर धीमी आग पर पकायें कि केंचुओं का प्रभाव घी में आ जाए, जब पानी जल जाए तो घी को छानकर सुरक्षित रखलें। यह घी 15 से बूंद तक घी या दूध में मिलाकर पीते रहने से नपुंसकता तथा शारीरिक कमजोरी आदि रोग दूर हो जाते हैं। पिसे हुए खुश्क केंचुओं का चूर्ण 2-3 ग्राम की मात्रा में खाने से मर्दाना शक्ति बढ़ कर सम्भोग में आनन्द प्राप्त होने लगता है। दुबले, पतले और क्षयरोग से ग्रसित रोगी इसके सेवन से मोटे-ताजे हो जाते हैं। चमत्कारिक योग है।
• बीर बहूटी (लाल रंग के बहुत सुन्दर कीड़े जो सावन-भादों की बरसात में ग्रामीणांचलों एवं जंगलों में दिखलायी देते हैं) 60 से 120 मि.ग्रा. तक प्रतिदिन खाते रहने से मर्दाना ताकत उत्पन्न होकर वीर्य गाढ़ा हो जाता है। इसका सेवन मानसिक व स्नायविक कमजोरी, हिस्टीरिया, दमा, खाँसी में भी लाभप्रद है। यदि चेचक के दानें किसी के भली प्रकार न निकलें तो 1 कीड़ा पीसकर खिला देने से चेचक के दानें खुलकर निकल आते हैं।
(नपुंसकता नाशक प्रमुख पेटेन्ट आयुर्वेदिक योग
टेन्टैक्स प्लेन तथा फोर्ट टिकिया (हिमालय) (नोट-वृक्क रोगों और हृदयनिपात की अवस्था में कदापि सेवन न करें।) आवश्यकतानुसार 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दूध के साथ सेवन करें ।
हिमकोलीन मलहम (हिमालय) - शिश्न पर मालिश करें ।
अफ्रोडेट कैपसूल (धूतपापेश्वर) - 1-2 कैपसूल दूध के साथ दिन में 1-2 बार सेवन करायें। यह स्वी पुरुष दोनों के लिए उपयोगी है।
नवजीवन कैपसूल (मिश्रा) सैक्सटोन लिक्विड (मेडीकल इथिक्सि) फोर्टेज टेबलेट (एलारसिन) मकरध्वज टेबलेट (मार्तन्ड), टेस्टोबिग टेबलेट (मार्तन्ड) इत्यादि में से किसी एक का व्यवहार करें ।
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