गर्भस्थ शिशु की रचना सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी
गर्भस्थ शिशु की रचना सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी
प्रथम तीन मास की अवस्था
आठ सप्ताह तक के गर्भ को Embryo तथा इसके बाद के गर्भ को (भ्रूण-
शिशु या गर्भस्थ शिशु कहा जाता है।
छठे से 12वें सप्ताह (Place) अपरा का निर्माण हो जाता है।
गर्भस्थ भ्रूण में दिल का स्पन्दन 4 सप्ताह के बाद प्रारम्भ हो जाता है।
नाड़ी तन्त्र का विकास 8वें सप्ताह से प्रारम्भ होता है तथा अस्थियों का बनना भी प्रारम्भ हो जाता है और इस समय गर्भस्थ शिशु में मनुष्य के समान सिर, नेत्र, कान, हाथ, पैर दिखाई देना प्रारम्भ हो जाते हैं।
द्वितीय तीन मास की अवस्था
बाह्य जननांगों का स्पष्ट होना ।
गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन माँ के उदर में सुनाई देने लगती है।
अस्थि निर्माण गति में वृद्धि हो जाती है।
श्वसन संस्थान निर्माण कार्य पूर्ण हो जाता है।निगलने की प्रक्रिया भी प्रारम्भ करने की शक्ति हो जाती है।
बालों का निर्माण होने लगता है।
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अन्तिम तीन मास की अवस्था
27-वें सप्ताह में श्वसन संस्थान का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाता है।
गर्भस्थ शिशु में चूसने पकड़ने की प्रक्रिया का विकास हो जाता है।
अपरा द्वारा छनकर गर्भस्थ शिशु तक पहुँचने वाले पदार्थ
दर्द निवारक औषधियाँ- बार्बीडरेट, मारफीन, पेथाडीन, अफीम ।
नलिका विहीन ग्रन्थियों का स्वाव (हारमोन्स)
उड़नशील, संज्ञा नाशक औषधियाँ ।
जीवाणु नाशक औषधियाँ
विषाणु- बड़ी माता खसरा और पोलियो ।
जीवाणु (वैक्टीरिया)
रोग प्रतिरोधक तत्व (Anti Bodies)
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