छोटी माता, शीतला,choti mata,seetla
छोटी माता, शीतला,choti mata,seetla
रोग परिचय - यह एक संक्रामक ज्वर बच्चों को महामारी के रूप में होने वाला रोग है। इसे मसूरिका, लघु मसूरिका, काकड़ा-लाकड़ा और वैरियोला (Vaiola) इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। चार वर्ष और इससे कम आयु के बच्चे इस रोग से भी अधिक ग्रसित होते हैं। एक बार यह रोग हो जाने के बाद फिर दुबारा नहीं होता है। इस रोग का वायरस श्वासांगों-नाक और मुँह के मार्ग से शरीर में प्रवेश कर जाता है। शिशुओं में यह रोग अधिक तीव्र नहीं होता है। यदि वयस्क रोगी को यह रोग हो जाए तो अत्यन्त तीव्र रूप धारण कर लेता है। उनको इस रोग से न्यूमोनिया होकर त्वचा पर दाने निकल आते हैं जिनसेरक्त आने लगता है। कीटाणु शरीर में चले जाने के 15-16 दिन के बाद इस रोग के निम्न लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं
गुलाबी रंग के दानें व धब्बे गुच्छों के रूप में बारी-बारी से शरीर पर कभी एक अंग पर तो कभी दूसरे अंग पर निकलते हैं। ज्यों-ज्यों दाने और धब्बे निकलने है त्यों-त्यों रक्त में उत्तेजना से बच्चे को 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट तक ज्वर हो जाता है। ये दाने 25 घंटों में फूलकर छाले बन जाते हैं। इनमें पानी जैसा तरल उत्पन्न होने लगता है और चौथे दिन शुष्क होने लगते हैं तथा 1-2 दिन के बाद इनके खुरन्ड उतरने लगते हैं। यदि सम्पूर्ण शरीर पर एक ही बार ये दाने निकल आयें तो यह रोग एक सप्ताह में दूर हो जाता है। चेचक के दाने तो एक ही बार निकल आते हैं किन्तु छोटी माता के दाने ठहर-ठहर कर बारी-बारी से निकलते रहते हैं। ज्वर हो जाने के 24 घंटे बाद पीठ पर, फिर माथे और चेहरे पर दाने निकलते हैं।
उपचार-विषाणुओं (Virus) से पैदा रोग शीतला, खसरा, चेचक आदि कष्टों को दूर करने हेतु ही दवा दिये जाने का नियम है। बच्चे को दाने निकल रहे हों तो उसको स्नान कराना और ठण्डे पेय पदार्थ देना उचित नहीं है। मुनक्का खिलाने से दाने आसानी से निकल आते हैं। बच्चे को दानें खुजलाने एवं खुरचने से अवश्य ही रोकें। खसरा तथा चेचक में लिखे योगों का सेवन कराना ही इसका उपचार है।
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