भगन्दर (Fistula in Ano) bavaseer
भगन्दर (Fistula in Ano) bavaseer
रोग परिचय-यह एक अत्यन्त कष्टप्रद रोग है। इस रोग में रोगी की गुदा से 1-2 अंगुल छोड़कर फुन्सियाँ सी हो जाती है, जिनसे मवाद रक्त बहता रहता है। इन फुन्सियों में तीव्र पीड़ा होती है और रोगी को उठने-बैठने, चलने-फिरने में अत्यन्त कष्ट होता है। यह फुन्सियाँ आसानी से सूख नहीं पाती हैं और रोगी के नाड़ीव्रण अथवा नासूर जैसे घातक घाव उचित उपचार के अभाव में हो जाते हैं। हांलाकि यह रोग असाध्य नहीं है किन्तु कष्टसाध्य अवश्य है। इसका उपचार भी कठिन है। यह रोग शिशुओं को भी हो जाता है। इसके लक्षण निम्न प्रकार हैं। गुदमार्ग के बगल में दरार होकर उसमें पीप, दूषित रक्तवारि का स्राव होना तथा यदा-कदा पीड़ा होना और पीड़ित स्थान पर घाव बन जाना।
उपचार- इस रोग का ऐलोपैथिक चिकित्सक आप्रेशन द्वारा और आयुर्वेदिक चिकित्सा 1. विरेचन, 2. अग्नि कर्म, 3. शस्त्रकर्म एवं 4. क्षारकर्म के उपचारों से पीड़ित रोगी की चिकित्सा करते हैं। बच्चों एवं शिशुओं में क्षारसूत्र का प्रयोग मृदु कर्म होने के कारण घरेलू उपचार ही लिखे जा रहे हैं-
उत्तम क्वालिटी की राल को बारीक पीसकर भगन्दर पर लगाने से भगन्दर नष्ट हो जाता है।
करील व अंडी के पत्तों को हल्का गरम बाँधने से भगन्दर घुल जाता है।नोट-करील में पत्ते नहीं होते हैं अतः ऊपर की कोपलें ही प्रयोग करें।
अलसी की राख को गुदा के घावे पर बुरकने से घाव भर जाता है।
आधा किलो नीम रस और 250 ग्राम बूरा चीनी को मन्दाग्नि पर ऐसी गाढ़ी नाश्नी बनालें कि कलुछी निपकने लग जाए। तदुपरान्त चित्रक, हल्दी, त्रिफला, प्रत्येक 10-10 ग्राम तथा अजवायन, निर्गुन्डी बीज, पीपल, सौंठ, काली मिर्च, दन्तीमूल, नीम और बाबची के बीज (प्रत्येक 25-25 ग्राम) अनन्तमूल और बायविंडग पीस छानकर चाशनी में मिलादें और सुरक्षित रखलें। इसे 10-10 की मात्रा में ताजा पानी के साथ निगल जायें। भगन्दर नष्ट हो जाएगा ।
हल्दी, आक का दूध, सैंधा नमक, गुग्गुल, कनेर, इन्द्र-जौ प्रत्येक 12 ग्राम को जल में पीसकर लुगदी बनायें। तदुपरान्त तिल का तैल 150 मि.ली.. जल 600 मि.ली., तथा उपर्युक्त लुगदी मिलाकर विधिवत् तैल पाक कर लें। जब तैल मात्र शेष रह जाए तब छानकर सुरक्षित रखलें। इस तैल को भगन्दर पर दिन में 3-4 बार लगायें। व्रण रोपण करने वाला उत्तम योग है।
वण गजांकुश रस (भैषज्य रत्नावली) बच्चों को 1 ग्राम औषधि 3 ग्राम मधु में मिलाकर सुबह-शाम सेवन कराना लाभप्रद है।
सप्त विशन्ति गुग्गुल (भैषज्य रत्नावली) 6 ग्राम की मात्रा में गरम जल के साथ बच्चों को सुबह-शाम खिलाना लाभकारी है।
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