खसरा (Measles)सर्दी, जुकाम और नजला

खसरा (Measles)सर्दी, जुकाम और नजला

रोग परिचय-इस संक्रामक रोग का प्रारम्भ सर्दी, जुकाम और नजला से होता है फिर ज्वर हो जाता है। बुखार चढ़ने के चौथे दिन सारे शरीर और चेहरे पर बहुत छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं जिसके कारण समस्त शरीर लाल रंग का दिखाई देने लगता है। नाक से पानी बहना, सर्दी, खाँसी, बार-बार छींकें आना, आँखें लाल हो जाना, आँसू आना, सिर में दर्द, आवाज बैठ जाना, पीठ और हाथ-पैरों में दर्द आदि के साथ 101 से 104 तक ज्वर हो जाना, मुँह के अन्दर गालों और होठों के अन्दर हर ओर छोटे-छोटे लाल दाने पैदा हो जाना आदि लक्षण होते हैं। खसरा के दाने खशखश के दानों से भी छोटे होते हैं। बच्चों को इस रोग के उपद्रव स्वरूप उचित उपचार के अभाव में प्लूरिसी, गले की शोथ और क्षय रोग आदि भी हो सकते हैं। इस रोग का कारण भी एक वाइरसहै जो रोगी की नाक के तरल, दानों, खुरन्ड, साँस, छींकों और थूक द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण फैलाता है। अधिकतर यह रोग बच्चों को ही होता है।কনসন

इस रोग में रोगी को एकाएक 101 से 102 तक ज्वर हो जाता है। आँखों और नाक से पानी बहने लगता है। गले में दर्द और खाँसी, सर्दी और कम्पन होती है। रोगी के मुँह के अन्दर सफेद दाग पैदा हो जाते हैं। इन सफेद दागों को (काप्लीक स्पाट्स) कहते हैं।

नोट-बच्चे को जब भी जुकाम हो जाए तो मुँह के अन्दर की ओर इन सफेद दागों को जरूर देख लिया करें। यदि ऐसे दाग हो तो निश्चित समझें कि बच्चे को खसरा निकल रहा है। खसरा प्रारम्भ होने पर कई बच्चों को शरीर पर पित्ती उछलने की भाँति दाने निकल आते हैं जिनमें खुजली होने लगती है। इस रोग के चौथे दिन खसरा के दाने चेहरे व शरीर पर निकल आते हैं। कई रोगियों को खसरे के दाने 10वें दिन भी निकला करते हैं। ये दाने लाल होते हैं जब तक दानें निकलते रहते हैं तब तक ज्वर बढ़ता रहता है। रोगी की आँखें दुखने लग जाती हैं, प्रकाश में आँखें खोलने पर रोगी को कंष्ट होता है। ये दाने एक सप्ताह के बाद समाप्त हो जाते हैं। दानों का धूरा सा निशान शेष रह जाता है। बच्चों को इस रोग के उपद्रवस्वरूप प्रायः ब्रान्को निमोनिया हो जाता है। यदि खसरे में बच्चे की सांस तेजी से चलने लगे और नधुने धौंकनी की भांति फूलने लगे तो निमोनिया के लक्षण होते हैं। इसका तुरन्त उपचार आवश्यक है। खसरे के रोगी बच्चे के कान के अन्दर अक्सर सूजन भी हो जाया करती है इसीलिए चिकित्सक प्रतिदिन कान के पर्दे से जांच करते रहते हैं। कान में सूजन हो जाने पर काफी समय तक कान में पीप आती रहती है।

उपचार

इस रोग के कीटाणु का संक्रमण हो जाने पर 8 से 12 दिन तक शरीर में छिपी रहती है और रोगी को कोई कष्ट नहीं होता है। इसके उपरान्त ही इसके लक्षण उत्पन्न होते हैं। खसरा का रोग प्रायः बसन्त ऋतु अथवा सर्दी की ऋतु में होता है।

हल्दी और दारु हल्दी दोनों को सममात्रा में लेकर गुलाबजल में घोटकर चने के आकार की गोलियाँ बनाकर रखलें। नित्यप्रति बसन्त ऋतु में शीतल जल के साथ दिन भर में तीन गोलियाँ देते रहने से शीतला (चेचक, खसरा व छोटी माता) कदापि नहीं निकलती हैं और यदि निकल आई हो तो इन गोलियों के सेवन करने के फलस्वरूप आगे नहीं बढ़ेगी। वेग रुक-रुक कर शीघ्र शान्त हो जाएगा। शीतला निकल आने पर अथवा इससे पूर्व किसी भी समय प्रयोग करवा सकते हैं। हानिरहित अनुभूत योग है।

अनबिधा मोती शिशुओं को 40 दिन की आयु के अन्दर निगलवा देने से जिन्दगी भर मोतीझला, खसरा, चेचक छोटी माता सूखा रोग नहीं होता ।जब शीतला के दिनों में ज्वर हो जाये तो तत्काल श्वेत चन्दन स्वरस के क्वाथ अथवा बांसा के स्वरस के साथ अथवा मुलहठी रस के साथ या चमेली के पत्तों के रस के साथ मधु पिलाने से शीतला के विकार नष्ट हो जाते हैं।

बसन्त ऋतु में स्वस्थावस्था में नीम की निबौली, हल्दी, बहेड़े के बीज, सम मात्रा में सभी को जल में घोटकर पिलाने से चेचक आदि का आक्रमण नहीं होता है।

आँख दुखने पर नेत्रों की भीतरी-नीचे की पलकों पर कर्पूर की डली दिन भर में 2-3 बार घुमाना भी लाभप्रद है। नेत्रों के संक्रामक रोगों में यह प्रयोग अत्यन्त ही हितकर है।

चेचक ग्रस्त रोगी को केले के बीज का चूर्ण 1 से 2 रत्ती तक की मात्रा में शहद के साथ देना अत्यन्त ही लाभप्रद है। इसका चमत्कारिक प्रभाव होता है। केले के बीजों का चूर्ण बनाकर स्वस्थ अवस्था में शिशुओं को देने से वे खूब हष्ट-पुष्ट हो जाते हैं। मात्र 6 माह के निरन्तर प्रयोग से चेहरों पर रक्त की लालिमा दौड़ आती है।

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