शिशुओं के लालन-पालन से सम्बन्धित मुख्य बातें,navjaat bachcho ke liye kuch khaas baatein

शिशुओं के लालन-पालन से सम्बन्धित मुख्य बातें,navjaat bachcho ke liye kuch khaas baatein 

नन्हा शिशु 24 घंटे में यदि 20-22 घंटे सुख की नीद सोये तो उसकी पूर्ण स्वस्थ समझना चाहिए ।

शिशु के जन्मते ही आहार आदि देने की हड़बड़ी न करें। जन्म के 24 घंटे के बाद शिशु को माता का स्तनपान करवायें।

यदि घर-परिवार का कोई सदस्य किसी संक्रामक रोग से ग्रसित हो तो उससे नन्हें शिशु को अवश्य ही दूर रखें ।

नन्हें शिशुओं को अत्यधिक हँसाना अथवा डराना हानिकारक है।

शिशुओं को तीव्र धूप, तेज वायु तथा तीव्र शीतलता से बचाये रखें ।

शिशु के निकट चूल्हा, गैस चूल्हा, स्टोव, लालटेन अथवा कांच की वस्तुऐं, जहरीले पदार्थ, बिजली के तार (रेडियो, टी. वी. पंखे आदि) कदापि नहीं होने चाहिए ।

बच्चों को प्रायः सूती कपड़े तथा सर्दियों में ऊनी कपड़े ही पहिनायें।

स्वस्थ शिशु को वमन नहीं होता है बल्कि उसके मुख में भरा हुआ (दुग्धपानोपरान्त) दूध बाहर निकल आता है तथा स्वस्थ शिशु के माथे पर पसीनानहीं आता है तथा उसके मल का रंग पीला और हल्का गरम रहता है। स्वस्थ शिशु की नाड़ी तीव्र चलती है और वह दिन भर में 3-4 बार तक मल त्याग करता है।

शिशु को जिस स्थान (शरीर के भाग) पर पीड़ा होती है वह रोता हुआ बार-बार दर्द वाली जगह पर अपना हाथ अवश्य ले जाता है। सिरदर्द होने पर शिशु के कपाल की रेखायें स्पष्ट रूप से उभर जाती हैं तथा दोनों भौहें एक दूसरे के समीप खिंच जाती हैं और उसके माथे पर बल पड़ जाते है।

स्वस्थ शिशु अपनी माता का स्तन तीव्रता से चूसता है अस्वस्थ होने पर उसके स्तन चूसने की गति धीमी हो जाती है अथवा वह स्तनपान करने में पूर्णतः असमर्थ हो जाता है।

शिशु को अधिक कै, दस्त के कारण पानी की कमी हो जाने पर उसके माथे का गड्‌ढा धँस जाता है। आँखें निस्तेज हो जाती हैं, शरीर की चमड़ी रूखी-सूखी, कान्तिहीन हो जाती है, बच्चा चिड़चिड़ा हे जाता है, उसके होंठ सूख जाते हैं और ओठों पर पपड़ी जम जाती है तथा चुटकी से उसके मांस सहित खाल पकड़ने पर वह सिकुड़ी हुई कुछ देर तक ऐसी ही अवस्था में रह जाती है।

रोगी बच्चे के मल (टट्टी) से असहनीय दुर्गन्ध आती है।

दुग्धपान कराते समय यदि शिशु रोने-चिल्लाने लगे तो यह लक्षण उसके कान में दर्द होने का है।

यदि शिशु की जीभ पीले रंग की हो तो वह लीवर (जिगर) अथवा आमाशय सम्बन्धी किसी रोग से ग्रसित हो गया है।

यदि शिशु की जीभ स्वाभाविक लाल होती है। यदि उसमें रक्त की अधिकता है जो उसकी अच्छी तन्दुरुस्ती की निशानी है। मुख प्रदाह हो जाने पर भी शिशु की जीभ लाल रंग की हो जाती है किन्तु तब उसके मुख से लार टपकती है।

शिशु 3-4 मास की आयु में अपनी गर्दन, संभालकर सिर उठा लेता है तथा 9 मास से 1 वर्ष तक की आयु में बैठना सीख जाता है। एक से डेढ़ वर्ष की आयु का शिशु अपनी टाँगों से चलने लगता है। यदि इस स्वाभाविक विकास में कोई अन्तर आ जाए तो बच्चे के मानसिक विकास की गति अवरुद्ध हो चुकी है अथवा वह सूखा रोग से पीड़ित हो गया है यह समझें ।

शिशुओं को यकृत रोग 1 वर्ष से कम और 3 वर्ष तक की आयु में होता है। कभी-कभी जन्म बाद भी यह रोग हो जाया करता है।ज्वर के समय बच्चे को दिनभर में कम से कम 10-12 बार पानी अवश्य पिलाना चाहिए । साधारण स्वस्थावस्था में भी यदि बच्चे को कुछ घंटे तक पानी न पिलाया जाए तो उसके शरीर का तापमान बढ़ जाता है।

जन्म के तुरन्त बाद यदि शिशु न रोवे तो यह सम्भावना होती है कि वह साँस नहीं ले पा रहा है। साँस न चलने पर शिशु का शरीर नीला पड़ जाता है। इस स्थिति में नाड़ी की गति धीमी रहती है या हृदय की गति ठप्प रहती है। ऐसी विकट स्थिति नाक और मुँह में कफ आदि के फंस जाने से हुआ करती है। इस परिस्थिति में बालक को उल्टा करके उसके मेरुदण्ड को हल्के-हल्के हाथ से थपथपाने से श्वास चलने लगता है और शिशु रोने लगता है। यदि फिर भी साँस जारी न हो तो शिशु के नाक और मुँह में फूंक मारने से श्वास चलने लगता है। यह कार्य तुरन्त ही करने के होते हैं। अनावश्यक देरी से शिशु काल-कवलित हो जाता है।

ऊपरी दूध (कृत्रिम दुग्धपान) करने वाले शिशु के दाँत या तो बहुत ही जल्दी निकल आते हैं अन्यथा बहुत दिनों बाद देरी से निकला करते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चर्म की खुश्की, चर्म का खुरदरा हो जाना,dry skin,chamdi ki khuski

शक्कर-के फायदे

नवजात शिशु के उत्तम स्वास्थ्य का परीक्षण